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________________ २७६ ) -- छपखंडागळे-वग्गणा-खंडे (५, ६, १६७. ___ कायाणुवादेण पुढवि०-आउ० बिसरीरा तिसरीरा ओघ । णवरि तिसरीराणं जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं तिसमयूणं । बादरपुढवि० बादरआउ०-बादरवणप्फदिपत्तेयसरीरा तिसरीरा केवचिरं का० होंति ? णाणाजीवं प० सम्वद्धा । एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया। तिसरीरा केवचिरं का० होंति? णाणाजीवं प० सव्वद्धा । एगजीवं प०जह० खुद्दाभवग्गहणं बिसमऊणं, उक्क० कम्मदिदी। बादरपुढवि-बादरआउ०बादरवणप्फदिपत्तेयसरीरपज्जत्त० बिसरीराणं बेइंदियपज्जत्ताणं भंगो। तिसरीरा केवचिरं का होंति? णाणाजीवं प० सम्बद्धा। एगजीवं प० जह० अंतोमुत्तं बिससऊणं उक्क० संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । बादरपुढवि-बादरआउ०-बादरवणप्फदिपत्तेयसरीरअपज्जत्ता बिसरीर तिसरीराणं बादरेइंदियअपज्जत्तभंगो। सुहमपुढवि०-सुहुमआउ०-सुहुमतेउ०-सुहुमआउ० बिसरीर-तिसरीराणं सुहमेइंदियभंगो। तेउकाइय-वाउका० बिसरीरा तिसरीराचदुसरीरा ओघं। बादरतेउकाइय-बादरवाउ० बिसरीर-चदुसरीराणं बादरेइंदियभंगो। तिसरीराणं बादरपुढविभंगो णवरि एगजीवं प० जह० एगसमओ। बादरतेउ०-बादरवाउ० पज्जत्त० बिसरीराणं बादरपुढविपज्जत्तभंगो। ___कायमार्गणाके अनुवादसे पृथिवोकायिक और जलकायिक जीवोंमें दो शरीरवालों और तीन शरीरवालोंका भंग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि तीन शरीरवालोंका जघन्य काल तीन समय कम क्षुद्र भवग्रहप्रमाण है। बादर पृथिवीकायिक बादर जलकायिक और बादर कायिक प्रत्येक शरीर जीवोंमें दो शरीरवालोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है। एक जोवको अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दं समय है। तीन शरीरवालोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है जीवकी अपेक्षा जघन्य काल दो समय कम क्षुल्लक भवग्रहप्रमाण है और उत्कृष्ट काल कर्मस्थितिप्रमाण है। बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त और बादर वनस्पतिकाकिय प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीवों में दो शरीरवालोंका भंग द्वीन्द्रिय पर्याप्तकोंके समान है। तीन शरीरवालोंका कितना काल है ? नाना जीवोंको अपेक्षा सर्वदा काल है । एक जीवको अपेक्षा जघन्य काल दो समय कम अन्तर्मुहर्त प्रमाण है और उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्षप्रमाण है । बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त, बादर जलकायिक अपर्याप्त और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्त जीवोंमें दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले जीवोंका भंग बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंमें समान है। सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म जलकायिक, सूक्ष्म अग्निकायिक, और सूक्ष्म वायुकायिक जीवोंमें दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले जीवोंका भंग सूक्ष्म एकेन्द्रियोंके समान है। अग्निकायिक और वायुकायिकोंमें दो शरीरवाले, तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंका भंग ओघके समान है । बादर अग्निकायिक और बादर वायुकायि. कोंमें दो शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंका भंग बादर एकेन्द्रियोंके समान है । तीन शरीरवालोंका भंग बादर पृथिवीकयिक जीवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि एक जीवको अपेक्षा जघन्य काल एक समय है। बादर अग्निकायिक पर्याप्त और बादर वायुकायिक पर्याप्तकोंमें दो शरीरवाले जीवोंका भंग बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तकोंमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org"
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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