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________________ ५, ६, १६७. ) बधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए कालपरूवणा (२७५ एगजीवं प० जह० खुद्दाभवग्गहणं तिसमऊणं, उक्क० अंतोमहतं । बेइंदिय-तेइंदियचरिदिय० बिसरीराणं पंचिदियतिरिक्खअपज्जत्ताणं भंगो। तिसरीरा केवचिरं का. होंति? णाणाजीवं प० सव्वद्धा । एगजीवं प० जह० खद्दाभवग्गहणं बिसमऊणं, उक्क० संखेज्जाणि ॐ वस्ससहस्साणि । बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदियपज्जत्ताणं पंचिदियतिरिक्खअपज्जत्ताणं भंगो। णवरि तिसरीरा केवचिरं का होंति?णाणा०प० सव्वद्धा। एगजीव प० जह० अंतोमुहूत्तं विसमऊणं, उक्क० संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । बेइंदियतेइंदिय-चरिदियअपज्जत्ता बिसरीरा केवचिरं का० होंति ? णाणाजीव प० जह० एगसमओ, उक्कस्सेण आवलियाए असंखे भागो । एगजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमओ उक्क० बेसमया*। तिसरीरा केवचिरं का०होंति? णाणाजीवं प० सव्वद्धा। एगजीवं प० जह० खुद्दा भवग्गहणं बिसमऊणं, उक्क० अंतोमुहुतं । पंचिदिय-पंचिदियपज्जत्त० बिसरीराणं बेइंदियभंगो। तिसरीरा केवचिरं का होंति? णाणाजोवं प० सम्वद्धा । एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० सागरोवमसहस्सं पुव्वकोडिपुधत्तेणब्भहियं सागरोवमसदपुधत्तं । चदुसरीरा ओघं। पंचिदियअपज्जत्ताणं बेइंदियअपज्जताणं भंगो। तीन शरीरवाले जीवोंका कितना काल है? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है । एक जीवको अपेक्षा जघन्य काल तीन समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्त है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवोंमें दो शरीरवालोंका भंग पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके मान है । तीन शरीरवालोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल दो समय कम क्षुल्लकभवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्षप्रमाण है।द्वीन्द्रिय पर्याप्त,त्रीन्द्रिय पर्याप्त और चतुरिन्द्रियपर्याप्त जीवोंका भंग पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके समान है । इतनी विशेषता है कि तीन शरीरवाले जीवोंका कितना काल है? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है। एक जीवको अपेक्षा जघन्य काल दो समय कम अन्तर्म हर्तप्रमाण है और उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्षप्रमाण है।द्वान्द्रिय अपर्याप्त,त्रोन्द्रिय अपर्याप्त और चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंमें दो शरीरवालोंका कितना काल है? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आबलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। तीन शरीरवालोंका कितना काल है? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है । एक जीवको अपेक्षा जघन्य काल दो समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्तप्रमाण है । पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें दो शरीरवालोंका द्वीन्द्रियोंके समान भंग है। तीन शरीरवालोंका कितना काल है? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल क्रमसे पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक हजार सागरप्रमाण और सौ सागरपृथक्त्वप्रमाण है । चार शरीरवालोंका भंग ओघके समान है। पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकोंका द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकोंके समान भंग है। ॐ प्रतिषु 'उक्क० असंखेज्जणि' इति पाठः। * अ०का०प्रत्योः ‘णाणाजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० वेसमया' इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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