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________________ ५, ६, १६७. ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए कालपरूवणा ( २७७ तिसरीरा के चिरं का० होंति ? णाणाजीवं प० सव्वद्धा । एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । चदुसरीरा ओघं । बादरतेउकाइयबादरवाउ० अपज्जत्त० बिसरीर-तिसरीराणं बादरेइंदियअपज्जत्तभंगो। वणप्फदिका - ० बिसरीर-तिसरीरा ओघं । बादरवणप्फदिकाइय० बिसरीर-तिसरीराणं बादरेइंदियभंगो। बादरवणफदिकाइयपज्जत्त० बिसरीर-तिसरीराणं बादरेइंदियपज्जत्तभंगो। raft सुतिसु वि तिसरीराणमेगसमओ णत्थि । बादरवणप्फदि० अपज्जत्त० बिसरीर तिसरीराणं (बादरेइंदियअपज्जत्त मंगो। सुहुमवणप्फदि० सुहुमणिगोद बिसरीर- तिसराणं) सुमेइं दियभंगो । सुहुमवणप्फदि सुहुमणिगोदजीवपज्जत्त० बिसरीर-तिसरीराणं सुमेइंदिपज्जतभंगो। सुहुमवणफदि-सुहुमणिगोदजीवपज्जत्ताणं सुहुमेइंदियअपज्जत्तभंगो। तसकाइय-तसकाइयपज्जत्त० बिसरीर तिसरीर-चदुसरीराणं पचिदियपंचिदियपज्जत्ताणं भंगो। णवरि विसेसो सगट्ठिदी भणिदव्वा । तसअपज्जत्ताणं पंचदियअपज्जत्ताणं भंगो । जोगाणुवादेण पंचमण० - पंचवचि० तिसरीरा चदुसरीरा केवचिरं कालादो होंति ? जीवं प० सव्वद्धा । एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमृहुत्तं । कायजोगीसु बिसरीर - तिसरीर - चदुसरीरा ओघं । ओरालियकायजोगीसु तिसरीरा समान है । तीन शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है ? एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्षप्रमाण है। चार शरीरवालोंका भंग ओघ के समान है । बादर अग्निकायिक अपर्याप्त और बादर वायुकायिक अपर्याप्त जीवों में दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले ज. वोंका भंग बादर एकेंद्रिय अपर्या कोंके समान है । वनस्पतिकायिकों में दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले जीवोंका भंग ओघके समान है । बादर वनस्पतिकायिकों में दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले जीवोंका भंग बादर एकेंद्रियोंके समान है। बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तकों में दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले जीवोंका भंग बादर एकेंद्रिय पर्याप्तकों के समान है। इतनी विशेषता है कि इन तीनों ही वनस्पतिकायिकों में तीन शरीरवालों का एक समय काल नहीं है । बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्तकों में दो शरीरवाले और तीन शरोरवाले जे बोका भंग बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके समान है। सूक्ष्म वनस्प तिकायिकों मे दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले जीवोंका भंग सूक्ष्म एकेद्रियोंके समान हैं । सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्त और सूक्ष्म निगोद पर्याप्त जीवोंमें दो शरीरवाले और तीन शरीवाले जीवोंका भंग सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकों के समान है । त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्तकों में दो शरीरवाले, तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंका भंग पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवों के समान है । इतनी विशेषता है कि अपनी स्थिति कहनी चाहिए। त्रस अपर्याप्तकों का भंग पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकों के समान है । योगमार्गणा के अनुवादसे पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवों में तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोका कितना काल है ? नाना जावों की अपेक्षा सर्वदा काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । काययोगी जीवों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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