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________________ ५, ६, १६७. ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए कालपरूवणा ( २७१ एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० तिष्णि पलिदोवमाणि पुव्वकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि । चदुसरीरा केवचिरं का० होंति ? णाणाजीवं प० सव्वद्धा । एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क ० अंतमहुतं । मणुस अपज्जत्तेसु बिसरीरा केवचिरं का० होंति ? गाणाजीव प० जह० एगसमओ, उक्क० आवलियाए असंखेज्जदिभागो । एगजीव पडुच्च जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया । तिसरीरा केवचिरं का० होंति ? णाणाजीवं पडुच्च जह० खुद्दाभवग्गहणं बिसमऊणं, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । एगजीवं प० जह० खुद्दाभवग्गहणं बिसमऊणं, उक्क० अंतोमुहुत्तं संपुण्णं । देवदीए देवसु बिसरीरा केवचिरं का० होंति ? णाणाजीवं प० जह० एगसमओ उक्क० आवलि० असंखे० भागो । एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया । तिसरीरा केवचिरं का० होति ? णाणाजीवं प० सव्वद्धा । एगजीवं प० जह० दसवस्ससहस्साणि बिसमऊणाणि, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि संपुष्णाणि । भवणवा - ferपहुड जाव सहस्सारकप्पवासियदेवेषु बिसरीरा केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च जह० एगसमओ, उक्क० आवलि० असंखे ० भागो । एग- जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य है । चार शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है । एक जीवको अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । मनुष्य अपर्याप्तक दो शरीरवालोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य । काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । तीन शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल दो समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल पल्के असंख्यातवें भागप्रमाण है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल दो समय कम क्षुल्लकभवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल सम्पूर्ण अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है । विशेषार्थ - मनुष्य अपर्याप्त यह सान्तर मार्गणा है। इसमें निरन्तर यदि जीव पाये जाते हैं तो वे कमसे कम क्षुल्लकभवग्रहणप्रमाण काल तक और अधिक से अधिक पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक रहते हैं। उसके बाद नियमसे अन्तर पड जाता है। इसी विशेषताको ध्यान में रखकर यहां तीन शरीरवालोंका काल कहा है । शेष कालका स्पष्टीकरण पूर्व में कही गई विशेषताओं को ध्यान में रखकर लेना चाहिए । देवगतिकी अपेक्षा देवोंमें दो शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। तीन शरीरवाले जीवों का कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल दो समय कम दस हजार वर्ष प्रमाण है और उत्कृष्ट काल सम्पूर्ण तेतीस सागर है । भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्पवासी देवों तक दो शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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