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________________ २७२ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड (५, ६, १६७ जीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया । तिसरीरा केवचिरं का० होंति ? णाणाजीवं प० सव्वद्धा । एगजीवं प० जह० दसवस्ससहस्साणि बिसमऊणाणि, उक्क ० सागरोवमं सादिरेयं । जह० दसवस्ससहस्साणि बिसमऊणाणि, उक्क० पलिदोवमं सादिरेयं । जह० पलिदोवमस्स अट्ठमभागो बिसमऊगो, उक्क० पलिदोवमं सादिरेयं । जह० पलिदोवमं सादिरेयं, उक्क० बेसागरोवमाणि सादिरेयाणि । जह० बेसागरो० सादिरेयाणि, उक्क० सत्त सागरो० सादिरेयाणि । जह० सत्त साग० सादिरेयाणि उक्क० दस सागरो० सादिरेयाणि । जह० दस सागरो० सादिरेयाणि, उक्क० चोद्दस सागरोव ० स दिरेयाणि । जह० चोद्दस सागरो० सादिरेयाणि उक्क० सोलस सागरो० सादिरेयाणि । जह० सोलस सागरो० सादिरेयाणि, उक्क० अट्ठारस सागरो० सादिरेयाणि । आणद - पाणदप्पहूडि जाव सव्वट्टसिद्धिविमाणवासियदेवे बिसरा केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च जह० एगसमओ, उक्क० संखेज्जा समया । एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया, । तिसरीरा केवचिरं का० होंति ? णाणाजीवं प० सव्वद्धा । एगजीवं प० जह० अट्ठारस सागरोवमाणि सादिरेयाणि, उक्क वीसं सागरोवमाणि । जह० वोसं सागरो ० समऊणाणि, उक्क० बावीसं सागरोवमाणि । जह० बावीसं सागरो० समऊणाणि, भागप्रमाण हैं । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है | तीन शरीरबाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है। एक जीवकी अपेक्षा भवनवासियोंमें जघन्य काल दो समय कम दस हजार वर्षप्रमाण है ओर उत्कृष्ट काल साधिक एक सागर है । व्यन्तरोंमें जघन्य काल दो समय कम दस हजार वर्षं प्रमाण है और उत्कृष्ट काल साधिक एक पल्य प्रमाण है । ज्योतिषियोंमें जघन्य काल दो समय कम पल्यका आठवां भागप्रमाण है और उत्कृष्ट काल साधिक एक पल्यप्रमाण है। सौधर्म ऐशान कल्प में जघन्य काल साधिक एक पल्य प्रमाण है और उत्कृष्ट काल साधिक दो सागर है । सानत्कुमार माहेन्द्र में जघन्य काल साधिक दो सागर है और उत्कृष्ट काल साधिक सात सागर है। ब्रह्मब्रह्मोत्तरमे जघन्य काल साधिक सात सागर है और उत्कृष्ट काल साधिक दस सागर है । लान्तव-कापिष्ठ में जघन्य काल साधिक दस सागर है और उत्कृष्ट काल साधिक चौदह सागर है । शुक्र महाशुक्र में जघन्य काल साधिक चौदह सागर है और उत्कृष्ट काल साधिक सोलह सागर है । शतार - सहस्रार में जघन्य काल साधिक सोलह सागर है और उत्कृष्ट काल साधिक अठारह सागर है। आनत प्राणतसे लेकर सर्वार्थसिद्धिविमानवासो तकके देवोंमें दो शरीरबाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । एक जोवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । तीन शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल हैं । एक जीवकी ओला आगत-प्राणत में जघन्य काल साधिक अठारह सागर है और उत्कृष्ट काल बीस सागर है। आरणम जवन्य काल एक समय कम बीस सागर है और उत्कृष्ट काल बाईस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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