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________________ २७०) छखंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६, १६७ एगजीवं प. जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया। तिसरीरा केवचिरं का० होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं प० जह० खुद्दाभवग्गहणं बिसमऊण, उक्क० अंतोमुत्तं संपुगं । मणुसगदीए मणुस्सेसु बिसरीरा कवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च जह० एगसमओ, उक्क० आवलि० असंखे० भागो। एगजीवं पडुच्च जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया। तिसरीरा केचिरं काला होति? णाणाजीवं प० सव्वद्धा । एगजीवं प० जह• एगसमओ, उक्क० तिणि पलिदोवमाणि पुवकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि । चदुसरोरा केवचिरं का. होति ? णाणाजीवं प० सव्वद्धा। एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहत्तं । मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु बिसरीरा केवचिरं का. होंति ? णाणाजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० संखेज्जा समया। एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया। तिसरीरा केवचिरं का. होति ! णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । प्रमाण है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । तीन शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल दो समय कम क्षुल्लक भवग्रहण प्रमाण है और उत्कृष्ट काल सम्पूर्ण अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। विशेषार्थ - पहले ओघसे कालका स्पष्टीकरण कर आए हैं। सामान्य तिर्यंचोंमें उसी प्रकार स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए। पंचेंद्रियतिथंच आदिमें भी उसी प्रकार अपनी अपनी विशेषता जानकर कालका स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए। तात्पर्य यह है कि जिस मार्गणाम एक जीव और नाना जीवों की अपेक्षा अनाहारकोंका जघन्य और उत्कृष्ट जो काल हो वह वहां दो शरीरवाला काल जानना चाहिए। तीन शरीरवालों और चार शरीरवालोंका काल लाते समय कई बातोंका ध्यान रखने की आवश्यकता है। यथा-मार्गणाका द्रव्यप्रमाण कितना है और मार्गणा सान्तर है या निरन्तर आदि । ओघसे कालका स्पष्टोकरण करते समय कुछ विशेताओंका निर्देश किया ही है उन्हे ध्यानमें रखकर यहां और आगे कालका स्पष्टीकरण लेना चाहिए। __मनुष्यगतिकी अपेक्षा मनुष्यों में दो शरीरवालोंका कितना काल है ? नानाजीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आबलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। तीन शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य है। चार शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त है। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियों में दो शरीरवालोंका कितना काल है? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। तीन शरीरवाले जीवोका कितना काल है? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है। एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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