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________________ २५२ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ५, ६, १६७. ) वेदाणुवादेण इत्थि-पुरिसवेद-आभिणि-सुद-ओहिणाणि-चक्खुदंसणि-ओहिदंसणि-तेउपम्मलेस्सिय-सम्माइटि-वैदगसम्माइट्ठि-सासणसम्माइट्ठि-सण्णीणं तसकाइयभंगो। ____ अवगदवेद-अकसाइ-केवलणाणि-परिहार० सुहुमसांपराइय०-जहाक्खादविहारसुद्धिसंजद-केवलदसणीसु तिसरीरा दव्वपमाणेण केवडिया? संखेज्जा । मणपज्जवणाणिसंजद-सामाइय-च्छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदेसु तिसरीरा चदुसरीरा दव्वपमाणेण केवडिया? संखेज्जा। संजदासंजद-सम्मामिच्छाइट्ठीसु तिसरीरा चदुसरीरा दव्वपमाणेण केवडिया ? असंखेज्जा । सुक्कलेस्सिय-खइयसम्माइट्ठि-उवसमसम्माइट्ठीसु बिसरीरा दव्वपमाणेण केवडिया? संखेज्जा । तिसरीरा चदुसरीरा दव्वप० के० ? असंखेज्जा। असण्णीसु बिसरीरा तिसरीरा दव्वप०के०?अणंता।चदुसरीरा दव्वप०के०? असंखेज्जा। आहाराणुवादेण आहारएसु तिसरीरा दव्वप० के० ? अणंता। चदुसरीरा दव्वप० के० ? असंखेज्जा । अणाहारएसु कम्मइयभंगो । एव दव्वपमाणपरूवणा समत्ता। शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंकी संख्या बन जानेसे इनमें ओघके समान जानने की सूचना की हैं। शेष कथन सुगम है। वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेद और पुरूषवेदवाले तथा आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी. अवधिज्ञानी, चक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, पोतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और संज्ञी जीवोंका भग त्रसकायिक जीवोंके समान है। विशेषार्थ - इन मार्गणाओंमें एक तो त्रसकायिक जीवोंके समान दो शरीरवाले, तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीव होते हैं, दूसरे इनकी संख्या असंख्यात है, इसलिए इनकी प्ररूपणा त्रसकायिक जीवोंके समान जानने की सूचना को है। अपगतवेदी, अकषायी, केवलज्ञानी, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसाम्परायसंयत, यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत और केवलदर्शनी जीवों में तीन शरीरवाले द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? संख्यात हैं। मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकशुद्धिसंयत और छेदोपस्थापनाशुद्धिसयत जीवोंमें तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीव द्रव्यप्रमाणको अपेक्षा कितने है ? संख्यात है। संयतासंयत और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले कितने हैं ? असंख्यात हैं। शुक्ललेश्यावाले, क्षायिकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंम दो शरीरवाले द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? संख्यात हैं। तीन शरीरवाले द्रव्यप्रमाणको अपेक्षा कितने हैं? असंख्यात हैं। असंज्ञी जीवोंमें दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले द्रव्यप्रमाणको अपेक्षा कितने हैं ? अनन्त हैं। चार शरीरवाले द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने है ? असंख्यात हैं । विशेषार्थ - शुक्ललेश्यावाले, क्षायिकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीव विग्रहगतिमें संख्यात ही होते हैं, इसलिए इनमें दो शरीरवालोंका प्रमाण संख्यात कहा है । तथा चार शरीरवाले ओघसे ही असंख्यात बतलाये हैं, इसलिए असंज्ञियोंमें चार शरीरवालोंका प्रमाण असंख्यात कहा है। शेष कथन स्पष्ट ही है। आहार मार्गणाकें अनुवादसे आहारकोंमें तीन शरीरवाले द्रव्य प्रमाणकी अपेक्षा कितने *अ० प्रतौ ' संखेज्जा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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