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________________ २५० ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं (५, ६, १६७. बादरतेउ०बादरवाउ०अपज्जत्ताणं सुहमतेउ०सुहमवाउ०पज्जत्त-अपज्जत्ताणं बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्त-अपज्जत्ताणं बिसरीरा तिसरीरा दव्वपमाणेण केवडिया? असंखेज्जा । (तेउ०-वाउ०-) बादरतेउ०-बादरवाउ० तेसि पज्जत्ताणं विसरीरा तिसरीरा चदुसरोरा दव्वपमाणेण केवडिया? असंखेज्जा। मणुसगदीए मणुस्सेसु बिसरीरा तिसरीरा दव्वपमागेण केवडिया? असंखेज्जा, सेडीए असंखे भागो चदुसरीरा दव्वपमाणेण केवडिया? संखेज्जा। मणुसपज्जत्तमणुसिणीसु विसरीरा तिसरीरा चदुसरीरा दवपमाणेण केवडिया? संखेज्जा। देवगदीए देवेसु जाव सहस्सारे ति ताव णेरइयभंगो । आणद-पाणदप्पहडि जाव अवराइदविमाणवासियदेवेसु त्ति विसरीरा दव्वपमाणेण केवडिया ? संखज्जा। तिसरीरा दव्वपमाणेण केवडिया? असंखेज्जा पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। सव्वट्ठसिद्धिविमाणवासियदेवेसु बिसरीरा तिसरीरा दव्वपमाणेण केवडिया? संखेज्जा। __ इंदियाणुवादेण एइंदिया बादरेइंदियपज्जत्ता बिसरीरा तिसरीरा दव्वपमाणेण केवडिया? अणंता। चदुसरीरा दव्वपमाणेण केवडिया? असंखज्जा, पलिदो० असंखे० व उनके पर्याप्त और अपर्याप्त, सूक्ष्म वायुकायिक व उनके पर्याप्त और अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर व उनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंमें दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले जीव द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा कितने हैं? असंख्यात हैं। अग्निकायिक,वायुकायिक, बादर अग्निकायिक और बादर वायुकायिक तथा इन दोनोंके पर्याप्त जीवोंमें दो शरीरवाले, तोन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीव द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा कितने हैं? असंख्यात हैं। मनुष्यगतिकी अपेक्षा मनुष्योंमे दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं । असंख्यात हैं जो जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। चार शरीरवाले द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं? संख्यात हैं। मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें दो शरीरवाले, तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा कितने हैं? संख्यात हैं। देवगतिकी अपेक्षा सामान्य देवोंसे लेकर सहस्त्रार कल्प तकके देवोंमें नारकियोंके समान भंग है । आनत-प्रागत कल्पसे लेकर अपराजित विमानवासी देवों तक दो शरीरवाले द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा कितने हैं? संख्यात हैं। तीन शरीरवाले द्रव्यप्रमाणको अपेक्षा कितने हैं। असंख्यात हैं जो पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । सर्वार्थसिद्धिविमानवासी देवोंमें दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? संख्यात हैं। विशेषार्थ- यहाँ सहस्त्रारकल्प तकके देवों का भंग नारकियों के समान कहा है सो यह सामान्य कथन है। विशेषरूपसे सौधर्म ऐशान कल्पतकके देव जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं और सानत्कुमारसे लेकर सहस्त्रार कल्प तकके देव जगणिके असंख्यातवें भागप्रमाण जानने चाहिए । शेष कथन स्पष्ट ही है। इन्द्रियमार्गणाके अनुवादसे एकेन्द्रिय और बादर एकेन्द्रिय व बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं? अनन्त हैं। चार शरीरवाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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