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________________ ५, ६, १६७.) बंधाणुयोगद्दारे सरीरसरीरपरूवणाए दव्वपमाणपरूवणा ( २४९. कायव्वा । तं जहा - दव्वपमाणाणुगमेण दुविहो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण बिसरा तिसरीरा दव्वपमाणेण केवडिया ? अनंता । चदुसरीरा दव्पपमाणेण केवडिया ? असंखेज्जा, पदरस्स असंखे ० भागो, असंखेज्जाओ सेडीओ, तासि सेडीणं विक्खंभसूची पलिदो० असंखे ० भागमेत्तघणंगुलाणि । आदेसेण गदियाणुवादेण णिरयगदीए णेरइयेसु बिसरीरा तिसरीरा दव्वपमाणेण केवडिया? पदरस्स असंखे ० भागो । एवं सत्तसु पुढवीसु । णवरि बिदियादि जाव सत्तमि त्ति सेडीए असंखे० भागो वत्तव्वो । तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु ओघं । पंचिदियतिरिक्ख-पंचिदियतिरिक्खपज्जत्तपंचिदियतिरिक्खजोणिणीसु बिसरीरा तिसरीरा चदुसरीरा दव्वपमाणेण केवडिया ? असंखेज्जा, पदरस्स असंखे ० भागो । पंचिदियतिरिक्ख अपज्जत्त मणुसअपज्जत्त - बीइंदिय तोइंदिय- चउरिदियाणं तेसि पज्जत्त-अपज्जत्ताणं पंचिदिय अपज्जत्त पुढ वि० आउ० बादर पुढवि० सुमपुढवि० बादर-सुहुमआउ० पुढवि० आउ० बादर-सुहुम-पज्जत्तअपज्जत्ताणं प्ररूपणा करनी चाहिए । यथा - द्रव्यप्रमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- ओघ और आदेश । ओघसे दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? अनन्त हैं । चार शरीरवाले जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात हैं अर्थात् प्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण या असंख्यात जगश्रेणिप्रमाण हैं । उन जगश्रेणियोंकी विष्कम्भसूची पत्यके असंख्यातवें भागमात्र घनांगुलप्रमाण है । विशेषार्थ- कार्मणकाययोगी जीवोंका प्रमाण अनन्त होनेसे यहाँ दो शरीरवाले जीव अनन्त कहे हैं। तीन शरीरवाले जीव अनन्त हैं यह तो स्पष्ट ही हैं । रह गये चार शरीरवाले जीव सो पर्याप्त अग्निकायिक और वायुकायिक तथा पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंमेंही चार शरीरवालें जीव सम्भव हैं, अतः इनका प्रमाण असंख्यात कहा है । यहा असंख्यात से क्या लेना चाहिए इस बात का खुलासा क्षत्रकी अपेक्षा किया है । आदेश से गतिमार्गणाके अनुवादसे नरकगतिको अपेक्षा नारकियोंमें दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवियों में जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहने चाहिए । तिर्यंचगतिकी अपेक्षा तिर्यंचोंमें ओघ के समान भंग हैं। पंचेन्द्रियतिर्यंच, पंचेन्द्रियतिर्यंच पर्याप्त और पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिनी जीवों में दो शरीरवाले, तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात हैं अर्थात् जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। पंचेन्द्रियतिर्यंचअपर्याप्त, मनुष्य अपर्याप्त, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिंद्रिय तथा इन तीनोंके पर्याप्त और अपर्याप्त, पंचेंद्रिय अपर्याप्त, पृथिवीकायिक, जलकायिक, बादर पृथिवीकायिक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक, सूक्ष्म जलकायिक, पृथिवीकायिक बादर पर्याप्त व अपर्याप्त, पृथिवीकायिक सूक्ष्मपर्याप्त व अपर्याप्त, जलकायिक बादर पर्याप्त व अपर्याप्त, जलकायिक सूक्ष्म पर्याप्त व अपर्याप्त, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त, बादर वायुकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म अग्निकायिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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