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________________ २२२ ) छवखंडागमे वग्गणा - खंड (५, ६, ११६ णाणासेडिसव्वपदेसा अनंतगुणा । को गुण ० ? आहारवग्गणहेट्ठिमअद्धाणं स्वाहियं । आहारवग्गणादो हेट्टिमअणतपदेसियवग्गणासु णाणासेडिसव्वदव्वा अनंतगुणा । को गुण ? आहारवग्गणपदेसगुणगारेणोवट्टिद अप्पिदअगहणवग्गणअण्णोण्णब्भत्थरासी । तासु चेव णाणा से डिसव्वपदेसा अनंतगुणा । को गुण० ? हेट्टिमअद्धाणं ख्वाहियं । परमाणुवग्गणासु णाणासेडिसव्वदव्वा सध्वपदेसा च दो वि सरिसा अनंतगुणा 1 को गुण० ? अनंतपदेसियवग्गणाणं पदेसगुणगारेण दिवड्ढगुणहाणिगुणिदेणोवट्टिदअसंखेज्जपदेसियवग्गणाण मण्णोष्णब्भत्थरासी । संखेज्जपदेसियवग्गणासु णाणासे डिसव्वदव्वा संखेज्जगुणा । को गुण ०? एगरूवस्त असंखे ० भागेणूणरूवणुक्कस्स संखेज्जयं । तेसि चेव पदेसा संखेज्जगुणा । को गुण० ? संखेज्जरुवाणि । तं जहा - पदेसग्गेण सव्ववग्गणाओ एगगुणद्गुणतिगुणादिकमेण गदाओ त्ति संकप्पिय परमाणुवग्गणपदेसे दृविय उक्कस्ससंखेज्जयस्स संकलणाए गुणिदे सव्ववग्गणाणं पदेसग्गमागच्छदि । पुणो गुणगारम्हि एगरूवे अवणिदे संखेज्जपदेसियवग्गणपदेसग्गं होदि । पुणो पदेसग्गेण दाओ सरिसाओ न होंति । विसेसहोणाओ त्ति होणपदेसपमाणपरूवणं कस्सामो । तं जहा - रूवूणुक्कस्ससंखेज्जयस्स संकलणासंकलणमाणिय दुगुणिदे होणपदेसपमाणं पावदि । पुणो दोहि गुणहाणीहि असंखेज्जलोगपमाणाहि ओवट्टिदे एगरूवस्स असंखे ०भागो आगच्छदि । एदम्मि पुव्विल्लसंकलणाए अवणिदे संखेज्जपदे सियवग्गणदव्वं अन्योन्याभ्यस्त राशि गुणकार है । उन्हीं वर्गणाओंमें नानाश्रेणि सब प्रदेश अनन्तगुणे हैं । गुणकार क्या है ? आहारवर्गणाका एक अधिक अधस्तव अध्वान गुणकार है । आहारवर्गणा से नीचे अनन्तप्रदेशी वर्गणाओं में नानाश्रेणि सब द्रव्य अनन्तगुणे हैं । गुणकार क्या है ? आहारवर्गणा के प्रदेश गुणकारसे भाजित विवक्षित अग्रहणवर्गणाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि गुणकार है । उन्ही में नानाश्रेणि सब प्रदेश अनन्तगुणे हैं । गुणकार क्या है ? एक अधिक अधस्तन अध्वान गुणकार है । परमाणुवर्गणाओंमें नानाश्रेणि सब द्रव्य और उनके सब प्रदेश दोनों ही समान होकर अनन्तगुणे हैं । गुणकार क्या है ? डेढ़ गुणहानि गुणित अनन्तप्रदेशी वर्गणाओंके प्रदेशगुणकारसे भाजित असंख्यातप्रदेशी वर्गणाओंकी अन्योन्याभ्यस्त राशि गुणकार है । संख्यातप्रदेशी वर्गणाओंमें नानाश्रेणि सब द्रव्य संख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है ? एकेक असंख्यातवें भागसे न्यून एक कम उत्कृष्ट संख्यात गुणकार है । उन्हीं के प्रदेश संख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है ? संख्यात अंक गुणकार है । यथा- प्रदेशाग्रकी अपेक्षा सब वर्गणायें एकगुणी, द्विगुणी और त्रिगुणी आदि क्रमसे गई हैं ऐसा संकल्प करके परमाणुवर्गणाके प्रदेशों को स्थापित कर उत्कृष्ट संख्यातकी संकलनासे गुणित करने पर सब वर्गणाओंके प्रदेशाग्र आते हैं । पुनगुणकारमेंसे एक अंकके कम कर देने पर संख्यात प्रदेशी वर्गणात्रे प्रदेशाग्र होते हैं । पुनः प्रदेशाः ग्रकी अपेक्षा ये समान नहीं होती हैं किन्तु विशेष होन होती हैं इसलिए हीन प्रदेशों के प्रमाणका कथन करते हैं । यथा- एक कम उत्कृष्ट संख्यातके संकलनासंकलनको लाकर दूना करने पर हीन प्रदेशोंका प्रमाण प्राप्त होता है । पुनः असंख्यात लोकप्रमाण दो गुणहानियों का भाग देने पर एक अंकका असंख्यातवां भाग आता है। इसे पहले की संकलनामेंसे घटा देने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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