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( १४ )
समय में विशेष अधिक विशेष अधिक जीव मरते हैं । उसके आगे विशेष अधिक मरणके अन्तिम समयतक प्रत्येक समय में संख्यात भाग अधिक जीव मरते हैं। उसके बाद क्षीणकषाय के संख्यातवें भागप्रमाण कालमेंसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण काल शेष रहनेपर इसके भीतर असंख्यातगुणित क्रमसे गुणश्रेणि मरण होता है । परम्परोपनिषामें बतलाया है कि क्षीणकषाय के प्रथम समय में जितने जीव मरते हैं उससे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण काल जानेपर मरनेवाले जीव दूने हो जाते हैं, इस प्रकार इतना इतना अवस्थित अध्वान जाकर मरनेवाले जीवोंकी संख्या दूनी दूनी होती जाती है और यह क्रम असंख्यातवें भाग अधिक मरनेवाले जीवोंके अन्तिम समयके प्राप्त होनेतक जानना चाहिए। उसके बाद अन्तिम समयतक प्रत्येक समय में असंख्यातगुणे जीव मरते हैं ।
अग्गे क्षीणकषायके कालमें बादर निगोद जीवके जघन्य आयुप्रमाण कालके शेष रहनेपर बादर निगोद जीव नहीं उत्पन्न होते हैं । इस अर्थको स्पष्ट करनेके लिए आयुओंका अल्पबहुत्व बतलाया गया है । आगे जघन्य और उत्कृष्ट बादर और सूक्ष्म निगोद जीवोंकी पुलवियों का परिमाण बतलाकर सब निगोदोंकी उत्पत्तिमें कारण महास्कन्धके अवयव आठ पृथिवी, टङ्क, कूट, भवन, विमान, विमानेन्द्रक आदि बतलाये गये हैं। साथ ही यह भी बतलाया गया है कि जब मास्कन्धके स्थानोंका जघन्य पद होता है तब बादर सपर्याप्तकोंका उत्कृष्ट पद होता है और जब बादर सपर्याप्तकोंका जघन्य पद होता हैं तब मूल महास्कन्धस्थानोंका उत्कृष्ट पद होता है ।
आगे मरणयवमध्य और शमिलायवमध्य आदिका कथन करनेके लिए संदृष्टियां स्थापित करके सब जीवोंमें महादन्डकका कथन किया गया है और संदृष्टियों में जो बात दरसाई गई है उसका यहां सूत्रोंद्वारा प्रतिपादन किया गया है । यहा विशेष जानकारीके लिए मूलका स्वाध्याय अपेक्षित है । इस प्रकार इतने कथन द्वारा ' जत्थेय मरइ जीवो' इस गाथाकी प्ररूपणा समाप्त होती हैं ।
अब पांच शरीरोंके ग्रहण योग्य कौन वर्गणायें हैं और कौन ग्रहण योग्य नहीं हैं इस बातका ज्ञान कराने के लिए ये चार अनुयोगद्वार आये हैं- वर्गणाप्ररूपणा, वर्गणानिरूपणा, प्रदेशार्थता और अल्पबहुत्व । वर्गणाप्ररूपणा में पुन: एक प्रदेशी परमाणु पुद्गल द्रव्य वर्गणा से लेकर कार्मणद्रव्यवर्गणा तककी सब वर्गणाओंका नामोल्लेख किया गया है । वर्गणानिरूपणा में इन वर्गणाओं में से एक-एक वर्गणाको लेकर यह वर्गणा ग्रहणप्रायोग्य नहीं है ऐसी पृच्छा करके जो जो वर्गणा ग्रहणप्रायोग्य नहीं है उसे अग्रहणप्रायोग्य बतलाकर अन्त में यही पृच्छा अनन्तानन्त परमाणु पुद्गल द्रव्य वर्गणाके विषय में करके यह बतलाया गया है कि इसमें से कुछ वर्गणायें ग्रहणप्रायोग्य हैं और कुछ वर्गणायें ग्रहणप्रायोग्य नहीं हैं। इसका विशेष खुलासा करते हुए वीरसेन स्वामी लिखते हैं कि इस सूत्र में जघन्य आहारवर्गणासे लेकर महास्कन्धद्रव्य वर्गणा तक सब वर्गणाओंकी अनन्तानन्तप्रदेशी परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा संज्ञा है। इनमें से आहारवर्गणा तैजसवर्गणा, भाषावर्गणा मनोवर्गणा और कार्मणशरीरखगंणा ये पाँच वर्गणायें ग्रहणप्रायोग्य हैं, शेष नहीं । जो पांच वर्गणायें ग्रहणप्रायोग्य हैं उनमें आहारवर्गणा मेंसे औदारिकशरीर Safararरीर और आहारकशरीर इन तीन शरीरोंका ग्रहण होता है । तैजस वर्गणामेंसे तैजसशरीरका ग्रहण होता है । भाषावर्गणा में से चार प्रकारकी भाषाओंका ग्रहण होता है ।
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