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________________ ५, ६, ११६. ) बंधणाणुयोगद्दारे सेसाणुयोगद्दारपरूवणा (१७७ आहारवग्गणासु गाणासेडिसव्वदव्वा अणंतगुणा । को गुण ? आहारवग्गणगुणहाणिसलागण्णोण्णब्भत्थरासी। आहारवग्गणाए हेढा तदणंतरअगहणवग्गणासु णाणासेडिसव्वदव्वा अणंतगुणा । को गुणगारो ? अगहणवग्गणगुणहाणिसलागण्णोण्णभत्थरासी । परमाणुपोग्गलदव्ववग्गणाए जाणासेडिसव्वदव्वा अणंतगुणा । को गुण ? जहण्णपरित्ताणंतादो अणंतगुणो । एदस्स कारणं वच्चदे । तं जहा-- पदमाणपोग्गलदव्ववग्गणादो उवरि असंखेज्जलोगमेत्तद्धाणं गंतूण तदित्थवग्गणमद्धं होदि । पुणो वि एत्तियं चेव अद्धाणं गंतूण तदित्थवग्गणा चदुष्भागा होदि । पुणो अणेण विहाणेण असंखेज्जपदेसियवग्गणाए अभंतरे जहण्णपरित्ताणंतच्छेदणयमेतगुणहाणीसु गदासु परमाणुवग्गणादो तदित्थवग्गणा जहण्णपरित्ताणंतगुणहीणा होदि । ___ संपहि असंखेज्जपदेसियवग्गणाए उक्कस्सअसंखेज्जासंखज्जमेत्तद्धाणस्स असंखे. ज्जदिभागम्मि टिदवग्गणादो जदि परमाणुवग्गणा अणंतगुणा होदि तो असंखेज्जपदेसियवग्गणाए उरिमम्मि दिदवग्गणं पेक्खिदूण परमाणूवग्गणा णिच्छएण अणंतगुणा होदि । त्ति सद्दहेयव्वं । एवं होदि त्ति कादूण जहणपरित्ताणंतवग्गणापमाणेण उवरिमअगहणसव्ववग्गणासु गणिदासु कदासु दिवड्डगुणहाणिमेत्ताओ होदि पुणो असंखेज्जपदेसियवग्गणगुणहाणिसलागाओ विरलिय बिगणिय अण्णोण्णगुणिदरासिणा अणंतपदेसियपढमवग्गणाए गुणिदाए परमाणूपोग्गलदव्ववग्गणा होदि । पुणो एदाए आहारवर्गणाओं में नानाश्रेणि सब द्रव्य अनन्त गुगे हैं गुणकार क्या है ? आहारवर्गणाकी गुणहानिलाकाओंकी अन्योन्याभ्यस्त राशि गुणकार है । आहारवर्गणासे पूर्व उसकी अनन्तरवर्ती अग्रहणवर्गणाओंमें नानाश्रेणि सब द्रव्य अनन्तगुणे हैं । गुणकार क्या है ? अग्रहणवर्गणाकी गुणहानिशलाकाओंकी अन्योन्याभ्यस्तराशि गुणकार है । परमाणुपुद्गल द्रव्यवर्गणाके नानाथणि सब द्रव्य अनन्त गुण हैं । गणकार क्या है ? जघन्य परीतानन्तसे अनन्तगुणा गुणकार है। इसका कारण कहते हैं । यथा-- परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणासे ऊपर असंख्यात लोकप्रमाण स्थान जाकर वहांको वर्गणा अर्धभागप्रमाण होती है । फिर भी इतना ही स्थान जाकर वहांकी वर्गणा चतुथंभागप्रमाण होती है । पुनः इस विधिसे असख्याप्रदेशी वर्गणाके भीतर जवन्य परीरानन्तकी अर्धच्छेदप्रमाण गुणहानियोंके जाने पर परमाणुवर्गणासे वहांकी वर्गणा जघन्य परीतानन्तगुणी हीन होती है। अब असंख्यातप्रदेशी वर्गणाके उत्कृष्ट असख्यातासंख्यातप्रमाण स्थानके असंख्यातवें भागमें स्थित वर्गणासे यदि परमाणुवर्गणा अनन्तगुणी होती है तो असंख्यातप्रदेशी वर्गणाके ऊपर स्थित वर्गणाको देखते हुए परमाणुवर्गणा निश्चयसे अनन्तगुणी होती है ऐसा श्रद्धान करना चाहिए । इस प्रकार होती है ऐसा समझकर कर जघन्य परीतानन्त वर्गणाके प्रमाणसे उपरिम अग्रहण सब वर्गणाओंका गुणकार करने पर वे डेढ गुणहानिप्रमाण होती हैं । पुनः असंख्यातप्रदेशी वर्गणाओंकी गुणहानिशलाकाओंका विरलन कर और द्विगुणित कर जो अन्योन्यगुणित राशि उत्पन्न हो उससे अनन्तप्रदेशी प्रथम वर्गणाके गणित करने पर परमाणुपुद्गलद्रव्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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