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________________ १५६) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड चदुसु धुवसुण्णदव्ववग्गणासु पोग्गला णस्थि । कुदो ? साभावियादो। पुणो अजोगिचरिमसमए पढमिल्लियाए पत्तेयसरीरदब्यवग्गणाए दव्वं सिया अस्थि सिया पत्थि । जदि अस्थि तो एक्को वा दो वा तिणि वा जा उक्कस्सेण खविदकम्मंसिय. लक्खणेणागदा चत्तारि होति । बिदियाए वग्गणाए वग्गणाओ सिया अस्थि सिया पत्थि । जदि अस्थि तो एक्को वा दो वा तिणि वा उक्कस्सेण चत्तारि होति । एवमेदेणविहाणण अणंतासु वग्गणासु गदासु तदो परदो जा अणंतरवग्गणा तिस्से दवाणि सिया अस्थि सिया त्थि । जदि अत्थि तो एक्को वा दो वा तिणि वा उक्कस्सेण पंच सरिसणियजीवा होति । एवमेदाओ वि अणंताओ वग्गणाओ गदाओ। तदो परदो जा अणंतरवग्गणा तिस्से वग्गणाओ सिया अस्थि सिया पत्थि । जदि अस्थि तो एक्को वा दो वा तिणि वा जा उक्कस्सेण सरिसणिया छजीवा लब्मति । पुणो एदेण कमेण एदाओ अणंताओ वग्गणाओ गदाओ। तदो परदो जा अणंतरवग्गणा तिस्से वग्गणाए वग्गणाओ सिया अस्थि सिया णथि । जदि अत्थि तो एक्को वा दो वा तिणि वा जा उक्कस्सेण सरिसधणिया सत्तजीवा लब्भंति । पुणो एदाओ कि अणंताओ वग्गणाओ गदाओ। तदो परदो जा अणंतरवम्गणा तिस्से वग्गणाए सिया अस्थि सिया णत्थि । जति अस्थि तो एक्को का दो वा तिणि वा जा उक्कस्सेण अट्ट सरिसणियजीवा होंति । पुणो एदेणेव कमेण अणंताओ वग्गणाओ मवाओ। तदो परदो जा अणंतरवग्गणा तिस्से वग्गणाए सिया अस्थि सिया पत्थि । जदि अत्थि तो एको वा दो वा तिगि वा जा चार ध्रुवशून्यवर्गणाओंमें पुद्गल नहीं हैं. क्योंकि, ऐसा स्वभाव है । पुनः अयोगकेवलीके अन्तिम समय में प्राप्त होनेवाली प्रथम प्रत्येकशरीरद्रव्यवर्गणा द्रव्य कदाचित् है और कदाचित नहीं है। यदि है तो एक है, दो है और तीन है, इस प्रकार उत्कृष्ट रूपसे क्षपितकर्माशिक लक्षणसे आये हुए चार होते हैं। दूसरी वर्गणाकी वर्गणायें कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं । यदि हैं तो एक है, दो है, तीन हैं, इसप्रकार उत्कृष्टरूपसे चार हैं। इसप्रकार इस विधिसे अनन्त वर्गणाओंके जानेपर उससे आगे जो अनन्तर वर्गणा है उसके द्रव्य कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो एक है, दो हैं, तीन हैं, इस प्रकार उत्कृष्टरूपसे सदृश धनवाले पाँच जीव होते हैं । इस प्रकार ये भी अनन्न वर्गणायें व्यतीत हो जाती है। उससे आगे जो अनन्तर वर्गणा है उसकी वर्गणायें कदाचित हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो एक है, दो हैं, तीन है, इसप्रकार उत्कृष्ट रूपसे सदश धनवाले छह जोव प्राप्त होते हैं । पुनः इस कपसे ये अनन्त वर्गणाये गत हो जाता है । पुनः उससे आगे जो अनन्तर वर्गणा है उस वर्गणाकी वर्गणायें कदाचित् है और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो एक है, दो हैं, तीन हैं, इस प्रकार सदृश धनताले सात जीव प्राप्त होते हैं। पुनः ये भी अनन्त वर्गणायें गत हो जाती हैं। पुनः उससे आगे जो अनन्तर वर्गणा है उस वर्गणाकी वर्गणायें कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं है । यदि हैं तो एक है, दो हैं, तीन हैं, इस प्रकार उत्कृष्टरूपसे आठ सदृश धनवाले जीव प्राप्त होते हैं। पुनः इसी क्रमसे अनन्त वर्गणाय गत हो जाती है । उससे आगे जो अनन्तर वर्गगा है उस वर्ग गाकी वर्गगायें कदाचि । है और .. Jain Education enternational www.jainelibrary.org.
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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