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________________ बंधणाणुयोगद्दारे सेसाणुयोगद्दारपरूवणा ( १५५ पमाणपरूवणा कायया जाव महाखंधदव्ववग्गणे ति । णवरि धुवक्खंधदव्ववग्गणप्पहुडि उवरि सम्वत्थ सव्वजीवेहि अणंतगणमेत्ताओ एगसेडिवग्गणाओ होति । ___ संपहि जाणासेडिवग्गणपरिमाणाणगमेण परमाणपोग्गलदव्ववग्गणा सरिसधणियवग्गणाहि जहण्णपदे वि उक्कस्तपदे वि केवडिया? अणंता । णाणासेडिजहण्ण. परमाणुपोग्गलदव्ववग्गणादो सरिसणिएहि उक्कस्सपरमाण*पोग्गलदव्ववग्गणा विसेसाहिया। विसेसो पुणो अणंताणि पोग्गलपढमवग्गमलाणि । दुपदेसियदव्ववग्गणा सरिसधणिएहि जहणिया उक्कस्सिया वि अणंता। जहण्णादो पुण उक्कस्सिया विसेसाहिया: । केत्तियमेत्तो विसेसो ? अणंताणि पोग्गलपढमवग्गमूलाणि । एवं तिपदेसियवग्गणप्पहुडि एक्केक्कवग्गणं घेत्तूण णेयव्वं जाव उक्कस्सधुवक्खंधदव्ववग्गणे ति । पुणो तिस्से उवरि पढमिल्लियाए अचित्तअद्धवक्खंधदव्ववग्गणाए सरिसधणियवग्गणाओ सिया अस्थि सिया णत्थि । जदि अस्थि तो एक्का वा दो वा तिणि वा एवं जाव उक्कस्सेण अणंताओ सरिसधणियवग्गणाओ होति । एवं विदियसांतरणिरंतरवग्गणप्पहुडि पत्तेयं पत्तेयं भणेदूण यन्वं जाव सांतरणिरंतरउक्कस्सदव्ववग्गणे त्ति । जहण्णादो पुण उक्कस्सा अणंतगुणा । को गुणगारो ? सव्वजीवेहि अणंतगुणो। वर्गणाके प्राप्त होने तक अलग अलग प्रत्येक वर्गणाके प्रमाणका कथन करना चाहिए। इतनी विशेषता है कि ध्रुवस्कन्धद्रव्यवर्गणासे लेकर आगे सर्वत्र एकश्रेणिवर्गणायें सब जीवोंसे अनन्तगुणी होती हैं। अब नानाश्रेणिवर्गणापरिमाणानुगमकी अपेक्षा परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा सदृश धननाली वर्गणारूपसे जघन्यपदकी अपेक्षा भी और उत्कृष्टपदकी अपेक्षा भी कितनी हैं? अनन्त हैं। नानाश्रेणि जघन्य परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणासे सदृश धनवाली उत्कृष्ट परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणायें विशेष अधिक हैं। विशेष पुद्गलोंके अनन्त प्रथम वर्गमलप्रमाण है। द्विप्रदेशीद्रव्यवर्गणा सदृश धनकी अपेक्षा जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अनन्त है। परन्तु जघन्यसे उत्कृष्ट विशेष अधिक है। विशेष का प्रमाण कितना है ? पुद्गलोंके अनन्त प्रथम वर्गमूलप्रमाण है । इस प्रकार त्रिप्रदेशी वगणासे लेकर एक एक वर्गणाको ग्रहण कर उत्कृष्ट ध्रुवस्कन्धद्रव्यवर्गणा तक ले जाना चाहिए । पुनः उसके ऊपर प्रथम अचित अध्रुवस्कन्ध द्रव्यवर्गणाको सदृश धन-- वाली वर्गणायें कदाचित् है और कदाचित् नहीं है। यदि है तो एक है, दों है, तीन है इसप्रकार उत्कृष्टरूपसे सदृश धनवाली वर्गणायें अनन्त है । इस प्रकार दूसरी सांतर-निरन्तरवर्गणासे लेकर अलग अलग प्रत्येक वर्गणाका कथन कर उत्कृष्ट सान्त रनिरन्तरद्रव्यवर्गणा तक लेजाना चाहिए । परन्तु वहां जघन्यसे उत्कृष्ट वर्गणा अनन्तगुणी है। गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है। ४ ता०प्रती - वग्गणाए (ओ) होंति 'अ. का. प्रत्योः वग्गणाए होंति इति पाठः। ता प्रती० - धणि एहि परमाणु ' इति पाठः।*ता प्रती० 'जहण्णादो उक्कस्सिया पूण विसेसाहिया ' इति पाठ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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