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________________ ५, ६, ११६. ) बंघणाणुयोगद्दारे सेसाणुयोगद्दारपरूवणा ( १५७ उक्कस्सेण सत्त सरिसधणिया जीवा होंति । एवमेदाओ वि अनंताओ वग्गणाओ गदाओ । तो परदो जा अणंतरवग्गणा तिस्से वग्गणाए सिया अस्थि सिया णत्थि । जदि अत्थि तो एक्को वा दो वा तिष्णि वा जा उक्कस्सेण छ जीवा सरिसधणिया होंति । पुणो एदाओ वि अनंताओ वग्गणाओ गदाओ । तदो परदो जा अणंतरवग्गणा तिस्से सरिसधणियवग्गणाओ सिया अस्थि सिया णत्थि । जदि अत्थि तो एक्को वा दो वा तिष्णि वा जा उक्कस्सेण पंच सरिसधणिया जीवा होंति । पुणो एवाओ वि अनंताओ वग्गणाओ गदाओ । तदो परदो जा अणंतरवग्गणा तिस्से सरिसधणियवग्गणाओ सिया अत्थि सिया णत्थि । जदि अस्थि तो एक्को वा दो वा तिणि वा जा उक्कस्सेण चत्तारि सरिसधणियजीवा होंति । पुणो एदाओ वि अनंताओ वग्गणाओ गदाओ । तदो परदो जा अणंतरवग्गणा तिस्से सरिसधणियवग्गणाओ सिया अत्थि सिया णत्थि । जदि अत्थि तो एक्को वा दो वा तिणि वा जा उक्कस्सेण तिग्णिसरिसधणियजीवा लम्भंति । पुणो एवाओ वि अनंताओ वग्गणाजो गदाउो । तदो परदो जा अनंत रवग्गणा तिस्से दव्वाणि सिया अत्थि सिया णत्थि । जदि अत्थि तो उक्कस्सेग सरिसधनिया दो जीवा होंति । तदो परदो जाओ अनंताओ वग्गणाओ तासिमेसेत्र कमो वत्तव्वो जाव भवसिद्धियपाओग्गवन्गणाणं दुचरिमवग्गणे त्ति । पुणो भवसिद्धियचरिमवग्गणाए वग्गणाओ सिया अत्थिसिया गत्थि । जदि अस्थि तो जहण्णेण एक्को उक्कस्सेण दो सरिसधणियकदाचित् नहीं हैं । यदि है तो एक है, दो हैं, तीन हैं, इसप्रकार उत्कृष्टरूपसे सदृश धनवाले सात जीव हैं । इसप्रकार ये भी अनन्त वर्गणायें गत हो जाती हैं। पुनः उससे आगे जो अनन्तर वर्गणा है उस वर्गणाकी वर्गणायें कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं । यदि हैं तो एक है, दो हैं, तीन हैं, इसप्रकार उत्कृष्टरूपसे धनवाले छह जीव हैं। पुनः ये भी अनन्त वर्गणायें गत हो जाती हैं । तदनन्तर उससे आगे जो अनन्तर वर्गणा है उसकी सदृश घनवाली वर्गणायें कदाचित् है और कदाचित् नहीं । यदि हैं तो एक है, दो हैं, तीन हैं, इसप्रकार उत्कृष्टरूपसे सदृश धनवाले पाँच जीव हैं। पुनः ये भी अनन्त वर्गणायें गत हो जाती है । पुनः उससे आगे जो अनन्तर वर्गणा है उसकी सदृश धनवाली वर्गणायें कदाचित् है और कदाचित् नहीं है । यदि है तो एक है, दो है, तीन है, इस प्रकार उत्कृष्टरूपसे सदृश धनवाली जीव चार है । पुनः ये भी अनन्त वर्गणायें गत हो जाती है। उससे आगं जो अनन्तर वर्गण है उसकी सदृश धनवाली वर्गणायें कदाचित् है और कदाचित् नहीं है । यदि है तो एक है, दो है, तीन है, इस प्रकार सदृश धनवाले तीन जीव प्राप्त होते है । पुनः ये भी अनन्तर वर्गणायें गत हो जाती है । उससे आगे जो अनन्तर वर्गणा है उसके द्रव्य कदाचित् है और कदाचित् नहीं है । यदि है तो उत्कृष्टरूपसे सदृश धनवाले दो जीव होते है । उससे आगे जो अनन्त वर्गणायें है उनका भव्यों के वर्गणाओंका द्विचरम वर्गणाके प्राप्त होने तक यहो योग्य अन्तिम वर्गणाकी वर्गणायें जघन्य से एक है और उत्कृष्ट तो For Private & Personal Use Only क्रम कहना चाहिए । और कदाचित् नहीं है Jain Education International पुनः । योग्य भव्यों के यदि है कदाचित् है रूप से सदश www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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