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________________ ५, ६, ११६. ) बंधणाणुयोगद्दारे सेसाणुयोगद्दारपरूवणा ( १५१ गच्छमाणजीवेहि य पडिसमयमवचयावचयभावं गच्छमाणाणं सरिसधणियाणं वग्गणाणमावलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताणमसंखेज्जलोगपोग्गलपरियट्टमेत्तकालवढाणं ण जज्जदे। ण च असंखेज्जलोगमेत्तसरिसधणियवग्गगाओ अस्थि3 जवमझपरूवणाए सह विरोहादो ति । तम्हा एदेसिमेगसेडिवग्गणाणं कालो जाणिय वत्तव्यो । एत्तियकालो ति ण वयं वोत्तुं समत्था; अलद्धवदेसत्तादो । लद्धवदेसे वि वा धुवलंभादो । अथवा णेपो द्वाणणिबंधणवग्गणाणमुक्कस्सकालो किंतु जीवणिबंधणाणं । ण च एदासि सेचीयभावेण अणंतकाले परूविज्जमाणे विरोहो अत्थि; तण्णिबंधणाणुवलंभादो । अहवा आगमो अतक्कगोयरो ति पुग्विल्लकालो चेव घेत्तन्वो । एवं णाणासेडिकालाणुगमो वि वत्तव्यो । णवरि परमाणुपोग्गलदव्ववग्गणप्पहुडि जाव महाखंधदम्ववग्गणे ति ताव वग्गणादेसेण सम्बद्धा । एवं कालाणुगमो त्ति समत्तमणुयोगद्दारं । एगसे डिवग्गणअतराणगमेण परमाणपोग्गलदस्वयगणाए अंतरं केवचिरं कालादो होदि? पत्थि अंतरं णिरंतरं । एवं दुपदेसियवग्गणप्पहुडि जावधुवखंधदनवग्गणे ति ताव णस्थि अंतरमिदि पत्तेयं पत्तेयं परूवेदव्वं । अचित्तअद्धवक्खंधदव्ववग्गणाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि? जहणे ग एगसमये ; उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा द्वारा भेद-संघातको प्राप्त होने वाले जीवों के द्वारा प्रत्येक समय में उपचा और अपवयभावका प्राप्त होंनेवाली ओर सदृश धर वाली आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण वगणाओं का असंख्यात लोक पुद्गलपरिवर्तन काल तक अवस्थान नहीं बन सकता है। असंख्यात लोकप्रमाण सदृश धनवाली वर्गणायें हैं यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, इस कथनका यवमध्यप्ररूपणाके साथ विरोध आता है। इसलिए इन एकश्रेणिवाणओंका काल जानकर कहना चाहिए । इतना काल है यह बात हम कहने के लिए समर्थ नहीं हैं, क्योंकि, इस विषय का कोई उपदेश नहीं पाया जाता । उपदेशके प्राप्त होनेपर भी ध्रुव प्राप्ति है। अथवा यह स्थान निबन्धन वर्गणाओंका उत्कृष्ट काल नहीं है किन्तु जीवनिबन्धन वर्गणाओं का उत्कृष्ट काल है । इनका से चीयरूपसे अनन्त काल कहनेपर विरोध आता है यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि, उसका कोई कारण उपलब्ध नहीं होता अथवा आगम तर्क का विषय नहीं है, इसलिये पहलेका ही काल ग्रहण करना चाहिए । इसी प्रकार नानाश्रेणि कालानुगमकी अपेक्षा भी कथन करना चाहिए । इतनी विशेषता है कि परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणासे लेकर महास्कन्धद्रव्यवर्गणा तक वर्गणादेशको अपेक्षा सर्वदा काल है। इस प्रकार कालानुगम अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। एकश्रेणिवर्गणाअन्तरानुगमकी अपेक्षा परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणाका अन्तरकाल कितना है? अन्तरकाल नहीं है, निरन्तर है । इसी प्रकार द्विप्रदेशो वर्गणासे लेकर ध्रुवस्कन्धद्रव्यवर्गणा तक प्रत्येक वर्गणाका अन्तर नहीं है ऐसा प्रत्येकवर्गणाकी अपेक्षा कथन करना चाहिए । अचित्तअध्रु. वस्कन्ध द्रध्यवर्गणाका अन्तरकाल कितना है? जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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