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________________ १५२ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६, ११६ पोग्गलपरियट्टा। पतेयसरीर-बादरणिगोद-सुहमणिगोदवग्गणाणमंतर केवचिरं कालादो होदि? जहण्णेणेगसमओ, उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । एवं सेचीयं पड्डच्च परूविदं । अत्थदो पुण केसिंचि सचित्तअद्धवक्खंधवग्गणट्ठाणाणमंतराभावेण होदव्वं; अण्णहा अदीदकाले सव्वट्ठाणेसु जीवसंभवप्पसंगादो । ण च एवं; असंखेज्जलोगगुणिदअदीदकालमेत्तट्ठाणाणं पगरिसेणुप्पण्णाणं सव्वट्ठाणावरणविरोहादो। एवं महाखंधदव्ववग्गणाए वि वत्तव्वं । णाणासेडिवग्गणंतराणगमो एवं चेव वत्तव्वो। णवरि अचित्तअद्धवक्खंधदव्ववग्गणाणं पत्थि अंतर जिरंतरं । सचित्तअद्धवक्खंधवग्गणाणं पि णत्थि अंतरं; सेचीयतणेण सव्वासिमस्थितुवलंभादो। एवं महाखंधदव्ववग्गणाए वि वत्तव्वं । एवमंतराणुगमो त्ति समत्तमणुयोगद्दारं । - एगसेडिवग्गणभावाणगमेण परमाणपोग्गलववग्गणाए को भावो? ओदइओ पारिणामिओ वा । जे ण जीवेण कदाचि वि परिणमिदा परिणामिदा वि संता जे विणट्ठोदइयभावा तेसि भावो पारिणामिओ। जे पुण अविणोदइयभावा परमाणू तेसिमोदइओ भावो चेव । एवं दुपदेसियवग्गणपडि जाव महाखंधददवग्गणे त्ति वत्तव्वं । एसा परूवणा एगपरमाणु पडच्च परूविदा। खंधं पडुच्च भण्णमाणे दुपदेसि. यादिवग्गणाणं ओदइयो पारिणामिओ ओदइयपारिणामिओ च तिविहो भावो होदि । - अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । प्रत्येकशरीर बादरनिगोद और सूक्ष्मनिगोद वर्गणाओंका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । यह सेचीयकी अपेक्षा कथन किया है। वास्तवमें तो किन्हीं सचित्तअध्रुवस्कन्धवर्गणास्थानोंको अन्तरसे रहित होना चाहिए, अन्यथा अतीत कालमें सब स्थानोंमें जीवोंकी सम्भावना प्राप्त होती है। परन्तु ऐसा है नहीं क्योंकि, उत्कृष्ट रूपसे उत्पन्न हुए असंख्यात लोकगणित अतीत कालप्रमाण स्थान सब स्थानों को पूरा करते हैं ऐसा होने में विरोध है । इसीप्रकार महास्कन्धद्रव्यवर्गणाके विषय में भी कहना चाहिए । नानाश्रेणिवर्गणाअन्तरानुगमकी अपेक्षा इसी प्रकार कहना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अचित्तअध्रुवस्कन्धद्रव्यवर्गणाओंका अन्तरकाल नहीं है वे निरन्तर है । सचित्त अध्रुवस्कन्धद्रव्यवर्गणाओंका भी अन्तरकाल नहीं है, क्योंकि, सेचीयपनेकी अपेक्षा सबका अस्तित्व पाया जाता है । इसीप्रकार महास्कन्धद्रव्य वर्गणाके विषय में भी कहना चाहिए । इस प्रकार अन्तरानुगम अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। एकश्रेणिवर्गणाभावानुगमकी अपेक्षा परमाणुपुद्गलद्रव्य वर्गणाका क्या भाव है ? औदयिक व पारिणामिक भाव है। जिस जीवके द्वारा कभी भी परिणमन नहीं किये गये और परिणमाये गये भी जो औदयिक भावके नाशको प्राप्त हुए हैं उनका परिणामिक भाव है । परन्तु जिन परमाणुओंका औदयिक भाव नष्ट नहीं हुआ है उनका औदयिक भाव ही है । इस प्रकार द्विप्रदेशी वर्गणासे लेकर महास्कन्धद्रव्यवर्गणा तक कहना चाहिए। यह प्ररूपणा एक परमाणुकी अपेक्षासे की है । स्कन्धकी अपेक्षा कथन करनेपर द्विप्रदेशी आदि वर्गणाओंका औदयिक भाव For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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