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________________ १५० ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड वग्गणाहिं च केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो सव्वलोगो वा । असंखेज्जपदेसियदव्ववग्गणप्पहुडि जाव सुहमणिगोदवग्गणे ति ताव एदासि वग्गजाणमेगसेडीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? अदीदवट्टमाणेण सव्वलोगो । महाखंधदन्ववग्गणाए केवडियं खेत्तं फोसिदं? वट्टमाणेण: लोगो देसूणो । अदीदेण सव्वलोगो। एवं णाणासेडिफोसणं परवेयव्वं । णवरि परमाणपोग्गलदव्ववग्गणप्पहुडि जाव सुहुमणिगोदवग्गणे ति ताव एदाहि वग्गणाहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सव्वलोगो। महाखंधदव्ववग्गणाए केवडियं खेत्तं फोसिद? लोगो देसूणो सव्वलोगो वा । एवं फोसणाणुगमो त्ति समत्तमयोगद्दारं । ___ एगसेडिकालाणुगमेण परमाणपोग्गलदव्ववग्गणा केवचिरं कालादो होदि ? वग्गणादेसेण सव्वद्धा । दुपदेसियवग्गणप्पहुडि जाव धुवखंधदव्ववग्गणे त्ति ताव पत्तय पत्तेयं एवं चेव सव्वत्थ वत्तव्वा । अचित्तअवखंधदव्ववग्गणा केवचिरं कालादो होदि? जहण्णण एगसमयं, उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । एवं णयां जाव महाखंधदव्ववग्गणे त्ति । पत्तैयसरीर बादरणिगोद-सुहमणिगोदवग्गणाणमोरालिय-तेजा-कम्मइयपरमाणुपोग्गलेहि तेसि विस्तासुवचयपोग्गलेहि य भेदसंघादं द्रव्यवर्गणाओंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । असंख्यातप्रदेशी द्रव्यवर्गणासे लेकर सूक्ष्म निगोद द्रव्यवर्गणा तक इन वर्गणाओंकी श्रेणिने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? अतीत और वर्तमान कालमें सब लोकका स्पर्शन किया है । महास्कन्धद्रव्यवर्गणाने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? वर्तमानमें कुछ कम लोकप्रमाण क्षेत्रका और अतीत काल में सब लोकका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार नानाश्रेणिका स्पर्शन कहना चाहिए । इतनी विशेषता है कि परमाणुयुद्गलद्रव्यवर्गणासे लेकर सूक्ष्म निगोदवर्गणा तक इन वर्गणाओंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । महास्कन्ध द्रव्यवर्गणाने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? कुछ कम लोकप्रमाण क्षेत्रका और सब लोकका स्पर्शन किया। इस प्रकार स्पर्शनानुगम अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। एकश्रेणिकालानुगमकी अपेक्षा परमाणुपुदगलद्रव्यवर्गणाका कितना काल है? वर्गणादेशकी अपेक्षा सब काल है । द्विप्रदेशी वर्गणासे लेकर ध्रुवस्कन्धद्रव्यवर्गणा तक प्रत्येक वर्गणाका सर्वत्र इसी प्रकार काल कहना चाहिए। अचित्त ध्रुवस्कन्धद्रव्यवर्गणाका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । इसी प्रकार महास्कन्धद्रव्यवर्गणा तक जानना चाहिए । प्रत्येकशरीर, बादरनिगोद और सूक्ष्मनिगोद वर्गणाओं के औदारिकशरीर, तेजसशरीर और कार्मणशरीरोंके पुद्गलों द्वारा तथा उनके विस्रसोपचयों अ. का. प्रत्योः · महाखधदव्यवग्गणाए केवडियं खेत फोसिदं, अदीदवद्रमाणेण सव्वलोगो महाखंधदव्ववग्गणाए केवडियं खेत्त फ्रोसिदं वद्रमाणेण ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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