SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५, ६, ११६. ) बंधणाणुयोगद्दारे सेसाणुयोगद्दारपरूवणा (१३५ त्ति? ग एस दोसो; पुव्वाइरियवक्खाणक्कमजाणावणठं0 तप्परूवणाकरणादो किमट्ठमणुयोगद्दारा णाम तम्हि चेव तत्थतणसयलत्थपरूवणं संखित्तवयणकलावेण कुणंति? वचिजोगासवदुवारेण ढुक्कमाणकम्मणिरोहट्ठ। तम्हा दोण्णमणुयोगद्दाराणं पुचिल्लाणं परूवणा देसामासिय त्ति काऊण सेसबारसण्णमणुयोगहाराणं कस्सामो । तं जहा एगसेडिवग्गणाधवाधवाणगमेण परमाणुपोग्गलदव्ववग्गणा किं धवा किमद्धवा ? धुवा, अदीदाणागदवट्टमाणकालेसु एयपदेसिय परमाणुपोग्गलवग्मणविणासाभावादो । एवं संते एगपरमाणुस्स परमाणुभावेण सव्वद्धमवट्ठाणं पाव दि ति भणिदे ण एस दोसो; एक्कम्हि परमाणुम्हि विणठे वि असि तज्जादीणं परमाणणं संभवेण एयपदेसियवग्गणाए धुवत्तविरोहादो एगसेडिपरूवणाए जाणासेडिपरमाणणं कथं गहणं कीरदे? ण एस दोसो; एगणेव परमाणुणा एगसेडी* घेप्पदि ति णियमाभावादो । दुपदेसियवग्गणप्पहुडि जाव धुवखंधदव्ववग्गणे ति ताव एदाओ वग्गणाओ कि धुवाओ किमद्धवाओ? एत्थ पुव्वं व परू वणा कायव्वा; धुवत्तं पडि भेदाभावादो। सांतरणिरंतरदव्ववग्गणाओ जा. समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, पूर्व आचार्योंके व्याख्यानके क्रमका ज्ञान कराने के लिए शेष बारह अनयोगद्वारोंका कथन नहीं किया है। शंका-अनुयोगद्वार वहींपर उसके सकल अर्थका कथन संक्षिप्त वचनकलापके द्वारा किसलिए करते हैं ? समाधान- वचनयोगरूप आस्रवके द्वारा प्राप्त होने वाले कर्मों का निरोध करने के लिए अनुयोगद्वार सकल अर्थका संक्षिप्त वचनकलापके द्वारा कथन करते हैं । इसलिए पूर्वोक्त दो अनुयोगद्वारोंका कथन देशामर्षक है ऐसा जान कर शेष बारह अनुयोगद्वारोंका कथन करते हैं। यथा-एकश्रेणीवर्गणा ध्रुवाध्रुवानुगमकी अपेक्षा परमाणुपुद्गल द्रव्यवर्गणा क्या ध्रुव है या क्या अध्रुव है ? ध्रुव है, क्योंकि, अतीत, अनागत और वर्तमान कालमें एकप्रदेशी परमाणुपुद्गलवर्गणाका विनाश नहीं होता। शंका-ऐसा होने पर एक परमाणुका परमाणुरूपसे सर्वदा अवस्थान प्राप्त होता है? समाधान-यह कोई दोष नहीं हैं, क्योंकि, एक परमाणु के नष्ट होनेपर भी तज्जातीय अन्य परमाणुओंके सम्भव होनेसे एकप्रदेशी वर्गणाके ध्रुव होने में कोई विरोध नहीं आता। शंका-एकश्रेणिकी प्ररूपणामे नानाश्रेणिरूप परमाणुओंका ग्रहण कैसे करते हैं ? समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, इसी परमाणुसे एकश्रेणिका ग्रहण होता है ऐसा कोई नियम नहीं है। द्विप्रदेशी वर्गणासे लेकर ध्रुवस्कन्धवर्गणा तक ये वर्गणायें क्या ध्रुव हैं या क्या अध्रुव हैं ? यहां पहले के समान कथन करना चाहिए, क्योंकि, ध्रुवत्वके प्रति कोई भेद नहीं है । जो ता०प्रतो '-घवखाणक्क मेजाणावणठंति पाठः। आoप्रती 'णामंहि चेव' इति पाठः । प्रतिष से सबादरसणि मणियोग-' इति पाठ ] * ता० प्रतौ 'एगएगसेडी' इति पाठ 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy