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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
(५, ६, ११६.
दव्ववग्गणा होदि । तत्थेव एगादिअनंतेसु समागदेसु संघादेण अण्णा महाखंधदव्ववगणा होदि । अवकमेण उवचयावचयेहि वि भेदसंघादेण महाखंधदव्दवग्गणा होदि । एवं तीहि पयारेहि सव्वत्थ भेदसंघादस्स अत्थपरूवणा कायव्वा । उवरिमाणं भट्ठा अन्वग्गणुपत्ती भेदजणिदा णाम । हेट्टिमाणं वग्गणाणं समागमेण सरिसधणियसरूवेण अण्णवग्गणप्पत्ती संघादजा णाम । ण च एदाओ दो वि एत्थ अत्थि, वग्गगबहुत्ताभावादी । एत्रमेगसेडिवग्गणणिरुवणा समत्ता ।
संपहि णाणासेडिवग्गणाणिरूवणा एवं चैव कायव्या । का णाणासेडी णाम ? सरिसधणियाणं मुत्त/हलोलिसमाणपंतीयो णाणासेडि नाम ।
एवं वग्गणाणिरुवणेत्ति समत्तमणुयोगद्दारं ।
चोद्दस अणुयोगद्दारेसु दोष्णमणुयोगद्दाराणं परूवणं काऊ सेसवारसणमणुयोगद्दारा सुत्तकारण किमट्ठे परूवणा ण कदा |ण ताव अजाणतेण ण कढा; चवीस अणुयोगद्दार सरूवमहाकम्मपय डिपा हुडपारयस्त भूदबलिभयवंतस्स तदपरिविरोहादो | ण विस्सरणालुएण होंतेण ण कदा; अप्पमत्तस्स तदसंभवादो
अन्य महास्कन्ध द्रव्यवर्गणा होती है । उसीमें एक आदि अनन्त परमाणु पुद्गलों के आ जानेपर संघातसे अन्य महास्कन्ध वर्गणा होती है । तथा एक साथ उपचय और अपचय होनेसे भेदसंघातसे महास्कन्धद्रव्यवर्गणा होती है । इस प्रकार सर्वत्र तीन प्रकारसे भेद-संघातकी अर्थ प्ररूपणा करनी चाहिए । उपरिम वर्गणाओंके भेदसे नीचे अपूर्व वर्गणाकी उत्पत्ति भेद जनित कही जाती है और नीचेकी वर्गणाओंके समागम से सदृशधनरूपसे अन्य वर्गणाकी उत्पत्ति संघात कही जाती है । परन्तु ये दोनों यहाँ पर नहीं हैं, क्योंकि, यहाँ पर बहुत वर्गणाओंका अभाव है ।
इस प्रकार एकश्रेणिवर्गणानिरूपणा समाप्त हुई ।
नानाश्रेणिवर्गणा निरूपणा इसी प्रकार करनी चाहिए। शंका- नानाश्रेणि किसे कहते हैं ?
समाधान- सदृश धनवालोंकी मुक्ताफलोंकी पंक्तिके समान पंक्तिको नानाश्रेणि कहते हैं । इस प्रकार वर्गणानिरूपणा अनुयोगद्वार समाप्त हुआ ।
शंका- सूत्रकारने चौदह अनुयोगद्वारों में से दो अनुयोगद्वारोंका कथन करके शेष बारह अनुयोगद्वारोंका कथन किस लिए नहीं किया है । अजानकार होनेसे नहीं किया है यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि, चौबीस अनुयोगद्वारस्वरूप महाकर्मप्रकृति प्राभृतके पारगामी भगवान् भूतबलिको उनका अजानकार मानने में विरोध है । विस्मरणशील होनेसे नहीं किया है यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, अप्रमत्तका विस्मरणशील होना सम्भव नहीं है ।
आ० प्रती '
योगद्दारा
आ० प्रती ' सव्वत्थ भेदपरूवणा' इति पाठः । सुत्तकारेण इति पाठ: [
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