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________________ १३२) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड सत्थाणेण भेदसंघादेण ।। ११४ ॥ ण बादरणिगोदवग्गणाणं संघादेण एगसुहमणिगोदवग्गणा होदि; एगसुहुमणिगोदवग्गणजीवमेत्तबादरणिगोदजीवेहि चेव आरद्धसुहमणिगोदवग्गणाभावादो। तं पि कुदो णव्वदे? हेदिल्लीणं संघादेण ण उप्पज्जदि ति वयगादो । बादरणिगोदाणं सुहमणिगोदभावविरोहादो वा बादरणिगोदेहि सुहमणिगोदवग्गणा णारब्भदि । जदि सुहुमो ण बादरो अह बादरो ण सुहुमो त्ति तेण सुहुमणिगोदेहि चेव सुहुमगिगोददव्ववगणा आरब्भदि ति भणिदं होदि। ण च बादरणिगोदाणं पत्तेयसरीराणं वा सुहमणिगोदेसेसुप्पण्णाणं बादरणिगोदत्तं पत्तेयसरीरत्तं वा अस्थि विरुद्धपरिणामाणमक्कमेण वृत्तिविरोहादो। एसत्थो पहाणो पत्तेय-बादरणिगोदवग्गणासु वि वत्तव्यो । महाखंधभेदेण वि सुहमणिगोदवाणा ण होदि; पुवुत्तदोसप्पसंगादो। किंतु भेदसंघादेण होदि । सुहमणिगोदवियप्पवग्गणाणं भेदसंघादेण सुहमणिगोदवग्गणा उप्पज्जदि ति भणिदं होदि । एकिकस्से सुहमणिगोदवग्गणाए एगविस्सासुवचयपरमाणुम्हि वडिदे अण्णा वग्गणा होदि; एगपरमाणुणा अहियत्तुवलंभादो । एवमणिच्छिजमाणे पुव्वं परूविट्ठाणामभावो होज्ज । ण च एवं, तम्हा हेढिल्लोणं द्विदीणं दव्वाणं समुदय स्वस्थानको अपेक्षा भेद-संघातसे होती है ॥ ११४ ।।। बादरनिगोदवर्गणाओंके संघातसे एक सूक्ष्म निगोदवर्गणा नहीं होती, क्योंकि, एक सूक्ष्मनिगोदवर्गणा में जितने जीव हैं उतने बादर निगोद जीवों के द्वारा आरम्भ की गई सूक्ष्मनिगोदवर्गणाका अभाव है। शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-नीचेकी वर्गणाओंके संघातसे नहीं होती इस वचनसे जाना जाता है। अथवा बादर निगोदोंका सूक्ष्म निगोदरूपसे होने में विरोध है, इसलिए बादर निगोद सूक्ष्म । नगोदवर्गणाका आरम्भ नहीं करते । जब कि सूक्ष्म बादर नहीं है और बादर सूक्ष्म नहीं है, इसलिए सूक्ष्म निगोदोंके द्वारा ही सूक्ष्म निगोदद्रव्यवर्गणा आरम्भ की जाती है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । बादर निगोद और प्रत्येकशरीर जीवोंके मर कर सूक्ष्म निगोदों में उत्पन्न होने पर उनका बादर निगोदपन और प्रत्येकशरीरपन नहीं रहता, क्योंकि, विरुद्ध परिणामोंकी युगपत वृत्ति होने में विरोध हैं। यहां यह अर्थ प्रधान है। इसे प्रत्येकशरीरवर्गणा और बादरनिगोदवर्गणा में भी कहना चाहिए। महास्कन्धके भेदसे भी सूक्ष्मनिगोदवर्गणा नहीं होती, क्योंकि, पुर्वोक्त दोषों का प्रसंग आता है। किन्तु भेद-संघातसे होती है । सूक्ष्म निगोदके अवान्तर भेदरूप वर्गणाओंके भेद-संघातसे सूक्ष्म निगोदवर्गणा उत्पन्न होती है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। शंका-एक सूक्ष्मनिगोदवर्गणामें एक विम्रसोपचय परमाणुके बढ़ने पर अन्य वर्गणा होती है, क्योंकि, वहां एक परमाणु अधिक देखा जाता है। ऐसा नहीं मानने पर पहले कहे गये स्थानोंका अभाव होता है । परन्तु ऐसा है नहीं, इसलिए नीचेकी स्थितिवाले द्रव्योंके समुदय ता० प्रती ' -वग्गण भावदो ' इति पाठः । अ-आ-प्रत्योः ' एगवग्गणाभावादो ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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