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________________ ५, ६, १०१. ) बंधाणुयोगद्दारे वग्गणणिरुवणा परमाणुपले हितो चेवृप्पण्णाओ तेण सव्वास वग्गणाणं परमाणुपोग्गलदव्ववग्गणा ति सण्णा । तिस्से वग्गणाए एयादिपदेसा जेण विसेसणं तेण दोष्णं पि गहणं कायव्वमिदि । खंधाणं विहडणं भेदो गाम । परमाणुपोग्गलसमुदयसमागमो संघादो णाम । भेदं गंतूण पुणो समागमो भेदसंघादो नाम । संपहि एसा एयपदेसियपरमाणुपोग्गल - दव्ववग्गणा किं भेदेण उप्पज्जदि आहो संघादेण किं वा भेदसंघादेणे त्ति पुच्छा कदा होदि । तणिच्छयजणणटुमुत्तरसुत्तं भणदि -- उवरिल्लीणं दव्वाणं भेदेण ।। ९९ ॥ दुपदे सियादि उपरिमवग्गणाणं भेदेणेव एयपदेसिया वग्गणा होदि; सुहुमस्स थूलभेदादो चेव उत्पत्तिदंसणादो । संघादेण भेदसंघादेण वा एयपदे सियपरमाणुपोग्गलदव्ववग्गणा ण होदि; एवम्हादो हेट्ठा वग्गणाणमभावादो । इमा दुपदेसियपरमाणुपोग्गलदव्ववग्गणा णाम किं भेदेण किं संघादेण किं भेदसंघादेण ॥ १०० ॥ ( १२१ सुमं । उवरिल्लीणं वाणं भेदेण हेट्ठिल्लीणं दव्वाणं संघादेण सत्याणेण भेदसंघादेण ।। १०१ ॥ समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, यतः सब वर्गणायें परमाणु पुद्गलोंसे ही उत्पन्न हुई हैं, अतः सब वर्गणाओं की परमाणु पुद्गलद्रव्यवर्गणा यह संज्ञा है । तथा उस वर्गणा एकादि प्रदेश यतः विशेषण हैं. अतः एकप्रदेशी और परमाणुपुद्गल इन दोनों पदोंका ग्रहण करना चाहिए । स्कन्धों का विभाग होना भेद है । परमाणुपुद्गलोंका समुदाय समागम होना संघात है । भेदको प्राप्त होकर पुनः समागम होना भेदसंघात है । यह एकप्रदेशी परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा क्या भेदसे उत्पन्न होती है या संघातसे उत्पन्न होती है या क्या भेद-संघातसे उत्पन्न होती है, इस प्रकार इस सूत्र द्वारा पृच्छा की गई है । अब उसका निश्चय करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैंऊपर के द्रव्योंके भेदसे उत्पन्न होती है ॥ ९९ ॥ द्विप्रदेशी आदि उपरिम वर्गणाओंके भेदसे ही एकप्रदेशी वर्गणा होती है, क्योंकि, सूक्ष्मकी स्थूलके भेदसे ही उत्पत्ति देखी जाती है । संघातसे और भेद- संघातसे एकप्रदेशी परमाणु पुद्गलद्रव्यवर्गणा नहीं होती है, क्योंकि, इससे नीचे अन्य वर्गणाओंका अभाव है । यह द्विप्रदेशी परमाणुपुद् गलद्रव्यवर्गणा क्या भेदसे होती है, क्या संघातसे होती है या क्या भेद-संघातसे होती है ॥ १०० ॥ सुगम है । ऊपरके द्रव्योंके भेदसे और नीचेके द्रव्योंके संघातसे तथा स्वस्थानमें भेदसंघातसे होती है ।। १०१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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