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________________ ८४) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५. ६ ९३. उप्पज्जदि । सा च जहण्णादो अणंतगणा । को गणगारो ? सव्वजीवाणमसंखेज्जदिभागो। तं जहा- सधजीवसि असंखेज्जलोगमेत्तसरीरेहि ओवट्टिय आवलियाए असंखेज्जदिभागेण असंखेज्जलोगेहि एगजीवोरालिय-तेजा-कम्मइयदत्वेण च गणिय रूवे अवणिदे उक्कस्सधुवसुण्णदव्ववग्गणा होदि । पुणो इममुक्कस्सपत्तेयसरीरवग्गणाए रूवाहियाए अवहिरिदे सव्वजीवरासिरस असंखेज्जदिभागो आगच्छदि ति पुव्वमणिदगुणगारो चेव होदि ति घेतव्वं । एसा अट्ठारसमो वग्गणा १८ एयंतवाइदिद्विस्स व्व सव्वकालं सुण्णभावेणवद्विदा । धुवसण्णदव्ववग्गणाणमवरि बादरणिगोददव्ववग्गणा णाम ।९३। उक्कस्सधवसुण्णदव्ववग्गणाए एगरूवे पक्खित्तै सवजहणिया बादरणिगोददव्ववग्गणा होदि । सा कत्थ दिस्सदि ? खीणकसायचरिमसमए। किविहे खोणकसाए होदि ति वृत्ते वुच्चदे- जो जीवो खविदकम्मसियलक्खणेणागंतूण पुवकोडाउएसु मणुस्सेसु उववण्णो । तदो गम्भादिअट्ठवस्साणमंतोमहुत्तब्भहियाणमवरि सम्मत्तं संजमं च जुगवं घेत्तूण पुणो कम्मरस उक्फस्सगुणसे डिणिज्जरं देसूणपुवकोडि कादूण अंतोमहुत्तावसेसे सिज्झदव्वए त्ति खवगसेढिमारूढो। तदो खवगसेडिम्म सन्चुक्कस्स वह जघन्य वर्गणासे अनन्त गुणी है। गुणकार क्या है ? सब जीवोंका असख्यातवां भागप्रमाण गुणकार है। यथा- सब जीवराशिको असंख्यात लोकप्रमाण शरीरोंसे भाजित कर पुनः आवलीके असंख्यातवें भागसे, असंख्यात लोकोंसे और एक जीवके औदारिक, तैजस व कार्मणशरीरके द्रव्यसे गुणित कर जो लब्ध आवे उसमें से एक कम करने पर उत्कृष्ट ध्रुवशून्य द्रव्यवर्गणा होती है। पुनः इसे एक अधिक उत्कृष्ट प्रत्येकशरीर द्रव्यवर्गगासे भाजित करने पर सब जीवराशिका असंख्यातवां भाग आता है। इसलिए पहले कहा गया गुणकार ही होता है ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिए। यह अठारवीं वर्गणा है १८ । एकान्तवादी दृष्टिके समान यह सदा काल शून्यरूपसे अवस्थित है। ध्रुवशून्य द्रव्यवर्गणाओंके ऊपर बादरनिगोद द्रव्यवर्गणा है ॥९३ ॥ उत्कृष्ट ध्रुवशून्य द्रव्यवर्गणामें एक अंकके मिलाने पर सबसे जघन्य बादर निगोद द्रव्यवर्गणा होती है। शंका-- वह कहां दिखाई देती है ? समाधान-- क्षीणकषायके अन्तिम समयमें । किस प्रकारके क्षीणकषायमें होती है ऐसा प्रश्न करने पर उत्तर देते हैं- जो जीव क्षपित कर्माशिक विधिसे आकर पूर्वकोटिकी आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। अनन्तर गर्भसे लेकर आठ वर्ष और अन्तर्मुहूर्तका होने पर सम्यक्त्व और संयमको युगपत् ग्रहण करके पुन: कुछ कम पूर्वकोटि काल तक कर्मकी उत्कृष्ट गुणश्रेणि निर्जरा करके सिद्ध होने के लिए अन्तर्मुहूर्त काल अवशेष रहने पर क्षपकश्रेणि पर आरोहण किया । अनन्तर क्षपकश्रेणिमें सबसे उत्कृष्ट विशुद्धि के ४ अ० का० प्रत्योः '-सेव्व ' इति पाठः ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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