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________________ ( ८५ ५, ६, ९३. ) बंधणाणुयोगद्दारे बादरनिगोददव्ववग्गणा विसोहीए कम्मणिज्जरं करेमाणस्स खीणकसायस्स पढमसमए अणंता बादरणिगोद. जीवा मरति । बिदियसमए विसेसाहिया जीवा मरंति । केत्तियमेतेण विसेसाहिया? पढमसमए मदजीवपमाणमावलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडेदूण तत्थ एगखंडमेत्तेण । एवं तदियसमयादिसु विसेसाहिया विसेसाहिया मरंति जाव खोणकसायद्धाए पढमसमयप्पहडि आवलियपुधत्तं गदं ति। तेण परं संखेज्जदिभागब्भहिया संखेज्जदिभागभहिया मरंति जाव खीणकसायद्धाए आवलियाए असंखेज्जदिभागो सेसो ति । तदो उरिमाणंतरसमए असंखेज्जगणा मरंति । एवमसंखेज्जगुणा असंखेज्जगणा भरंति जाब खीणकप्तायचरिमसमओ त्ति । गुणगारो पुण सव्वत्य पलिदोवमस्स असं. खेज्जदिभागो। विसेसाहियमरणचरिमससए मदजीवे तप्पाओग्गेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण गणिदे गुणसेडिमरणपढमसमए मदजीवपमाणं होदि त्ति घेत्तव्वं । एवमरि पि जाणिदूण वत्तव्वं जाव खीणकसायचरिमसमओ त्ति । एसो गुणगारो समयं पडि मरंतजीवाणमेव परूवेदव्वो, ण पुलवियाणं । तं कधं णव्वदे ? खीणकसायचरिमसमए आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तणिगोदाणं ति उवरि भण्णमाणचूलियासुत्तादो। के णिगोदा णाम ? पुलवियाओ णिगोदा ति भणंति । द्वारा कर्मनिर्जरा करके क्षीणकषाय हुए इस जीवके प्रथम समयमें अनन्त बादर निगोद जीव मरते हैं। दूसरे समयमें विशेष अधिक जीव मरते हैं। कितने विशेष अधिक जीव मरते हैं ? प्रथम समयमें मरे हुए जीवोंके प्रमाणमें आवलीके असंख्यातवें भागका भाग देने पर जो एक भाग लब्ध आवे उतने विशेष अधिक जीव मरते हैं। इसी प्रकार तीसरे आदि समयोंमें विशेष अधिक विशेष अधिक जीव मरते हैं। यह क्रम क्षीणकषायके प्रथम समयसे लेकर आवलिपृथक्त्व काल तक चाल रहता है। इसके आगे संख्यातवां भाग अधिक संख्यातवां भाग अधिक मरते हैं। और यह क्रम क्षीणकषायके काल में आवलिका असंख्यातवां भाग काल शेष रहने तक चालू रहता है। इसके आगेके लगे हुए समयमें असंख्यातगुण जीव मरते हैं। इस प्रकार क्षीणकषायके अन्तिम समय तक असंख्यातगणे जीव मरते हैं। गणकार सर्वत्र पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। विशेषाधिक मरनेके अन्तिम समयमें मरनेवाले जीवोंके प्रमाणको पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर गुणश्रेणि क्रमसे मरनेके प्रथम समयमें मरे हुए जीवोंका प्रमाण होता है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए । इसी प्रकार आगे भी क्षीणकषायके अन्तिम समय तक जानकर कथन करना चाहिए। यह गुणकार प्रत्येक समय में मरनेवाले जीवोंका ही कहना चाहिए, पुलवी जीवोंका नहीं। शंका-- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-- आगे कहे जानेवाले चूलिकाके 'खींगकसायचरिमसमए आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तणिगोदाणं' इस सूत्रसे जाना जाता है। शंका-- निगोद किन्हें कहते हैं ? समाधान-- पुलवियोंको निगोद कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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