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छक्खंडागमे वग्गणा - खंड
६, ९१.
( ५, गुणसे जिज्जराए अधट्टिदिगलणाएं च गलिदतेजा - कम्मइयदव्वत्तादो । च गलिदतेजा-कम्मइयदव्वेहितो आहारसरीरदव्ववग्गणाए बहुत्तमत्थि; तस्स तदतिमभागादो। संपहि एत्थ कम्मट्ठिदिकालसंचिदो अट्ठविहकम्मपदेस कलाओ कम्मइयसरीरं णाम । छावद्विसागरोवमसंचिदणोकम्मपदेसकलाओ तेजासरीरं नाम तेत्तीससागरोवमसंचिद-णोकम्मपदेसकलाओ वेडव्वियसरीरं नाम खुद्दाभवग्गहगप्पहूडि जाव तिणिपलिदोवमसंचिदपदेसकलाओ ओरालियसरीरं णाम । अंतोमहत्तसंचिदपदेसकलाओ आहारसरीरं णाम । तेण णेरइयचरिमसमए चैव उक्कस्ससामित्तं दादव्वं ।
प्रत्येकशरीर वर्गणा उत्कृष्ट नहीं होती; क्योंकि, उनके गुणश्रेणि निर्जराके द्वारा और अधःस्थितिगलनाके द्वारा तैजस और कार्मणशरीरका द्रव्य गलित हो जाता है । यदि कहा जाय कि गलित हुए तेजस और कार्मगशरीर के द्रव्यसे आहारकशरीरकी द्रव्यवर्गणायें बहुत होती हैं सो यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, यह उनके अनन्तवें भागप्रमाण होता है । अतः प्रमत्तसंत गुणस्थान में प्रत्येक शरीर वर्गणा उत्कृष्ट नहीं कही ।
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यहाँ पर कर्मस्थिति कालके भीतर संचित हुए आठ प्रकारका कर्मप्रदेश समुदायकी कार्मणशरीर संज्ञा है । छयासठ सागर कालके भीतर संचित हुए नोकर्मप्रदेश समुदायकी तैजसशरीर संज्ञा है । तेतीस सागर कालके भीतर संचित हुए नोकर्मप्रदेश समुदायको वैक्रियिकशरीर संज्ञा है । क्षुल्लकभवग्रहण कालसे लेकर तीन पल्य कालके भीतर संचित हुए नोकर्मप्रदेश समुदायकी औदारिकशरीर संज्ञा है और अन्तर्मुहूर्त कालके भीतर संचित हुए नोकर्मप्रदेश समुदायकी आहारकशरीर संज्ञा है, इसलिए नारकी जीवके अन्तिम समय में ही उत्कृष्ट स्वामित्व देना चाहिए ।
विशेषार्थ -- यहां पर प्रत्येकशरीर द्रव्य वर्गणाका विचार करते हुए वह एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट किस जीवके होती है इस बातका विस्तारसे निरूपण किया गया है । जिन शरीरोंका स्वामी एक ही जीव होता है और उनके आश्रयसे अन्य जीव नहीं उपलब्ध होते उन शरीरोंके समुदायका नाम प्रत्येकशरीर द्रव्य वगणा है । आगम में ऐसे आठ प्रकार के जीव बतलाये हैं जिनके शरीरोंके आश्रयसे अन्य जीव नहीं रहते । वे आठ प्रकारके जीव ये हैं- केवली जिन, देव, नारकी, आहारकशरीर, पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक। यहां सर्व प्रथम यह देखना है कि इन जीवोंमें जघन्य प्रत्येकशरीर द्रव्यवर्गण का स्वामी कौन जीव है और उत्कृष्ट प्रत्येकशरीर द्रव्यवर्गणाका स्वामी कौन जोव है जीव दो प्रकार के होते हैं- एक क्षपितकर्माशिक और दूसरे गुणितकर्माशिक । जो क्षपितकर्माशिक जीव होते हैं उनके कर्म वर्गणायें उत्तरोत्तर हृस्व होती जाती हैं और अयोगी के अंतिम समय में वे सबसे न्यून होती हैं, इसलिये अयोगी जिनके अन्तिम समय में प्रत्येकशरीर द्रव्यवर्गणा सबसे जघन्य होती है । यहां इस वर्गणासे औदारिकशरीर, तैजसशरीर और कार्मणशरीर तथा इनके विस्रसोपचय इन छह पुञ्जों का ग्रहण होता है । गुणित कर्माशिक जीव वे कहलाते हैं जिनके कर्मवर्गणायें उत्तरोत्तर महापरिणामवाली होती जाती हैं और तेतीस सागरकी आयुवाले नारकी जीवके अन्तिम समय में वे सबसे उत्कृष्ट होती हैं, इसलिये नारकी जीवके अन्तिम समय में
ता० आ० प्रत्यो: ' अवद्विदिगलणाए' इति पाठ: ]
ता० प्रती च गलिदतेजाकरमइयदव्वत्तादो 1 ण इति पाठो नोपलभ्यते ।
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