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________________ ७० ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड वचयाणं वडढी संभवदि तत्तियमेत्तपरमाहि अब्भहियत्तं । जोगादो वड्ढी कि ण घे पदे? ण, तिण्णं सरीराणमक्कमेण वुट्टिप्पसंगादो ।। पुणो अण्णो जीवो खविदकम्मसिओ विस्ससूवचएहि सह ओरालिय-तेजासरीराणि तप्पाओग्गुक्कस्साणि कादण कम्मइयसरीरविस्ससुवचया परमाणुतरकमेण वड्ढावेदव्वा जाव सम्बजोवेहि अणंतगुणमेत्ता परमाणू वडिदा त्ति । तदो अण्णो जीवो पुरवं व खविदकम्मंसिओ अजोगिचरिमसमए अच्छि दो । ताधे अण्णमपुणरुतढाणं होदि । पुणो अण्णो जीवो खविदकम्मंसिओ विस्ससुवचयहि सह तप्पाओग्गुक्कस्सीकयओरालिय-तेजासरीरो कम्मइयसरीरं पडि खविदकम्मंसिओ अजोगिरिमसमए कम्मइयसरीरविस्स सुवचयजहण्णपुंज दुपरमाणुत्तरं कादूण अच्छिदो । ताघे अण्णमपुणरुत्तट्ठाणं होदि । एवं कम्मइयपरोरविस्ससोवचया परमाणु *त्तरकमेण वड्ढावेदव्वा जाव सव्वजोवेहि अणंतगणमेत्ता परमाण वडिदा ति । तदो अण्णो जीवो पुव्वं व खविदकम्मंसिओ अजोगिचरिमसमए कम्मइयसरीरं परमाणुत्तरं कादूण कम्मइयसरीरविस्ससुवचयपुंज सव्वजोवेहि अणंतगुणमेत्तपरपरमाणुओंकी वृद्धि सम्भव हो मात्र उतने परमाणु अधिक करना यही यहाँ तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट पदसे तात्पर्य है। शंका-योगसे परमाणुओंकी वृद्धि क्यों नहीं ली गई है ? समाधान- नहीं, क्योंकि, योगसे परमाणुओंकी वृद्धि ग्रहण करने पर तीनों शरीरोंकी युगपत् वृद्धि प्राप्त होती है। पुनः क्षपित कौशिक अन्य एक जीव लीजिये जो विस्रसोपचय सहित औदारिक और तैजसशरीरको तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट करके कार्मणशरीरके विस्रसोपचयमें सब जीवोंसे अनन्तगुणे परमाणुओंकी वृद्धि होने तक एक-एक परमाणु बढाता है । तब पहले के समान क्षपित कौशिक इस अन्य जीवके अयोगी गुणस्थानके अन्तिम समय में स्थित होने पर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है। ___ पुनः अन्य एक क्षपित कौशिक जीव लीजिये जिसने अपने विस्र सोपचयसहित औदारिक और तेजसशरीरको तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट किया है तथा जो कार्मणशरीरके प्रति क्षपित कर्माशिक है उसके कार्मणशरीरके विस्र सोपचय जघन्य पुंज में दो परमाणु अधिक करके अयोगी गुणस्थानके अन्तिम समय में स्थित होने पर उस समय अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है । इस प्रकार सब जीवोंसे अनन्तगुणे परमाणुओंकी वृद्धि होने तक कार्मणशरीरके विनसोपचयको एक एक परमाण द्वारा बढाना चाहिये। पुनः क्षपित कर्माशिक एक अन्य जीव लीजिये जो अयोगी गुणस्थानके अन्तिम समयमें कार्मणशरीरको एक परमाणु अधिक करके तथा कार्मणशरीरके विस्रसोपचय पुंजको सब अ. आ. प्रत्यो: ' सरीरा ' इति पाठ। * ता. प्रतो. 'चयपरमाणु ' इति पाठ: 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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