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________________ ५, ६, ९१. ) बंधाणुयोगद्दारे पत्तेयसरी दव्ववग्गणा ( ६९ तदो अण्णो वि जीवो खविदकम्मंसियो विस्तसुवचयेहि सह ओरालिय सरीरमुक्कसं काढून पुणो तेजइयसरीरसव्वजहण्णविस्ससुवचयपुंजम्मि एगपरमाणुपोग्गले ढाव अण्णमपुणरुत्तट्ठाणं होदि । तदो अण्णेण जीवेण तेजइयसरीर विस्स सुवचयपुंजे दुपरमाणुत्तरे कदे अण्णमपुणरुत्तट्ठाणं होदि । सविस्ससुवचयमोरालियसरीरं तप्पा ओग्गुक्कस तेज इयसरीरपरमाणुपुंजो जहण्णो । सविस्सासुवचयं कम्मइयसरीरं पि एत्थ जहणणं चेव । पुणो अण्णे जीवे तेजइयसरीरविस्ससुवचयपुंजं तिपरमाणुत्तरं काढूणच्छिदे अण्णमपुणरुत्तद्वाणं होदि । एवं परमाणुत्तरादिकमेण सव्वजीवेहि अनंतगुणमेत्तविस्सुवचय परमाणुपोग्गलेसु वडिदेषु तदो अण्णम्हि* जीवे खविदक्रम्मंसिये तथा ओघक्कस्सीकयविस्सुवचयमोरालिय सरीरे विस्ससुवचएहि सह जहण्णीकदकम्मइ यसरीरे सव्वजहण्णतेजइयसरीरं परमाणुत्तरं काऊण तस्सेव विस्ससुवचयपुंजं एगपरमाणुविस्ससुवचएहि अब्भहियं कादूणच्छिदे अनंतरट्ठाणादो संपहियद्वाणं परमाणुत्तरं होदि । कारणं जाणिदूण वत्तव्वं । एवं वड्ढा वेदव्वं जाव तेजइयसरीरदोपुंजा तप्पा ओग्गुक्कस्सा जादा ति । कितप्पाओगुक्कस्सत्तं ? जोगवड्ढीए विणा ओकड्डुक्कड्डुणवसेण जत्तियाणं परमाणूणं सविस्ससु समाधान- नहीं, क्योंकि इन चारोंके जघन्य रहते हुए उनकी अविरोधी उत्कृष्ट वृद्धि ही यहाँ ग्रहण की गई है । पुनः अन्य क्षपित कर्माशिक जीवके विस्रसोपचय सहित औदारिकशरीरको उत्कृष्ट करके अनन्तर तैजसशरीर के सबसे जघन्य विस्रसोपचय पुंजमें एक परमाणु पुद्गलके बढाने पर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है। अनन्तर अन्य जीवके द्वारा तैजसशरीरके विस्रसोपचय पुंज में दो परमाणु अधिक करने पर अन्य अपुनरुक्न स्थान होता है । यहाँ पर विस्रसोपचय सहित औदारिक शरीर तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट है । तैजसशरीर परमाणु पुंज जघन्य है और विस्रसोपचयसहित कार्मण शरीर भी यहाँ पर जघन्य है । पुनः अन्य जीवके तैजस शरीर के विस्रसोपचय परमाणु पुंजको तीन परमाणु अधिक करके स्थित होने पर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है । इस प्रकार परमाणु अधिक आदिके क्रमसे सब जीवोंसे अनन्तगुणे विस्रसोपचयरूप परमाणु पुद्गलोंकी वृद्धि होने पर अनन्तर जिसने विस्रसोपचयसहित औदारिकशरीरको ओघ उत्कृष्ट किया है और विस्रसोपचयसहित कार्मणशरीरको जघन्य किया है तथा तैजसशरीरको एक परमाणु अधिक करके व उसीके विस्रसोपचयपुंजको विसोपचयके एक परमाणुसे अधिक करके जो क्षपित कर्माशिक अन्य जीव स्थित है उसके अनन्तर स्थानसे साम्प्रतिक स्थान एक परमाणु अधिक होता है। कारणका जानकर कथन करना चाहिये । इस प्रकार तैजसशरीर के दो पुंज तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट होने तक बढाने चाहिये । शंका- यहाँ तत्प्रायोग्य उत्कृष्टसे क्या तात्पर्य है ? समाधानन- योगवृद्धि के बिना उत्कर्षण और अपकर्षणके द्वारा विस्रसोपचयसहित जितने ता० प्रती Jain Educatio international " अण्णेहि अ० आ० प्रत्यो: Pry अण्णंहि dhal इति पाठ: । www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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