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________________ ३६ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ३, ३३. एदेसि फासाणं केण फासेण पयदं? कम्मफासेण पयदं ।। ३३ ।। एदं खंडगंथमज्झप्पविसयं पडुच्च कम्मफासे पयदमिदि भणिदं । महाकम्मपयडिपाहुडे पुण दवफासेण सव्वफासेण कम्मफासेण पयदं । कधमेदं णव्वदे? दिगंतरसुद्धीए दव्वफासपरूवणाए विणा तत्थ फासाणुयोगस्स महत्ताणुववत्तीदो। जदि कम्मफासे पयदं तो कम्मफासो सेसपण्णारसअणुओगद्दारेहि भूदवलिभयवदा सो एत्थ किण्ण परूविदो? ण एस दोसो, कम्मक्खंधस्स फाससण्णिदस्स सेसाणुओगद्दारेहि परूवणाए कीरमाणाए वेयणाए परविदत्थादो विसेसो पत्थि त्ति कादूण अकयतप्परूवणत्तादो। जदि एवं अपुणरुत्ताणं सव्व-दप्वफासाणं एत्थ परूवणा किण्ण कदा? ण, पयदाए अज्झप्पविज्जाए अपयदअणज्झप्पविज्जाए बहुणयगहण *णिलोणाए परूवणाणुववत्तीदो। एवं फासणिक्खेवे समत्ते फासे त्ति समत्तमणुयोगदारं। इन स्पोंमेंसे प्रकृतमें कौन स्पर्श लिया गया है? प्रकृतमें कर्मस्पर्श लिया गया अध्यात्मको विषय करनेवाले इस खण्ड ग्रन्थकी अपेक्षा कर्मस्पर्श प्रकरणप्राप्त है, ऐसा यहां कहा है। महाकर्मप्रकृतिप्राभूतमें तो द्रव्यस्पर्श, सर्वस्पर्श और कर्मस्पर्श इन तीनोंका प्रकरण है। शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान- दिगन्त र शुद्धि में द्रव्यस्पर्शका कथन किये विना वहां स्पर्श अनुयोगका महत्त्व नहीं बन सकता, इससे मालूम पडता है कि वहां द्रव्यस्पर्श, सर्वस्पर्श और कर्मस्पर्श इन तीनोंसे प्रयोजन है। शंका- यदि प्रकृतमें कर्मस्पर्शसे प्रयोजन हैं तो भूतबलि भगवान्ने शेष प्रन्द्रह अनुयोगद्वारोंका अवलम्बन लेकर उसका यहां कथन क्यों नहीं किया ? ___ समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, स्पर्श संज्ञावाले कर्मस्कन्धका शेष अनुयोगद्वारोंके द्वारा प्रतिपादन करनेवाले वेदना अधिकार में कथन किया है। उसके सिवाय और कोई विशेष नहीं है, ऐसा समझकर यहां उसका कथन नहीं किया है। __ शंका- यदि ऐसा है तो सर्वस्पर्श और द्रव्यस्पर्श तो अपुनरुक्त थे, उनका यहां कथन क्यों नहीं किया ? समाधान- नहीं, क्योंकि, यहां अध्यात्म विद्याका प्रकरण है, इसलिये अनेक नयोंकी विषयभूत अनध्यात्म विद्याका प्रकृतमें कथन करना नहीं बन सकता । विशेषार्थ- यहां स्पर्श निक्षेप तेरह प्रकार का कहा है। उनमें से प्रकृतमें कर्मस्पर्श लिया गया है। प्रश्न यह है कि यदि प्रकृतमें कर्मस्पर्श लिया गया है तो इसका नामकर्मके सिवा शेष कर्मनयविभाषणता व कर्मनामविधान आदि पन्द्रह अनुयोगद्वारोंके द्वारा अवश्य कथन करना था। समाधान यह है कि पहले वेदना अनुयोगद्वारमें वेदना शब्दसे कर्मका ही ग्रहण किया है । ®ताप्रतौ 'अकयत्तपरूवणत्तादो' इति पाठः । प्रतिषु 'गह गा-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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