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________________ २६ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं ( ५, ३, २५. जो सो कम्मफासो ॥ २५ ॥ तस्स अत्थो वच्चदे-- सो अविहो-- णाणावरणीय-दसणावरणीय-वेयणीय-मोहणीय-आउअ-णामा-गोद-अंतराइयकम्मफासो । सो सव्वो कम्मफासो णाम ॥ २६ ॥ अट्टकम्माणं जीवेण विस्सासोवचएहि य णोकम्मेहि य जो फासो सो दव्वफासे पददि त्ति एत्थ ण वुच्चदे, कम्माणं कम्मेहि जो फासो सो कम्मफासो त्ति एत्थ घेत्तव्यो। संपहि फासभंगपरूवणा कीरदे। तं जहा-णाणावरणीयं णाणावरणीयण फुसिज्जदि।१। णाणावरणीयं सणावरणीयेण फुसिज्जदि।२। णाणावरणीयं वेयणीएण फुसिज्जदि ।३। णाणावरणीयं मोहणीएण फुसिज्जदि ।४। णाणावरणीयं आउएण फुसिज्जदि ।५।णणावरणीयं णामेण फुसिज्जदि। ६। णाणावरणीयं गोदेण फुसिज्जदि।७। णाणावरणीय एक भेद मानना पडता है । इसलिये स्पर्शस्पर्श शब्दको ध्यान में रखकर यहां अन्य गुणोंके साथ कर्कश आदिके होनेवाले स्पर्शको छोड कर केवल कर्कश आदि आठ स्पर्शोके परस्परमें होनेवाले स्पर्शको भी स्पर्शस्पर्श में गिन लिया है। इस प्रकार स्पर्शस्पर्श के दो अर्थ प्राप्त होते हैं। प्रथम यह कि कर्कश आदि स्पर्शों का स्पर्शन इन्द्रियके साथ जो स्पर्श होता हैं वह स्पर्शस्पर्श कहलाता है और दूसरा यह कि आठों स्पर्शों का परस्पर जो स्पर्श होता है वह भी स्पर्शस्पर्श कहलाता है। इस दूसरे अर्थ के अनुसार स्पर्शस्पर्शके एकसंयोगी ८, द्विसंयोगी २८, त्रिसंयगी ५६, चतु संयोगी ७०, पंचसंयोगी ५६, षट्संयोगी २८, सप्तसंयोगी ८ और अष्टसंयोगी १; कुल २५५ भंग होते हैं। अब कर्मस्पर्शका अधिकार है ॥ २५ ॥ इसका अर्थ कहते हैं वह आठ प्रकारका है-ज्ञानावरणीयकर्मस्पर्श, दर्शनावरणीयकर्मस्पर्श, वेदनीय. कर्मस्पर्श, मोहनीयकर्मस्पर्श, आयुकर्मस्पर्श, नामकर्मस्पर्श, गोत्रकर्मस्पर्श, और अन्तरायकर्मस्पर्श । वह सब कर्मस्पर्श है ॥ २६ ॥ आठ कर्मों का जीवके साथ, विनसोपचयों के साथ और नोकर्मोके साथ जो स्पर्श होता है वह द्रव्यस्पर्श में अन्तर्भूत होता है। इसलिये वह यहां नहीं कहा गया है । किन्तु कर्मोका कर्मों के साथ जो स्पर्श होता है वह कर्मस्पर्श है, एसा यहां ग्रहण करना चाहिये। अब स्पर्शके भंगोंका कथन करते हैं। यथा-ज्ञानावरणीय ज्ञानावरणीय द्वारा स्पर्श किया जाता है। १ । ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय द्वारा स्पर्श किया जाता है। २। ज्ञानावरणीय वेदनीय द्वारा स्पर्श किया जाता है। ३। ज्ञानावरणोय मोहनीय द्वारा स्पर्श किया जाता है । ४ । ज्ञानावरणीय आयु द्वारा स्पर्श किया जाता है । ५ । ज्ञानावरणीय नाम द्वारा स्पर्श किया जाता है । ६ । ज्ञानावरणीय गोत्र द्वारा स्पर्श किया जाता है। ७ । ज्ञानावरणीय अन्त राय द्वारा स्पर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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