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________________ (२७ ५, ३, २६.) फासाणुओगद्दारे कम्मफासो अंतराइएण फुसिज्जदि।। एवं णाणावरणीयस्स अट्ट भंगा।दसणावरणीयं दसणावरणीएण फुसिज्जदि।१। दंसणावरणीयं णाणावरणीएण फुसिज्जदि । २। दंसणावरणीयं वेयणीएण फुसिज्जदि।३। दसणावरणीयं मोहणीएण फुसिज्जदि । ४। दंसणावरणीयं आउएण फुसिज्जदि ।५। दसणावरणीयं णामेण फुसिज्जदि। ६। दंसणावरणीयं गोदेण फुसिज्जदि।७। दसणावरणीयं अंतराइएण फुसिज्जदि ।८। एवं दसणावरणीयस्स अट्ठ भंगा। एदेसु पुग्विल्लेसु सह मेलाविदेसु सोलस भंगा होति ।१६। संपहि वेयणीयं वेयणीएण फुसिज्जदि ।। देयणीयं णाणावरणीएण फुसिज्जदि ।२। वेयणीयं सणावरणीएण फुसिज्जदि।३। वेयणीयं मोहणीएण फुसिज्जदि।४। वेयणीयं आउएण फुसिज्जदि । ५। वेयणीयं णामेण फुसिज्जदि ।६। वेयणीयं गोदेण फुसिज्जदि । ७ । वेयणीयं अंतराइएण फुसिज्जदि।८। एवं वेयणीयस्स अट्ठ भंगा। एदेसु पुव्वभंगेसु मेलाविदेसु चउवीस भंगा होति ।२४। मोहणीयं मोहणीएण फुसिज्जदि ।१। मोहणीयं णाणावरणीएण फुसिज्जदि ।२। मोहणीयं दसणावरणीएण फुसिज्जदि ।३। मोहणीयं वेयणीएण फुसिज्जदि । ४ । मोहणीयं आउएण फुसिज्जदि ।५। मोहणीयं णामेण फुसिज्जदि। ६ । मोहणीयं गोदेण फुसिज्जदि ।७। मोहणीयं अंतराइएण फुसिज्जदि।८ एवं मोहणीयस्स अट्ट भंगा । एदेसु किया जाता है । ८ । इस प्रकार ज्ञानावरणीय कर्म के आठ भंग होते हैं। दर्शनावरणीय दर्शनावरणीय द्वारा स्पर्श किया जाता है ।१। दर्शनावरणीय ज्ञानावरणीय द्वारा स्पर्श किया जाता है ।२। दर्शनावरणीय वेदनीय द्वारा स्पर्श किया जाता है ।३। दर्शनावरणीय मोहनीय द्वारा स्पर्श किया जाता हैं। ४ । दर्शनावरणीय आयु द्वारा स्पर्श किया जाता है।। दर्शनावरणीय नाम द्वारा स्पर्श किया जाता है । ६। दर्शनावरणीय गोत्र द्वारा स्पर्श किया जाता है ।७। दर्शनावरणीय अन्त राय द्वारा स्पर्श किया जाता है । ८। इस प्रकार दर्शनावरणीय कर्म के आठ भंग होते हैं । इन्हें पूर्वोक्त आठ भंगोंमें मिलानेपर १६ भंग होते हैं। वेदनीय वेदनीय द्वारा स्पर्श किया जाता है । १। वेदनीय ज्ञानावरणीय द्वारा स्पर्श किया जाता है । वेदनीय दशनावरणीय द्वारा स्पर्श किया जाता है । ३ । वेदनीय मोहनीय द्वारा स्पर्श किया जाता है 16। वेदनीय आयु द्वारा स्पश किया जाता है । ५। वेदनीय नाम द्वारा स्पर्श किया जाता है।६। वेदनीय गोत्र द्वारा स्पर्श किया जाता है ।७। वेदनीय अन्तराय द्वारा सर्श किया जाता है ।८। इस प्रकार वेदनीय कर्मके आठ भंग होते हैं। इन्हें पूर्वोक्त १६ भंगोंमें मिलानेपर २४ भंग होते हैं। मोहनीय मोहनीय द्वारा स्पर्श किया जाता है ।१॥ मोहनीय ज्ञानावरणीय द्वारा स्पर्श किया जाता है ।२। मोहनीय दर्शनावरणीय द्वारा स्पर्श किया जाता है।३। मोहनीय वेदनीय द्वारा स्पर्श किया जाता है । ४। मोहनीय आयु द्वारा स्पर्श किया जाता है। ५ । मोहनीय नाम द्वारा स्पर्श किया जाता है ।६ मोहनीय गोत्र द्वारा स्पर्श किया जाता है,।७। मोहनीय अन्तराय द्वारा स्पर्श किया जाता है 1८। इस प्रकार मोहनीय कर्मके आठ भग होते हैं। इन्हें पूर्वोक्त २४ भंगोंमें मिलानेपर ३२ भंग होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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