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________________ २० ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५,३, २०. गच्छदे ? ण, तय-गोतयाणं खंधम्हि समवेदाणं पुधदव्वत्ताभावादो। खंध-तय-गोतयाणं समूहो दव्वं । ण च एक्कम्हि दव्वे दव्वफासो अत्थि, विरोहादो। एत्थ फासभंगे वत्तइसाम । तं जहा - खंधो तयं फुसदि । १ । खंधो णोतयं फुसदि । २ । खंधो तए फुसदि | ३ | धो णोत फुसदि । ४॥ खंधो तयं णोतयं च फुसदि ।५। कत्थ विरुक्खादिविसेसे खंधो तयं णोतयेच फुसदि । ६ । कत्थ वि तये गोतयं च फुसदि । ७| कत्थ विरुवखादिखंधो तए णोतए च फुसदि । ८ । एवमट्ठ भंगा। अधवा खंधेण विणा तय-गोतयेसु चेव अट्ठफासभंगा उप्पाएयव्वा । तं जहा -- तओ तयं फुसदि । १ । गोतओ गोतयं फुसदि । २ । तया तए फुसंति | ३ | णोतया णोतए फुति |४| तओ गोतयं फुसदि । ५। तओ णोतए फुसदि । ६ । तया गोतयं फुर्तति ॥७॥ तया णोत फुसंति | ८ | तयफासो देसफासे किण्ण पविसदि ? UT, णाणादव्वविसए देतफा से एगदव्वविसयस्स तयफासस्स पवेसविरोहादो। एवं तयफासपरूवणा गदा । समाधान- नहीं, क्योंकि, त्वचा और नोत्वचा स्कन्धमें समवेत हैं, अतः उन्हें पृथक् द्रव्य नहीं माना जा सकता । स्कन्ध, त्वचा और नोत्वचाका समुदाय द्रव्य है । पर एक द्रव्यमें द्रव्यस्पर्श नहीं बनता, क्योंकि, ऐसा माननेपर विरोध आता है ! यहां स्पर्शके भंग बतलाते हैं । यथा-स्कन्ध त्वचाको स्पर्श करता है । १ । स्कन्ध नोत्वचाको स्पर्श करता है । २ । स्कन्ध त्वचाओंको स्पर्श करता है । ३ । स्कन्ध नोत्वचाओंको स्पर्श करता है । ४ । स्कन्ध त्वचा और नोत्वचाको स्पर्श करता है । ५ । कहीं वृक्ष आदि विशेष में स्कन्ध एक त्वचा और अनेक नोत्वचाओंको स्पर्श करता है । ६ । कहीं स्कन्ध अनेक त्वचाओं और एक नोत्वचाको स्पर्श करता है । ७ । कहीं वृक्षादिका स्कन्ध अनेक त्वचाओं और अनेक नोत्वचाओंको स्पर्श करता है । ८ । इस प्रकार आठ भंग होते हैं । अथवा स्कन्धके विना ही त्वचा और नोत्वचाके स्पर्श सम्बन्धी आठ भंग उत्पन्न करने चाहिये । यथा-त्वचा त्वचाको स्पर्श करती है । १ । नोत्वचा नोत्वचाको स्पर्श करती है । २ । त्वचाएं त्वचाओं को स्पर्श करती हैं । ३ । नोत्वचाएं नोत्वचाओंको स्पर्श करती हैं । ४ । त्वचा नोत्वचाको स्पर्श करती है । ५ । त्वचा नोत्वचाओंको स्पर्श करती है । ६ | त्वचाएं नोत्वचाको स्पर्श करती हैं । ७ 1 त्वचाएं नोत्वचाओंको सर्श करती हैं । ८ा शंका- त्वक्स्पर्श देशस्पर्श में क्यों नहीं अन्तर्भूत होता है ? समाधान- नहीं, क्योंकि, नाना द्रव्योंको विषय करनेवाले देशस्पर्श में एक द्रव्यको विषय करनेवाले त्वक्स्पर्शका अन्तर्भाव मानने में विरोध आता है । विशेषार्थ - द्रव्य स्पर्श में दो द्रव्यों के परस्पर स्पर्शकी और देशस्पर्श में दो द्रव्योंके एकदेश स्पर्शको मुख्यता रहती है । यही कारण है कि त्वक्स्पर्शका इन दोनों स्पर्शो में अन्तर्भाव नहीं किया है। माना कि त्वचा, नोत्वचा और स्कन्ध अलग अलग अनेक परमाणुओंसे बनते हैं इसलिये इससे अनेक द्रव्योंका ग्रहण होना सम्भव है । पर यहां स्कन्धरूपसे इस सबको एक द्रव्य अप्रतौ ' तयाफासो देसफासे', ताव्रती ' तयाफासो देसकासो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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