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________________ १८) छक्खंडागमे वग्गणाखंड ( ५, ३, १७. जो फासो सो अणंतरखेत्तफासो णाम। कधमणतरत्तं? समाणासमाणक्खेत्ताणमंतरे खेत्तंतराभावादो। एवमणंतरखेत्तफासपरूवणा गदा। जो सो देसफासो णाम ।। १७॥ तस्स अत्थपरूवणा कीरदेजं दम्वदेसंदेसेण फसदि सो सम्वो देसफासो णाम ।। १८॥ एगस्स दव्वस्स वेसं अवयवं जदि (देसेण) अण्णदव्वदेसेण* अप्पणो अवयवेण पुसदि तो देसफासो त्ति दट्टव्वो। एसो देसफासो खंधावयवाणं चेव होदि, ण परमाणुपोग्गलाणं; जिरवयवत्तादो ति ण पच्चवठेयं, परमाणूणं गिरवयवत्तासिद्धीदो। 'अपदेसं व इंदिए गेज्झं इदि परमाणूणं गिरवयवत्तं परियम्मे वुत्तमिदि णासंकणिज्ज*, पदेसो णाम परमाणू, सो जम्हि परमाणुम्हि समवेदभावेण पत्थि सो परमाण अपदेसओ ति परियम्मे वुत्तो। तेण ण णिरवयवत्तं तत्तो गम्मदे। परमाणू सावयवो त्ति शंका- इसे अनन्तरपना कैसे प्राप्त होता है ? समाधान- क्योंकि समान और असमान क्षेत्रोंके मध्य में अन्य क्षेत्र नहीं उपलब्ध होता, इसलिये इसे अनन्तरपना प्राप्त है। विशेषार्थ- अनन्तर शब्द सापेक्ष है । पहले एक क्षेत्रका विवेचन कर आये हैं। उसके सिवा शेष सब क्षेत्र अनन्तर क्षेत्र कहलाता है । और इन क्षेत्रों में स्थित स्कन्धका स्पर्श अनन्तरक्षेत्रस्पर्श कहा जाता है । यदि एकका अर्थ समान किया जाता है तो अनन्तरक्षेत्र स्पर्शका अर्थ असमान अवगाहनावाले स्कन्धोंका स्पर्श फलित होता है। इस प्रकार अनन्तरक्षेत्रस्पर्श प्ररूपणा समाप्त हुई। अब देशस्पर्शका अधिकार है ॥ १३ ॥ उसके अर्थका विवेचन करते हैंजो द्रव्यका एक देश एक देशके साथ स्पर्श करता है वह सब देशस्पर्श है॥१८॥ एक द्रव्यका देश अर्थात् अवयव यदि अन्य द्रव्यके देश अर्थात् उसके अवयवके साथ स्पर्श करता है तो वह देशस्पर्श जानना चाहिये । यह देशस्पर्श स्कन्धोंके अवयवोंका हो होता है, परमाणुरूप पुद्गलोंका नहीं; क्योंकि वे निरवयव होते हैं। यदि कोई ऐसा निश्चय करे तो वह ठीक नहीं है, क्योंकि परमाणु निरवयव होते हैं, यह बात असिद्ध है। ‘परमाणु अप्रदेशी होता है और उसका इन्द्रियों द्वारा ग्रहण नहीं होता।' इस प्रकार परमाणुओंका निरवयवपना परिकर्ममें कहा है । यदि कोई ऐसो आशंका करे तो वह भी ठीक नहीं है, क्योंकि, प्रदेशका अर्थ परमाणु है । वह जिस परमाणुमें समवेतभावसे नहीं है वह परमाणु अप्रदेशी है, इस प्रकार परिकर्म में कहा है । इसलिये परमाणु निरवयव होता है, यह बात परिकर्मसे नहीं जानी जाती । शंका- परमाणु सावयव होता है, यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान- स्कन्धभावको अन्यथा वह प्राप्त नहीं हो सकता, इसोसे जाना जाता है कि परमाणु सावयव होता है। अप्रतो 'दब्वं देसं' इति पाठः। * अप्रतौ 'अण्णदव्वं देसेण' इति पाठः । ति.प.१-९८. *ताप्रती 'ण संकणिज्ज' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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