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________________ ५, ३, १६. ) फासाणुओगद्दारे अणंतरफासो जो सो अणंतरक्खेत्तफासो णाम ॥ १५ ॥ तस्स पुवुद्दिट्टस्स अत्थो वुच्चदे जं दव्वमणंतरक्खेत्तेण पुसदि सो सम्वो अणंतरक्खेत्तफासो णाम ॥१६॥ किमणंतरक्खेत्तं णाम? एगागासपदेसक्खेत्तं पेक्खिऊण अणेगागासपदेसक्खेत्तमणंतरं होदि, एगाणेगसंखाणमंतरे अण्णसंखाभावादो। दुपदेसट्टिददव्वाणमण्णेहि दोआगासपदेसट्टिददव्वेहि जो फासो सो अणंतरक्खेत्तफासो णाम। दुपदेसट्ठियखंधाणं तिपदेसट्ठियखंधाणं च जो फासो सो वि अणंतरक्खेत्तफासो। एवं चदु-पंचादिपदेसट्ठियखंधेहि दुसंजोगपरूवणाए बिदियक्खो संचारेदवो जाव देसूणलोयट्टियमहक्खंधे ति। एदेण कमेण सव्वे दुसंजोगभंगे जहासंभवे परूविय तिसंजोगादिभंगा वि परूवेदव्वा । अधवा पुविल्लसुत्तट्टियएगसद्दो संखाए वट्टमाणो त्ति ण वत्तव्वो, किंतु समाणत्थे वट्टदे। एवं संते समाणोगाहणखंधाणं जो फासो सो एयक्खेत्तफासो णाम। असमाजोगाहणखंधाणं विशेषार्थ- यहां एकक्षेत्रस्पर्शका विचार किया गया है । एकक्षेत्रस्पर्श में एक शब्द क्षेत्रका विशेषण है। तदनुसार यह अर्थ फलित होता है कि विवक्षित एक आकाशके प्रदेशके साथ अनन्तानन्त पुद्गल स्कन्धोंका या अनेक द्रव्यों का युगपत् जो स्पर्श होता है वह एकक्षेत्रस्पर्श कहलाता है। अब अनन्तरक्षेत्रस्पर्शका अधिकार है ॥ १५॥ इस पूर्वोक्त स्पर्शका अर्थ कहते हैंजो द्रव्य अनन्तर क्षेत्र के साथ स्पर्श करता है वह सब अनन्तरक्षेत्रस्पर्श है ॥१६॥ शंका- अनन्तर क्षेत्र किसे कहते हैं? समाधान- एक आकाशप्रदेशरूप क्षेत्रको देखते हुए अनेक आकाशप्रदेशरूप क्षेत्र अनन्तरक्षेत्र है, क्योंकि, एक और अनेक संख्याके मध्य में अन्य संख्या नहीं उपलब्ध होती। दो प्रदेशों में स्थित द्रव्योंका दो आकाशके प्रदेशोंमें स्थित अन्य द्रव्योंके साथ जो स्पर्श होता है वह अनन्तरक्षेत्रस्पर्श हैं। दो प्रदेशों में स्थित स्कन्धोंका और तीन प्रदेशों में स्थित स्कन्धोंका जो स्पर्श होता है वह भी अनन्तरक्षेत्रस्पर्श है। इसी प्रकार चार, पांच आदि प्रदेशोंमें स्थित स्कन्धोंके साथ दो संयोगका कथन करते समय कुछ कम लोकमें स्थित महास्कन्धके प्राप्त होने तक द्वितीय अक्षका संचार करना चाहिये। इस क्रमसे सभी द्विसयोगी भंगोंका यथासम्भव कथन करके तोनसंयोगी आदि भंगोंका भो कथन करना चाहिये। अथवा पूर्वोक्त मूत्र में स्थित जो 'एक' शब्द है वह संख्यावाची है, ऐसा नहीं कहना चाहिये ; किन्तु समानार्थवाची है, ऐसा कहना चाहिये। इस स्थितिमें समान अवगाहनावाले स्कन्धोंका जो स्पर्श होता है वह एकक्षेत्रस्पर्श है और असमान अवगाहनावाले स्कन्धोंका जो स्पर्श होता है वह अनन्त रक्षेत्रस्पर्श है। *ताप्रतौ 'समाणोगाहगाखंधाण ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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