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५, ५, १२०.) पडिअणुओगद्दारे णामपयडिपरूवणा
( ३७७ संपहि सुहमणिगोदअपज्जत्तयस्स सव्वजहण्णोगाहणं महामच्छोगाहणाए सोहिय सुद्धसेसम्मि एगरूवं पक्खि विय पुणो एदेण सेडीए असंखेज्जदिभागेण घणलोगे गणिदे जत्तिया आगासपदेसा तत्तिया चेव तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुविणामाए उत्तरोत्तरपयडीओ होंति। के वि आइरिया तिरियपदरेण गुणिदघणलोगमेत्ता तिरिक्खगइपाओग्गागुपुग्विवियप्पा एक्के क्किस्से ओगाहणाए होंति त्ति भणंति। तण्ण धउदे, सुत्तविरुद्धतादो-' लोगो सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्तेहि ओगाहणवियप्पेहि गुणिदाओ' ति। ण च एदम्हि सुत्ते रज्जुपदरगुणिदघणलोगणिद्देसो अत्थि जेणेदं वक्खाणं सच्चं होज्ज । संपहि लोगो सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्तेहि ओगाहणवियप्पेहि गुणेयव्वो । एवं गुणिदाओ पयडीओ होंति ति सुत्तसंबधो कायन्वो ।
मणुसगइपाओग्गाणविणामाए केवडियाओ पयडीओ ? ॥ सुगमं।
मणुसगइपाओग्गाणुपुग्विणामाए पयडीओ पणदालीसजोयणसवसहस्सबाहल्लाणि तिरियपदराणि उड्ढकवाडछेवणणिप्फण्णाणि सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्तेहि ओगाहणवियप्पेहि गुणिवाओं। एवडियाओं पयडीओ ॥ १२० ॥
अब सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तककी सबसे जघन्य अवगाहनाको महामत्स्यकी अवगाहनामेंसे घटाकर जो शेष रहे उसमें एक अक मिलाकर इस श्रेणिके असंख्यातवें भाग इससे घनलोकको गुणित करनेपर जितने आकाशप्रदेश होते हैं उतनी ही तिर्यंचगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्मकी उत्तरोत्तर प्रकृतियां होती हैं। कितने ही आचार्य तिर्यक्त्रतरसे गुणित धनलोक प्रमाण एक एक अवगाहना सम्बन्धी तिर्यंचगतिप्रायोग्यानुपूर्वीके विकल्प होते हैं, ऐसा कथन करते हैं । परन्तु वह घटित नहीं होता, क्योंकि, इस कथनमें प्रकृत सूत्रसे विरोध आता है- 'लोकको जगश्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र अवगाहनाविकल्पोंसे गुणित करे ' यह उसका विरोधी सूत्रवचन है। इस . सूत्रमें ' राजुप्रतरसे गुणित धनलोक ' ऐसा उल्लेख नहीं है जिससे कि यह व्याख्यान सत्य माना जाय । अब लोकको जगश्रेणिके असंख्यातवें भाग प्रमाण अवगाहनाविकल्पोंसे गुणित करना चाहिए । इस प्रकार गुणित करने पर उक्त प्रकृतियां होती हैं, ऐसा यहां सूत्रका सम्बन्ध करना चाहिए। मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्मको कितनी प्रकृतियां होती हैं ? । ११९ ।
यह सूत्र सुगम है। मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्मकी प्रकृतियां ऊर्ध्वकपाटछेदनसे निष्पन्न पैंतालीस लाख योजन बाहल्यवाले तिर्यकप्रतरोंको जगश्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र अवगाहना. विकल्पोंसे गणित करनेपर जो लब्ध आवे उतनी है। उसकी इतनी मात्र प्रकृतियां होती हैं ॥
ताप्रती ' सुत्तविरुद्धत्तादो 1 ' लोगो' इति पाठः ।
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