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३६२) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
(५, ५, २७. कि ण वृत्तं ? ण, करुणाए जीवसहावस्स कम्मजणिदत्तविरोहादो। अकरुणाए कारणं कम्मं वत्तव्वं ? ण एस दोसो, संजमघादिकम्माणं फलभावेण तिस्से अब्भवगमादो।
एवडियाओ पयडीओ।। ९७॥ णव चेव णोकसायपयडीओ, दसादीणमसंभवादो।। __ आउअस्स कम्मस्स केवडियाओं पयडीओ ? ॥ ९८ एति भवधारणं प्रतीति आय: । सेसं सुगमं ।
आउअस्स कम्मस्स चत्तारि पयडीओ-णिरयाउअं तिरिक्खाउअं मणुस्साउअं देवाउअं चेति । एवडियाओ पयडीओ ॥ ९९ ।।
जं कम्मं णिरयभवं धारेदि तं णिरयाउअंणाम। जं कम्मं तिरिक्खभवं धारेदि तं तिरिक्खाउअं णाम । कम्मं मणसभवं धारेदि तं मणसाउअंजाम । जं कम्मं देवभवं धारेदि तं देवाउअंणाम। एवं चत्तारि चेव आउपपडीओ होंति, पंचमाविभवाणमभावादो
णामस्स कम्मस्सल केवडियाओ पयडीओ ?॥ १०० ॥ नाना मिनोतीति नाम । सेसं सुगमं ।
समाधान - नहीं, क्योंकि, करुणा जीवका स्वभाव है, अत एव उसे कर्मजनित मानने में विरोध आता है।
शंका- तो फिर अकरुणाका कारण कर्म कहना चाहिए ?
समाधान - यह कोई दोष नहीं है, उसे संयमघाती कर्मोके फल रूपसे स्वीकार किया गया है। नोकषायवेदनीयकी इतनी प्रकृतियां होती हैं ।। ९७ ॥
नौ ही नोकधायप्रकृतियां होती है, क्योंकि दस आदि प्रकृतियां सम्भव नहीं हैं। आयु कर्मकी कितनी प्रकृतियां होती हैं? ॥ ९८ ॥ __ जो भवधारणके प्रति जाता है वह आय है। शेष सुगम है।
आयु कर्मकी चार प्रकृतियां हैं - नारकायु, तिर्यंचाय, मनुष्याय और देवायु । उसकी इतनी प्रकृतियां होती हैं। ९९ ॥
जो कर्म नरक भवको धारण कराता है वह नारकायु कर्म है। जो कर्म तिर्यंच भवको धारण कराता है वह तिर्यंचायु कर्म है । जो कर्म मनुष्य भवको धारण कराता है वह मनुष्यायु कर्म है । जो कर्म देव' भवको धारण कराता है वह देवायु कर्म है। इस प्रकार आयु कर्मकी चार ही प्रकृतियां हैं, क्योंकि पांचवें आदि भव नहीं पाये जाते । नामकर्मकी कितनी प्रकृतियां हैं? ॥१०० ।।
जो नाना प्रकारसे बनाता है वह नामकर्म है । शेष कथन सुगम है । * का-ताप्रत्यो: ' भवणधारणं ' इति पाठ:14 एत्यनेन नारकादिभवमित्यायुः 1 स. सि.८, ४. ४षखं. जी. च १.२५-२६ 8 अ-आ-काप्रतिष ' णामकम्मस्स ' इति पाठः ।
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