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५, ५, ९६. ) पर्याडअणुओगद्दारे मोहणीयपयडिपरूवणा (३६१ ज्वलतीति संज्वलनः। कुतस्तस्य सम्यक्त्वम् ? रत्नत्रयाविरोधात् । कोह-माण' माया-लोहेसु पादेक्कं संजलणणिद्देसो किमढें कदो ? एदेसि बंधोदया पुध पुध विणट्ठा, पुग्विल्लतियच उक्कस्सेव अक्कमेण ण विणट्ठा त्ति जाणावणढें ।
जं तं गोकसायवेयणीयं कम्मं तं गवविहं- इत्थिवेद-पुरिसवेदणउसयवेद-हस्स-रवि-अरदि-सोग-भय-दुगुच्छा चेदि* ॥ ९६ ।।
जस्स कम्मस्स उदएण पुरिसाभिलासो होदि तं कम्मं इथिवेदो णाम । जस्स कम्मस्स उदएण मणस्सस्स इत्थीसु अहिलासो उप्पज्जदि तं कम्मं पुरिसवेदो णाम । जस्स कम्मस्स उदएण इत्थि-पुरिसेसु अहिलासो उप्पज्जदि तं कम्मं णवंसयवेदो णाम। जस्स कम्मस्स उदएण अणेयविहो हासो समप्पज्जदि तं कम्मं हस्सं णाम । जस्स कम्मस्स उदएण दव्व खेत्त-काल-भावेसु जीवाणं रई समुप्पज्जदि तं कम्मं रई णाम। जस्स कम्मस्स उदएण दव्व-खेत्त-काल-भावेसु अरई समुप्पज्जदि तं कम्मरई णाम । जस्स कम्मस्स उदएण जीवाणं सोगो समप्पज्जदितं कम्मं सोगो णाम। जस्स कम्मस्स उदएण जीवस्स सत्त भयाणि समुप्पज्जति तं कम्मं भयं णाम । जस्स कम्मस्स उदएण दन्व-खेत्त. काल-भावेसु चिलिसा समुप्पज्जदि तं कम्मं दुगुंछा णाम करुणाए कारणं कम्मं करुणे त्ति
शंका-- इसे सम्यक्पना कैसे है ? समाधान--- रत्नत्रयका विरोधी न होनेसे ।
शंका-- क्रोध, मान, माया और लोभमेंसे प्रत्येक पदके साथ संज्वलन शब्दका निर्देश किसलिये किया गया है ?
समाधान-- इनके बन्ध और उदयका विनाश पृथक् पृथक् होता है, पहिली तीन कषायोंके चतुष्कके समान इनका युगपत् विनाश नहीं होता; इस बातका ज्ञान करानेके लिए क्रोधादि प्रत्येक पदके साथ संज्वलन पदका निर्देश किया गया है।
जो नोकषायवेदनीय कर्म है वह नौ प्रकारका है-- स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जगप्सा ॥ ९६ ॥
जिस कर्मके उदयसे पुरुषविषयक अभिलाषा होती है वह स्त्रीवेद कम है। जिस कर्मके उदयसे मनुष्यकी स्त्रियों में अभिलाषा उत्पन्न होती है वह पुरुषवेद कर्म है। जिस कर्मके उदयसे स्त्री और पुरुष उभयविषयक अभिलाषा उत्पन्न होती है वह नपुंसकवेद कर्म है । जिस कर्मके उदयसे अनेक प्रकारका परिहास उत्पन्न होता है वह हास्य कर्म है। जिस कर्मके उदयसे जीवोंकी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावमें रति उत्पन्न होती है वह रति कर्म है। जिस कर्मके उदयसे द्रव्य क्षेत्र, काल और भाव में अरति उत्पन्न होती है वह अरति कर्म है। जिस कर्मके उदयसे जीवोंके शोक उत्पन्न होता है वह शोक कर्म है। जिस कर्मके उदयसे जीवके सात प्रकारका भय उत्पन्न होता है वह भय कर्म है। जिस कर्मके उदयसे द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावमें विचिकित्सा उत्पन्न होती है वह जुगुप्सा कम है।
शंका--- करुणाका कारणभूत कर्म करुणा कर्म है, यह क्यों नहीं कहा ? ताप्रती 'णवविहं- तं इस्थिवेद-' इति पाठः। षट्वं. चू. १, २४. मूला. १२, १९२.
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