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५. ५, १०१.) पयडिअणुओगद्दारे णामपयडिपरूवणा
( ३६३ - णामस्स कम्मस्स बादालीसं पिंडपयडिणामाणि- गदिणामं जादिणाम सरीरणामं सरीरबंधणणामं सरीरसंघावणामं* सरीरसंठाणणामं सरीरअंगोवंगणाम सरीरसंघडणणामं वण्णणामं गंधणामं रसणामं फासणामं आणुवुविणामं अगुरुगलहुअणामं उवघादणामं परघादणामं उस्सासणामं आदावणामं उज्जोवणामं विहायगवि-तसथावर-बादर-सुहम-पज्जत्त-अपज्जत्त-पत्तेय-साहारणसरीर-थिराथिरसुहासुह-सुभग-दूभग-सुस्सर--दुस्सर-आदेज्ज-अणावेज्ज-जसकित्तिअजसकित्ति-णिमिण-तित्थयरणामं चेदि ।। १०१ ।। ___जं णिरय-तिरिक्ख-मणस्स-देवाणं णिवत्तयं कम्मं तं गदिणामं । एइंदिय-बेइंदियतेइंदिय-चरिदिय-पंचिदियभावणिवत्तयंज कम्मं तं जादिणाम जादो णाम सरिसप्प. च्चय* गेज्झा। ण च तण-तरुवरेसु सरिसत्तमस्थि, दोवंचिलियासु (?) सरिसभावाणुवलंभादो ? ण, जलाहारगहणेण दोणं पि समाणत्तदंसणादो। जस्स कम्मस्स उदएण ओरालिय-वेउब्विय आहार-तेजा-कम्मइयसरीरपरमाणू जीवेण सह बंधमागच्छंति तं
नामकर्मको ब्यालीस पिण्डप्रकृतियां हैं- गतिनाम, जातिनाम, शरीरनाम, शरीरबन्धननाम, शरीरसंघातनाम, शरीरसंस्थाननाम, शरीरांगोपांगनाम, शरीरसंहनननाम, वर्णनाम, गंधनाम, रसनाम, स्पर्शनाम, आनुपूर्वीनाम, अगुरुलघुनाम, उपघातनाम, परघातनाम, उच्छ्वासनाम, आतापनाम, उद्योतनाम, विहायोगतिनाम, त्रसनाम, स्थावरनाम, बादरनाम, सूक्ष्मनाम, पर्याप्तनाम, अपर्याप्तनाम, प्रत्यकशरीरनाम, साधारणशरीरनाम, स्थिरनाम, अस्थिरनाम, शुभनाम, अशुभनाम, सुभगनाम, दुर्भगनाम, सुस्वरनाम, दुस्वरनाम, आदेयनाम, अनादेयनाम, यशःकीर्तिनाम, अयशःकोतिनाम, निर्वाणनाम और तीर्थकरनाम ॥ १०१ ।।
जो नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव पर्यायका बनानेवाला कर्म है वह गतिनामकर्म है। जो कर्म एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय भावका बनानेवाला है वह जाति नामकर्म है।
शंका-- जाति तो सदृशप्रत्ययसे ग्राह्य है, परन्तु तृण और वृक्षोंमें समानता है नहीं; क्योंकि, दो दो वृक्षोंमें सदृशभाव उपलब्ध नहीं होता ?
समाधान-- नहीं, क्योंकि जल व आहार ग्रहण करनेकी अपेक्षा दोनोंमें ही समानता देखी जाती है।
जिस कर्मके उदयसे औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण शरीरके परमाण जीवके साथ बन्धको प्राप्त होते हैं वह शरीर नामकर्म हैं। जिस कर्मके उदयसे जीवके साथ 8 अ-आ-काप्रतिषु ' णाम ' इति पाठः ( अग्रेऽप्ययमेवास्ति पाठस्तत्र )। अ-आ-ताप्रतिषु
• -सरीरसंघादणामकाप्रती सरीरसंघादणाम ' इति पाठ: 1 9 षटखं. जी. चू. १, २७-२८. * ताप्रती 'सरीरपच्चय-' इति पाठ:1
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