SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५, ५, ५९.) पर्याडअणुओगद्दारे देवेसु ओहिविसपरूवणा ( ३१७ कालेण असंखेज्जाओ वरिस कोडीओ जाणंति । सुत्तेण विणा कघमेदं नव्वदे? गुरुवदेसादो। 'सण्णक्कुमार-माहिंदा' सण्णक्कुमार-माहिंदकप्पवासियदेवा सगविमाणधयदंआदो हेट्टा 'दोच्चं तु जाव बिदिहपुढविहेट्टिमतले त्ति ताव चत्तारिरज्जुआयदं एगरज्जुवित्थारं खेत्तं पस्संति*। कालदो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागे अदीदमणागयं च जाणंति । बम्ह बम्होत्तरकप्पवासियदेवा अप्पण्णो विमाणसिहरादो हेट्ठा 'तच्चं तु' जाव तदियपुढविहेट्टिमतले त्ति ताव अद्धच्छट्टरज्जआयामं एगरज्जुवित्थारं खेत्तं पस्संति । कालदो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागे अदीदाणागदं च जाणंति । लंतयकाविट्ठविमाणवासियदेवा सगविमाणसिहरादो जाव तदियपुढविहेटिमतले ति ताव छरज्जुआयदं एगरज्जुवित्थारं खेत्तं पस्संति । एगरज्जुवित्थारो ति कधं णव्वदे ? सोहावलोगण्णाएण सबलोगणालिसद्दाणुवतीए छरज्जुआयदं सव्वं लोगणालि पस्संति ति सुत्तसिद्धीदो। एत्तो पहडि जाव उवरिमगेवजे ति ताव कालो वि देसूर्ण पलिदोवमं होदि । बम्ह बम्हुत्तरकप्पे कालो पलिदोवमस्स असंखेज्जदि क्षेत्रको देखते हैं । कालकी अपेक्षा वे असंख्यात करोड वर्षकी बात जानते हैं। शंका-सूत्रके विना यह कैसे जाना जाता है ? समाधान - गुरूके उपदेशसे जाना जाता है । 'सगक्कुमारमाहिंदा' सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पवासी देव अपने विमानके ध्वजादण्डसे लेकर नीचे 'दोच्चं तु ' अर्थात दूसरी पथिवीके नीचे के तलभाग तक चार राज लम्बे और एक राजु विस्तारवाले क्षेत्रको जानते हैं। कालकी अपेक्षा ये पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण अतीत और अनागत विषयको जानते हैं । ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर कल्पवासी देव अपने विमानशिखरसे लेकर नीचे ‘तच्चं तु' अर्थात् तीसरी पृथिवीके नीचेके तलभाग तक साढे पाँच राजु लम्बे और राजु एक विस्तारवाले क्षेत्रको जानते हैं । कालको अपेक्षा ये पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण अतीत और अनागत विषयको जानते हैं । लान्तव और कापिष्ठ विमानवासी देव अपने विमानशिखरसे लेकर तीसरे पृथिवीके नीचे के तल तक छह राजु लम्बे और एक राजु विस्तारवाले क्षेत्रको देखते हैं शंका - वह क्षेत्र एक राज विस्तारवाला है, यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान - यहां सिंहावलोकन न्यायसे आगेके गाथासूत्र (१४ । में प्रयुक्त ' सव्वं च लोयणालि शब्द की अनुवृत्ति आनेसे 'छह राजु आयत सब लोकनालीको देखते हैं यह इस सूत्रका अर्थ सिद्ध है । इसीसे उक्त क्षेत्रका विस्तार एक राजु जाना जाता है। यहांसे लेकर उपरिम ग्रैवेयक तकके देवोंका काल भी कुछ कम पल्योपमप्रमाअ होता है । शंका - ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर कल्पोंमें पत्यका असंख्यातवां भाग कहा है । फिर काप्रती 'असंखेज्जाओ-वरिम' ताप्रतौ 'असंखेज्जा उवरिम ' इति पाठः1 * सणंकुमारदेवा वि एवं चेव । नवरं जाव अहे दोच्चाए सक्करप्पमाए पुढवीए हिट्रिल्ले चरमते । एव महिंददेवा वि 1प्रज्ञापना ३३-४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy