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५, ५, ५९.) पयडिअणुओगद्दारे देवेसु ओहिविसयपरूवणा (३१५ कालो पुण भवणवासियकालादो बहुगो । किंतु तत्तो विसेसाहिओ कि संखेज्जगुणो त्ति ण णव्वदे, उवएसाभावादो । संपहि एदेसिमुक्कस्सोहिणाणस्स विसयपरूवण?मुत्तरगाहासुत्तं भणदि
असुराणमसंखेज्जा कोडीओ सेसजोविसंताणं । संखातीवसहस्सा उक्कस्सं ओहिविसओ दुध ॥ ११ ॥
असुरा णाम भवणवासियदेबा । तेसिमुक्कस्सोहिखेत्ते घणागारेण टुइदे असंखेज्जाओ जोयणकोडीओ होति । णवरि भवणवासिय-वागवेंतर जोदिसियाणं देवाणं ओहिणिबद्धखेत्तमधो थोवं होदि, तिरिएण बहुअं होदि त्ति वत्तव्वं । सेसाणं भवणवासियादिजोदिसियदेवपेरंताणं उक्कस्सओहिखेत्तमसंखेज्जजोयणसहस्सघणमेत्तं होदि। णवविहभरणवासीणमटविहवेंतराणं पंचविहजोइसियाणं जमुक्कस्सं ओहिक्खेत्तं तमसुरउक्कस्सखेत्तं पेक्खि दूण संखेज्जगणहीणं होदि । तं कधं णव्वदे? असुराणमसंखेज्जाओ जोयणकोडोओ त्ति भणिदूण 'सेसजोदिसंताणमसंखेज्जाणि जोणयसहस्साणि
इनका काल यद्यपि भवनवासियोंके कालसे बहुत होता है, किन्तु वह उससे विशेष अधिक होता है या संख्यातगुणा होता है, यह नहीं जानते हैं; क्योंकि, इस प्रकारका कोई उपदेश नहीं पाया जाता । अब इनके उत्कृष्ट अवधिज्ञानके विषयका कथन करनेके लिए आगेका गाथासूत्र कहते हैं
असुरोंके उत्कृष्ट अवधिज्ञानका विषय असंख्यात करोड घनयोजन होता है तथा ज्योतिषियों तक शेष देवोंके उत्कृष्ट अवधिज्ञानका विषय असंख्यात हजार घनयोजन होता है ।। ११॥
असुर पदसे यहां असुर नामके भवनवासी देव लिए गये हैं। उनके उत्कृष्ट अवधिज्ञानके क्षेत्रको घनाकाररूपसे स्थापित करनेपर वह असंख्यात करोड योजन होता है । इतनी विशेषता है कि भवनवासी, वानव्यंतर और ज्योतिषी देवोंका अवधिज्ञान सम्बन्धी क्षेत्र नीचे अल्प होता है, किन्तु तिरछा बहुत होता है। ऐसा यहां कथन करना चाहिए । शेष भवनवासी देवोंसे लेकर ज्योतिषी देवों तक इन देवोंके उत्कृष्ट अवधिज्ञानका क्षेत्र असंख्यात हजार घनयोजन होता है । नौ प्रकारके भवनवासी, आठ प्रकारके व्यन्तर और पांच प्रकारके ज्योतिषी देवोंका जो उत्कृष्ट अवधिज्ञानका क्षेत्र होता है वह असुरोंके उत्कृष्ट क्षेत्रको देखते हुए संख्यातगुणा हीन होता है ।
शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान- क्योंकि 'असुरोंके असंख्यात करोड योजन होता है' ऐसा कहनेपर 'ज्योतिषियों तक शेष देवोंका वह क्षेत्र असंख्यात हजार योजन होता है' ऐसा सूत्रवचन है। हजारकी अपेक्षा
ताप्रती — बहुगो किंतु तत्तो विसेसाहिओ । किं ' इति पाठः। ४ ताप्रती ' होदि विसओदु' इति पाठः । षट्खं. पु. ९, पृ. २५. असुराणमसंखेज्जा कोडी जोइसिय सेसाणं । संखातीदा य खलउक्कस्सोहीय विसओ दु ।। मूला. १२-११०.
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