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पडअणुओगद्दारे सुदणाणस्स एयट्टपरूवणा
( २८३
धर्मस्योपचारेण प्राप्तागमसंज्ञस्य परमार्थतः आगमत्वाभावात् । एवमादा त्ति गदं । विकरणा अणिमादयो मुक्तिपर्यंता इष्टवस्तूपलम्भा लब्धयः लब्धीनां परम्परा यस्मादागमात् प्राप्यते यस्मिन् तत्प्राप्त्युपायो निरूप्यते वा स परम्परालब्धिरागमः । परंपरलद्धि त्ति गदं । उत्तरं प्रतिवचनम्, न विद्यते उत्तरं यस्य श्रुतस्य तदनुत्तरं श्रुतम् । अथवाअधिकमुत्तरम्, न विद्यते उत्तरोऽन्यसिद्धान्तः अस्मादित्यनुत्तरं श्रुतम् । एवमणुत्तरं त्ति गदं ।
प्रकर्षेण कुतीर्थ्याना लढतया उच्यन्ते जीवादयः पदार्थाः अनेनेति प्रवचनं वर्णपंक्त्यात्मकं द्वादशांगम् । अथवा, प्रमाणाद्यविरोधेन उच्यतेऽर्थोऽनेन ज्ञानेन करणभूतेनेति प्रवचनं द्वायशांगं भावश्रुतम् । कथं ज्ञानस्य करणत्वम्? न, अवबोधमन्तरेणार्थाविसंवादिवचनाप्रवृत्तेः । न च सुप्त मत्तवचनैर्व्यभिचारः, तत्र अविसंवादनियमाभावात् । पवयणं त्ति गदं । प्रकृष्टानि वचनान्यस्मिन् सन्तीति
समाधान- नहीं. क्योंकि वह द्रव्यश्रुत आत्माका धर्म नहीं है । उसे जो आगम संज्ञा प्राप्त है वह उपचारसे प्राप्त है, वास्तवमें वह आगम नहीं है ।
इस प्रकार आत्माका कथन किया ।
मुक्ति पर्यंत इष्ट वस्तुको प्राप्त करनेवाली अणिमा आदि विक्रियायें लब्धि कही जाती है । इन लब्धियोंकी परम्परा जिस आगमसे प्राप्त होती है या जिसमें उनकी प्राप्तिका उपाय कहा जाता है वह परम्परालब्धि अर्थात् आगम है । इस प्रकार परम्परलब्धिका कथन किया । उत्तर प्रतिवचनका दूसरा नाम है, जिस श्रुतका उत्तर नहीं है वह श्रुत अनुत्तर कहलाता है । अथवा उत्तर शब्दका अर्थ अधिक है, इससे अधिक चूंकि अन्य कोई भी सिद्धान्त नहीं पाया जाता, इसीलिये इस श्रुतका नाम अनुत्तर है । इस प्रकार अनुत्तर पदका कथन किया ।
यह प्रकर्ष अर्थात् कुतीयके द्वारा नहीं स्पर्श किये जाने स्वरूपसे जीवादि पदार्थोंका निरूपण करता है, इसलिये वर्ण-पकत्यात्मक द्वादशांगको प्रवचन कहते है । अथवा करणभूत इस ज्ञानके द्वारा प्रमाण आदिके अविरोधरूपसे जीवादि अर्थ कहे जाते हैं, इसलिये द्वादशांग भावश्रुतको प्रवचन कहते हैं ।
शंका- ज्ञानको करणपना कैसे प्राप्त है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, ज्ञानके विना अर्थमें अविसंवादी वचनकी प्रवृत्ति नहीं हो सकती । इस हेतुका सुप्त और मत्तके वचनोंके साथ व्यभिचार होगा, यह कहना भी ठीक नहीं है; क्योंकि, उनके अविसंवादी होने का कोई नियम नहीं है । इस प्रकार प्रवचनका कथन किया । जिसमें प्रकृष्ट वचन होते हैं वह प्रवचनी है, इस व्युत्पत्तिके अनुसार भावगमका नाम प्रवचनी हैं । अथवा जो कहा जाता है वह प्रवचन है इस व्युत्पत्ति के अनुसार प्रवचन अर्थको कहते हैं । वह इसमें है इसलिये वर्णोपादानकारणक द्वादशांग ग्रन्थका नाम प्रवचनी है । इस काप्रती 'कुतीनालीढतया ' इति पाठः । * ताप्रतो' कारणभूनेनेति' इति पाठ: का-ता प्रत्योः ' प्रवचनं द्वादशांग, द्वादशांगभावश्रुत्तं ' इति पाठ: 1 काप्रती वचनप्रवृत्तेः ' ताप्रतो 'वचन (ना) प्रवृत्ते ' इति पाठः ।
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