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________________ ५, ५, ४८. ) पडिअणुओगद्दारे सुदणाणभेदपरूवणा ( २७५ प्पत्तोदो । पाहुडपाहुडसमाससुदणाणं संखेज्जवियप्पं, एगक्खराहियपाहुडपाहुडक्खरेहि परिहीणपाहुडक्खरपमाणत्तादो। पाहुडसुदणाणमेयवियप्पं, उक्कस्सपाहुडसमाससुदणाणम्मि एगक्खरे पक्खित्ते तदुप्पत्तीदो । पाहुडसमाससुदणाणं संखेज्जवियप्पं, एगक्खराहियपाहुडक्खरपरिहीणवत्थअक्खरपमाणत्तादो। वत्थुसुदणाणमेयवियप्पं, उक्क स्सपाहुडसमाससुदणाणम्मि एगवखरे पक्खित्ते तदुप्पत्तीदो। वत्थुसमाससुदणाणं संखेज्जवियप्पं एगक्खराहियवत्थु अक्खरेहि परिहीणपुव्वक्खरपमाणत्तादो । पुवसुदणाणमेयवियप्पं उक्कस्सवत्थुसमाससुदणाणम्मि एगक्खरे पविढे तदुप्पत्तीदो। पुदवसमाससुदणाणं संखेज्जवियप्पं, एगक्खराहियपुव्वक्खरेहि परिहीणपुव्वगदक्खरपमाणतादो । अधवा, सव्वे समासा असंखेज्जवियप्पा । ज्ञानकी उत्पत्ति होती है प्राभूतप्राभृतसमास श्रुतज्ञान संख्यात प्रकारका है, क्योंकि, यह प्राभृतमे जितने अक्षर होते हैं उनमें से एक अक्षरसे अधिक प्राभूतप्राभत श्रुतज्ञानके अक्षरोंको कम करनेपर जितने अक्षर शेष रहें तत्प्रमाण है। प्राभृत श्रुतज्ञान एक प्रकारका है, क्योंकि, उत्कृष्ट प्राभृतप्राभृतसमास श्रुतज्ञान में एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर इसकी उत्पत्ति होती है। प्राभृतसमास श्रुतज्ञान सख्यात प्रकारका है, क्योंकि, यह वस्तु श्रुतज्ञानके अक्षरोंमेंसे एक अक्षरसे अधिक प्राभृत श्रुतज्ञानके अक्षरोंको कम करनेपर जितने अक्षर शेष रहें तत्प्रमाण होता है। वस्तु श्रुतज्ञान एक प्रकारका है, क्योंकि उत्कृष्ट प्राभृतसमास श्रुतज्ञान में एक अक्षरके मिलानेपर इस ज्ञानकी उत्पत्ति होती ती है। वस्तसमास श्रतज्ञान संख्यात प्रकारका है. क्योंकि यह पर्व श्रतज्ञानके जितने अक्षर होते हैं उनमें से एक अक्षर अधिक वस्तुके अक्षरोंको कम करनेपर जितने अक्षर शेष रहते हैं तत्प्रमाण होता है । पूर्व श्रुतज्ञान एक प्रकारका है, क्योंकि, उत्कृष्ट वस्तुमान श्रुतज्ञान में एक अक्षरके मिलानेपर इस ज्ञानकी उत्पत्ति होती है। पूर्वसमास श्रुतज्ञान संख्यात प्रकारका है क्योंकि, यह पूर्वगतके जितने अक्षर होते हैं उनमेंसे एक अधिक पूर्वके अक्षरोंके कम करनेपर जितने अक्षर शेष रहें तत्प्रमाण होता है । अथवा सब समासज्ञान असंख्यात प्रकारके होते हैं। विशेषार्थ - यहां श्रुतज्ञानके वीस भेदोंमें से कौन श्रुतज्ञान कितने प्रकारका है, यह बतलाया है । पर्याय, अक्षर, पद, संघात, प्रतिपत्ति, अनुयोगद्वार, प्राभृतप्राभृत, प्राभृत, वस्तु और पूर्व ये श्रुतज्ञान एक एक प्रकारके हैं; यह स्पष्ट ही है। अब रहे इनके समास श्रुतज्ञान सो पर्यायसमास श्रुतज्ञान असंख्यात प्रकारका है, इसमें कोई मतभेद नहीं हैं । शेष अक्षरसमास आदि श्रुतज्ञानोंमें यह अवश्य ही विचार उठता है कि उनमेंसे प्रत्येकके कितने विकल्प होते हैं। यहां प्रत्येकके संख्यात विकल्प बतलाये हैं। यह कथन अक्षरज्ञानके ऊपर अक्षरज्ञानकी ही वृद्धि होती है, इस अभिप्रायको ध्यानमें रख कर किया गया हैं । किन्तु जिनके मतसे अक्षरज्ञानके बाद भी छह वृद्धियां स्वीकार की गई हैं उनके मतसे सब समासज्ञान असंख्यात प्रकारके प्राप्त होते हैं । यही कारण है कि यहां पहले अक्षरसमास आदि सब समास ज्ञानोंके संख्यात भेद बतला कर बादमें उनके असंख्यात प्रकारके होनेकी सूचना की है । 8 आ-का-ताप्रतिषु ' एगवखरे पक्वित्ते पविठे ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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