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________________ २७४) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ५, ४८. पज्जयसुदणाणं होदि । तं च एयवियप्पं । पज्जयस्सुवरि एगपक्खेवे वड्डिदे पज्जयस. माससुदणाणं होदि । तं च असंखेज्जलोगमेत्तछट्टाणपमाणं होदि । पज्जयसमासचरिमवियप्पस्सुवरि एगपखेवे वडिदे अक्खरसुदणाणं होदि । तं पि एयवियप्पं । अक्ख. रसमाससुदणाणं संखेज्जवियप। कुदो? दुरूवण मज्झिमपदक्ख रपमाणत्तादो। पदसु. दणाणमेयवियप्पं, चरिमक्खरसमासणाणस्सुवरि एगखरे पविठे* तदुप्पतीदो । पदसमाससुदणाणं संखेज्जवियप्पं, सरूवपदक्खरूणसंघादक्खरपमाणत्तादो । संघादसुदणाणमेयवियप्पं संघादसमाससुदणाणं संखेज्जवियप्पं । कुदो? एगक्खराहियसंघादक्खरपरिहीणपडिवत्तिअक्खरपमाणत्तादो। पडित्तिसुदणाणमेवियप्प, अंतिमसंधादसमाससुदणाणस्सुवरि एक्कम्हि चेव अक्खरे पविठे तदुप्पत्तीदो। पडिवत्तिसमाससुदणाणं संखेज्जवियप्पं एगक्खराहियपडिवत्तिअक्खरेहि परिहीणअणयोगद्दारसुदणाणक्खरपमापत्तादो। अणुयोगद्दारसुदणाणमेयवियप्पं, अतिमपडिवत्तिसमाससुदणाणम्मि एक्कम्हि चेव अक्खरे पविढे तदुप्पत्तीदो। अणयोगद्दारसमाससुदणाणं सखेज्जवियप्पं रूवाहिय* अणुयोगद्दारक्खरेहि परिहीणपाहडपाहुडसुदणाणक्खरपमाणत्तादो । पाहुडपाहुडसुदणाणमेयवियप्पं, उक्कस्सअणुयोगद्दारसमाससुदणाणम्मि एगक्खरे पविठे तदुहोनेपर पर्याय श्रुतज्ञान होता है । वह एक प्रकारका है । पर्याय श्रुतज्ञानके ऊपर एक प्रक्षेपकी वृद्धि होनेपर पर्यायसमास श्रुतज्ञान होता है। वह असंख्यात लोकमात्र छह स्थानप्रमाण है । पर्यायसमासके अन्तिम विकल्पके ऊपर एक प्रक्षेपको वृद्धि होनेपर अक्षर श्रुतज्ञान होता है। वह भी एक प्रकारका है। अक्षरसमास श्रुतज्ञान सख्यान प्रकारका है, क्योंकि, वह दो अक्षर कम मध्यम पदके अक्षरप्रमाण है । पद श्रुतज्ञान एक प्रकारका है, क्योंकि, अतिम अक्षरसमास श्रुतज्ञानके ऊपर एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर इस ज्ञानकी उत्पत्ति होती है । पदसमास श्रुतज्ञान सख्यात प्रकारका है, क्योंकि, यह संघात श्रुतज्ञानके अक्षरों से एक अधिक पद श्रुतज्ञानके अक्षरोंको कम करनेपर जितना प्रमाण शेष रहे उतना है। संघात श्रुतज्ञान एक प्रकारका है। सघातसमास श्रुतज्ञान संख्यात प्रकारका है, क्योंकि, यह प्रतिपत्ति श्रुतज्ञानके अक्षरोंमेंसे एक अक्षर अधिक संघात श्रुतज्ञानके अक्षरोंको कम करनेपर जितना प्रमाण शेष रहे उतना है। प्रतिपत्ति श्रुतज्ञान एक प्रकारका है, क्योंकि, अंतिम संघातसमास श्रुतज्ञानके ऊपर एक ही अक्षरके प्रविष्ट होनेपर प्रतिपत्ति श्रुतज्ञानकी उत्पत्ति होती है। प्रतिपत्तिसमास श्रुतज्ञान संख्यात प्रकारका है, क्योंकि, यह अनुयोगद्वार श्रुतज्ञानके अक्षरोंमेंसे एक अक्षर अधिक प्रतिपत्ति श्रुतज्ञानके अक्षरोंको कम करनेपर जो शेष रहे तत्प्रमाण है। अनुयोगद्वार श्रुतज्ञान एक प्रकारका है, क्योंकि, अंतिम प्रतिपत्तिसमास श्रुतज्ञान में एक ही अक्षरके प्रविष्ट होनेपर इस ज्ञानकी उत्पत्ति होती है। अनुयोगद्वारसमास श्रुतज्ञान संख्यात प्रकारका है, क्योंकि, यह प्राभृतप्राभूत श्रुतज्ञानके अक्षरोंमेंसे एक अक्षरसे अधिक अनुयोगद्वारके अक्षरोंको कम करनेपर जितने अक्षर शेष रहें तत्प्रमाण है। प्राभृतप्राभृत श्रुतज्ञान एक प्रकारका है, क्योंकि, उत्कृष्ट अनुयोगद्वारसमास श्रुतज्ञान में एक अक्षरके प्रविष्ट होनेपर इस O अप्रतौ ' कुदो रूवेण ' इति पाठः। * ताप्रती · अक्ख रपविठे ' इति पाठ । * अ-काप्रत्योः 'परूवाहिय-,, ताप्रती (प) रूवाहिय- इति पाठ: 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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