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५, ५, ४६. ) पयडिअणुओगद्दारे सुदणाणभेदपरूवणा ( २६७
एत्तियाणि पदाणि घेत्तूण सगलसुदणाणं होदि । एदेसु पदेसु संजोगक्खराणि चेव सरिसाणि, ण संजोगक्खरावयवक्खराणि; तत्थ संखाणियमाभावादो। एवस्स मज्झिमपदसुदणाणस्सुवरि एगे अक्खरे वड्ढिदे पदसमासो णाम सुदणाणं होदि । पदस्स उवरि अण्णेगे* पदे वड्ढिदे पदसमाससुदणाणं होदि ति वोतुं जुत्तं । पदस्सुवरि एगेगक्खरे वड्ढिदे ण पदसमाससुदणाणं होदि, अक्खरस्स पदत्ताभावादो त्ति ? ण एस दोसो, पदावयवस्स अक्खरस्स वि पदव्ववएसे संते विरोहाभावादो । न च अवयवे अवयविसण्णा अप्पसिद्धा, पडो दो गामो बद्धो इच्चेवमादिसु अव' यवस्स वि अवयविसण्णुवलंभादो । एवमेगेगक्खरवड्ढीए पदसमाससुदणाणं वड्ढमाणं गच्छदि जावेगक्खरेणणसंघादसुदणाणे त्ति । पुणो एदस्सुवरि एगक्खरे वड्ढिदे संघावणामसुदणाणं होदि । होंति पि संखेज्जाणि पदाणि घेत्तूण एगसंघादसुदणाणं होदि । मग्गणावयवो संघादसुदणाणं णाम, जहा गदिमग्गणाए गिरयगइविसओ अवगमो तदुप्पत्तिहेदुपदाणि वा। अक्ख रसुदणाणादो उवरि छम्विहाए वड्ढीए सुदणाणं किण्ण वड्ढदे? ण अक्खरणाणं
इतने पदोंका आश्रय कर सकल श्रुतज्ञान होता है । इन पदोंमें संयोगी अक्षर ही समान हैं, संयोगी अक्षरोंके अवयव अक्षर नहीं; क्योंकि, उनकी संख्याका कोई नियम नहीं है। इस मध्यमपद, श्रुतज्ञानके ऊपर एक अक्षरके बढनेपर पदसमास नामका श्रुतज्ञान होता है ।
शंका - पदके ऊपर अन्य एक पदके बढनेपर पदसमास श्रुतज्ञान होता है, ऐसा कहना उचित है । किन्तु पदके ऊपर एक अक्षरके बढनेपर पदसमास श्रुतज्ञान नहीं होता, क्योंकि, अक्षर पद नहीं हो सकता ?
समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि पदके अवयवभूत अक्षरकी भी पद संज्ञा होने में कोई विरोध नहीं आता । अवयवमे अवयवीका व्यवहार अप्रसिद्ध है, यह बात नहीं है; क्योंकि, 'वस्त्र जल गया , गांव जल गया' इत्यादि उदाहरणोंमें वस्त्र या गांवके एक अवयवम ही अवयवीका व्यवहार होता हुआ देखा जाता है । ___इस प्रकार एक एक अक्षरकी वृद्धिसे बढता हुआ पदसमास श्रुतज्ञान एक अक्षरसे न्यून संघात श्रुतज्ञानके प्राप्त होने तक जाता है पुनः इसके ऊपर एक एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर सघात नामका श्रुतज्ञान होता है । ऐसा होते हुए भी संख्यात पदोंको मिलाकर एक संघात श्रुतज्ञान होता है । मार्गणज्ञानका अवयवभूत ज्ञान संघात श्रुतज्ञान है। यथा गति मार्गणामें नरकगतिविषयक ज्ञान । अथवा इस संघात श्रुतज्ञानकी उत्पत्तिके हेतुभूत पदोंका नाम सघात हैं।
शंका - अक्षर श्रुतज्ञानके ऊपर छह प्रकारकी वृद्धि द्वारा श्रुतज्ञानकी वृद्धि क्यों नहीं होती?
*ताप्रती ' अणेगे ' इति पाठ 1x आ-का-ताप्रतिषु 'पदो उद्धो ' इति पाठ: आ-का-ताप्रतिष 'अवयवस्स विसण्णुवलंभादो ' इति पाठः1 ताप्रती ' ए (गे) गक्खरे 'इति पाठः। 8 एयपदादो उरि एगेगेणक्खरेण वडढतो [संखेज्जसहस्सपदे उड़ढे संघादणाम सुदं 1 गो. जी. ३३६.
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