SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५, ५, ४८. ) पयडिअणुओगद्दारे सुदणाणावरणीयभेदपरूवणा ( २६१ पज्जयावरणीय * पज्जयसमासावरणीयं अक्खरावरणीयं अक्खरसमासावरणीयं पदावरणीयं पदसमासावरणीयं संघावावरणीयं संघादसमासावरणीयं पडिवत्तिआवरणीयं पडिवत्तिसमासावरणीयं अणुयोगद्दारावरणीयं अणुयोगद्दारसमासावरणीयं पाहुडपाहुडा-- वरणीयं पाहुडपाहुडसमासावरणीयं पाहुडावरणीयं पाहुडसमासा-- वरणीयं वत्थुआवरणीय वत्थुसमासावरणीयं पुवावरणीयं पुव्वसमामावरणीय चेदि ।। ४८॥ गाहासुत्तेण भणिदअत्थो चेव पुणो किमळं परूविदो ? गाहासुत्तत्थ -- विवरणा जेण पच्छिमसुत्तेण कदा तेणेसो ण दोसो । जोगद्दारमिदिर वृत्ते कधमणयोगद्दारस्स गहणं होदि ? ण एस दोसो, णामेगदेसादो वि णामिल्ले बुद्धिसमुप्पत्तिदसणादो । ण च एसो ववहारो लोगे अप्पसिद्धो, सच्चभामाए भामा, बलदेवे देवो, भीमसेणे, सेणो त्ति संववहारदसणादो । पाहुडावरणस्स गाहासत्ते असंतस्स कधमुवलद्धी जायदे ? ण एस दोसो, पाहुड-पाहुडसहस्स पर्यायावरणीय, पर्यायसमासावरणीय, अक्षरावरणीय, अक्षरसमासावरणीया पदावरणीय, पदसमासावरणीय, संधातावरणीय, संघातसमासाबरणीय, प्रतिपत्तिआवरणीय, प्रतिपत्तिसमासावरणीय, अनयोगद्वारावरणीय, अनयोगद्वारसमासावरणीय, प्राभूतप्राभृतावरणीय, प्राभूतप्राभतसमासावरणीय, प्राभतावरणीय, प्राभूतसमासावरणीय, वस्तुआवरणीय, वस्तुससासावरणीय, पूर्वावरणीय, पूर्वसमासासावरणीय ये श्रुतज्ञानावरणके बीस भेद हैं । ४८ । शंका- गाथा सूत्रके द्वारा कहे हुए अर्थका ही पुनः किसलिये कथन किया है ? समाधान- यत: अगले सूत्र द्वारा गाथासूत्रके अर्थका ही विवरण किया गया है। इसलिये यह कोई दोष नहीं है । शंका- गाथासूत्रमें जोगद्दारं ' ऐसा जो कहा है उससे ' अनुयोगद्वार' अर्थका ग्रहण कैसे होता है ? समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, नामके एकदेशसे भी नामवालेमें बुद्धि उत्पन्न होती हुई देखी जाती है । और यह व्यवहार लोकमें कुछ अप्रसिद्ध नहीं है, क्योंकि, सत्यभामाके ' भामा' पदका, बलदेवके लिये 'देव' पदका और भीमसेनके लिये 'सेन' पदका व्यवहार होता हुआ देखा जाता हैं ! शंका- प्राभृतावरणका गाथासूत्रमें निर्देश नहीं किया गया है, ऐसी अवस्थामें उसका ग्रहण कैसे होता है ? प्रतिषु ' पज्जायावरणीयं ' इति पाठः 1 काप्रती · ओगद्दारम्मिदि, ताप्रती · जोगहारम्मिदि पाठः। 8 अ-आ-काप्रतिष वलदेवो देवो भीमसेणो ' इति पाठ: 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy