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पयडिअणुओगद्दारे अक्खपमाणपरूवणा ( २५७ इमाए गाहाए पुग्विल्लतिसंजोगभंगा आणेदव्वा । एत्थ गच्छो बावट्ठी ६२ । तन्वग्गो एत्तियो होदि ३८४४ । पुणो एत्थ मले बावट्ठीए पक्खित्ताए एत्तियं होदि ३९०६ । पुणो एदम्मि गच्छेण आदि-उत्तरसहिदेण गुणिदे एत्तियं होदि २४९९८४ । पुणो एत्थ छहि भागे हिदे पुव्वलद्धा निसंजोगभंगा एत्तिया होंति ४१६६४ । कि कारणं? जेण च उसद्विअक्खराणि परिवाडीए दृविय पुणो अकारे णिरुद्धे पढमबिदियअक्खे धुवे कादूण तदियक्खो आकारादिवाव द्विअक्खरेसु जाव संचरदि ताव बावट्ठी तिसंजोगभंगा लब्भंति ६२ । पुणो पढमक्खमयारे चेव टुविय सेसदोअक्खे आ३यार-इकारेसु टुवेदूण पुणो तत्थ आदिमदोअक्खे धुवे कादूण तदियक्ख परिवाडीए संचारमाणे एयट्ठी तिसंजोगभंगा लब्भंति ६१ । पुणो अयाक्खं धुवं कादूण सेसदोअक्खे इकार-ईकारेसुट्टविय तदियक्खे परिवाडीए संचारमाणे सट्ठी तिसंजोगभंगा लभंति ६० । एवमयारक्खं धुवं कादूण सेलदोअक्खा परिवाडीए संचारमाणा जाव सम्वक्खराणमंतं गच्छंति ताव बासटिसंकलणमेत्ता अयारस्स* तिसंजोगभंगा लभंति। पुणो आयारे णिरुद्ध सेसदोअक्खा परिवाडीए संचारमाणा जाव सव्वक्खराणमंतं गच्छंति ताव एयट्टिसंकलणमेत्ता आयारस्स तिसंजोगभंगा उप्पज्जति।
___ इस गाथा द्वारा पूर्वोक्त त्रिसंयोगी भंगोंको लाना चाहिये । यहां गच्छ बासठ है । उसका वर्ग इतना होता है-६२४६२ = ३८४४ । पुन: इसमें मूल बासठके मिला देनेपर इतना होता है-३८४४+६२ = ३९०६ । पुनः इसे आदि उत्तर सहित गच्छसे गुणित करनेपर इतना होता है-३९०५४ (१+१+६२) = २४९९८४ । पुनः इसमें छहका भाग देनेपर पूर्व लब्ध त्रिसंयोगी भंग इतने होते हैं-२४९९८४६ : ४१६६४ । इसका कारण यह है कि )सठ अक्षरोंको क्रमसे स्थापित कर पुन: अकारके विवक्षित होने पर प्रथम और द्वितीय अक्षको ध्रुव करके तीसरा अक्ष आ३कार आदि बासठ अक्षरोंपर जब तक संचार करता है तब तक बासठ विसयोगी भंग प्राप्त होते हैं ६२ । पुनः प्रथम अक्षको अकारपर ही स्थापित कर शेष दो अक्षोंको आ३कार और इकारपर स्थापित कर पुनः इनमेसे प्रारम्भके दो अक्षोंको ध्रुव' करके तृतीय अक्षके क्रमसे सचार करनेपर इकसठ त्रिसंयोगो भंग प्राप्त होते हैं ६१ । पुनः अकार अक्षको ध्रुव करके शष दो अक्षोको इकार और ईकारपर स्थापित कर ततीय अक्षके क्रमसे संचार करनेपर साठ त्रिसयोगी भग प्राप्त होते हैं ६० । इस प्रकार अकार अक्षको ध्रुव करके शेष दो अक्ष क्रमसे संचार करते हुए जब तक सब अक्षरोंके अन्तको प्राप्त होते हैं तब तक अकारके बासठ संख्याके संकलन मात्र (३४६३= १९५३) त्रिसंयोगी भंग उत्पन्न होते हैं ।पुनः आकारके विवक्षित होनेपर शेष दो अक्ष क्रमसे संचार करते हुए जब तक सब अक्षरोंके अन्तको प्राप्त होते हैं तब तक इकसठ संख्याके संकलनमात्र (३४६२= १८९१ ) आकारके त्रिसंयोगी भंग उत्पन्न
४ प्रतिषु ' आकारे ' इति पाठ 1 3 अ-आ-का-ताप्रतिष न दीर्घ-प्लतआकारादिभेदकः कश्चित संकेतोऽस्ति 1 मप्रतितः कृतसंशोधने प्लुत-आकारस्य । आ३ ' इत्येवंविधः संकेतः कृतः, स तु यत्र-क्वचिन्न सर्वत्र 1*ताप्रती 'आयारक्खं 'इति पाठः। *प्रतिषु ' आयारस्स ' इति पाठः ।
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