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________________ २५६) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ५, ४६. अक्खो संचरदि ताव बासट्रिभंगा लब्भंति ६२ । पुणो आ३यारे णिरुद्ध इकारादिएगसट्ठिअक्खरेसु परिवाडीए अक्खे संचरमाणे एगसट्ठी दुसंजोगभंगा लब्भंति ६१ । पुणो इकारे णिरुद्ध ईकारादिसद्विअक्खरेसु परिवाडीए जाव अक्खो संचरदि ताव इकारस्स दुसंजोगेण सटिभंगा लभंति ६० । पुणो ईकारादिएणसटिअक्खराणं दुसजोगमंगा परिवाडीए उप्पादेदव्वा । एवमुप्पण्णदुसंजोगभंगेसु एक्कदो मेलाविदेसु सोलसुत्तरबेसहस्समेत्तभंगा उप्पज्जंति । अधवा संकलणरासिमिच्छे दोरासिं थावयाहि रूवहियं । तत्तो एगदरद्धं एंगदरगुणं हवे गणिद* । १५ । एदीए गाहाए एगादिएगुत्तरतेवद्धिगच्छसंकलणाए आणिदाए चउसटिअक्खराण दुसंजोगभंगा सोलसुत्तरबेहस्स होंति २०१६ । संपहि चउसद्धिअक्ख राणं तिसंजोगभंगे भण्णमाणे दुसंजोगभंगे उप्पण्णसोलसुत्तरबेसहस्सेसु बावट्ठीए तिभागेण गुणिदेसु तिसंजोगभंगा एत्तिया होंति ४१६६४ । अधवा गच्छ कदी मूलजुदा उत्तरगच्छादिएहि संगुणिदा। छहि भजिदे जं लद्धं संकलणाए हवे कलणा । १६ । भंग प्राप्त होते हैं ६२। पुनः आ३कारके विवक्षित होनेपर इकार आदि इकसठ अक्षरोंपर क्रमसे अक्षका संचार होनेपर इकसठ द्विसंयोगी भंग प्राप्त होते हैं ६१ । पुनः इकारके विवक्षित होनेपर ईकार आदि साठ अक्षरोंपर क्रमसे जब तक अक्षका संचार होता है तब तक ईकारके द्विसंयोगसे साठ भंग प्राप्त होते हैं ६० । पुनः ईकार आदि उनसठ अक्षरोंके द्विसंयोगी भंग क्रमसे उत्पन्न कराने चाहिये । इस प्रकार उत्पन्न हुए द्विसंयोगी भंगोंके एक साथ मिलानेपर दो हजार सोलह मात्र भंग उत्पन्न होते हैं । अथवा ___ यदि संकलन राशिका लाना अभीष्ट हो तो एक राशि वह जिसकी कि संकलन राशि अभीष्ट है तथा दूसरी राशि उससे एक अंक अधिक, इस प्रकार दो राशियोंको स्थापित करे । पश्चात् उनमेंसे किसी एक राशिके अर्ध भागको दूसरी राशिसे गुणित करनेपर गणित अर्थात् विवक्षित राशिके संकलनका प्रमाण होता है। १५ । इस गाथाके द्वारा एकको आदि लेकर उत्तरोत्तर एक एक अधिक तिरेसठ गच्छकी संकलनाके ले आनेपर चोंसठ अक्षरोंके द्विसंयोग भग दो हजार सोलह होते हैं-४६४ = २०१६] अब चौंसठ अक्षरोंके त्रिसंयोग भंगोंका कथन करनेपर पूर्व में उत्पन्न हुए २०१६ द्विसंयोंगी भगोंको बासठ बटे तीनसे गुणित करनेपर त्रिसयोगी भंग इतने होते है। २०१६४३ - ४१६६४ 1 अथवा गच्छका वर्ग करके उसमें मूलको जोड दे, पुनः आदि-उत्तर सहित गच्छसे गुणित करके उसमें छहका भाग दे । इससे जो लब्ध आवे वह संकलनाकी कलना होती है ।। १६ ।। ४ प्रतिष 'रूवाहियं ' इति पाठः। * सैकपदघ्नपदार्धमर्थकाद्यङ्कयुतिः किल संङ्कलिताख्या । लीला बती ( श्रेढीव्यवहार ) १. ताप्रती ' चउसट्ठिअक्ख राण तिसंजोगभंगे उप्पण्ण-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org :
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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