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________________ २५२) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड चत्तारिभंगा लद्धा ४ । संपहि पढम बिदियअक्खरभंगेहि सह तदियक्खरभंगे इच्छामो त्ति तिण्णि अक्खराणि विरलिय विगं करिय अण्णोण्णभत्थे कदे अट्ठ भंगा उप्पज्जंति। पुणो एत्थ एगे भंगे अवणिदे पढमबिदिय-तदियक्खराणं सत्त भंगा होंति ७ । तेसिमच्चारणक्कमो वुच्चदे- अयारस्स एगसंजोगेण एगमक्खरं लब्भदि १ । आयारस्स वि एगसंजोगेण एगो अक्खरवियप्पो लब्भदि १। आ३यारस्स वि एगसंजोगेण एयो अक्खरवियप्पो। एवमेगसंजोगक्खराणि तिण्णि होंति ३ । पुणो अयार. आयाराणं दुसंजोगेण चउत्थो अक्खरवियप्पो ४ । प्रणो अयार-आयाराणं दुसंजोगेण पंचमो अक्खरवियप्पो ५ । पुणो आयार-आयाराणं दुसंजोगेण छट्ठो अक्खरवियप्पो ६ । पुणो अयार आयार आ३याराणं तिसजोगेण सत्तमो अक्खरवियप्पो ७ । जत्तियाणि अक्खराणि तत्तियाणि चेव सुदणाणाणि, सव्वत्थ कारणमणुवट्टमाणकज्जाणमवलंभादो। तेण अण्णोण्णभत्थरासी रूवणा कीरदे । संपहि चउत्थअक्खरे णिरुद्ध एगसंजोगेण एक्को भंगो ११ पढम-चउत्थअक्खराणं दुसंजोगेण बिदियक्खरं २ । बिदिय-चउत्थअक्खराणं दुसंजोगेण तदियमक्खर ३ । तविय-चउत्थअक्खराणं दुसंजोगेण चउत्थमक्खरं ४। पुणो पढम-बिदिय-चउत्थअक्खराणं और द्वितीय अक्षरोंके भंगोंके साथ ततीय अक्षरके भंग लाना इष्ट है. इसलिये तीन अक्षरोंका विरलन कर और तत्प्रमाण दो स्थापित कर परस्पर गुणा करनेपर आठ भंग उत्पन्न होते हैं । फिर इनमेंसे एक भंगके कम करनेपर प्रथम, द्वितीय और तृतीय अक्षरोंके सब मिलाकर सात भंग होते हैं ७ । अब इनके उच्चारणका क्रम कहते हैं- अकारके एकसंयोगसे एक अक्षर उपलब्ध होता है १ । आकारके भी एकसंयोगसे एक अक्षरविकल्प उपलब्ध होता है १ । आकार; के भी एकसंयोगसे एक अक्षरविकल्प उपलब्ध होता है । इस प्रकार एकसंयोगी अक्षर तीन होते है ३ । पुनः अकार और आकारके द्विसंयोगसे चौथा अक्षरविकल्प होता है ४। पुनः अकार और आ३कारके द्विसंयोगसे पांचवां अक्षरविकल्प होता है ५ । पुनः आकार और आ३कारके द्विसंयोगसे छठा अक्षरविकल्प होता है ६ । पुन: अकार, आकार और आ३कारके त्रिसंयोगसे सांतवां अक्षरविकल्प होता है ७ । जितने अक्षर होते हैं उतने ही श्रुतज्ञानके विकल्प होते हैं, क्योंकि, सर्वत्र कारणका अनुकरण करनेवाले कार्य उपलब्ध होते है। इसलिये अन्योन्यगुणित राशिमेंसे एक कम करते हैं। ___अब चतुर्थ अक्षरके विवक्षित होनेपर एकसंयोगसे एक भंग होता है १ । प्रथम और चतुर्थ अक्षरोंके द्विसंयोगसे दूसरा अक्षर होता है २ । द्वितीय और चतुर्थ अक्षरोंके द्विसंयोगर्स तीसरा अक्षर होता है ३ । तृतीय और चतुर्थ अक्षरोंके द्विसंयोगसे चौथा अक्षर होता है ४। फिर प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ अक्षरोंके त्रिसंयोगसे पांचवां अक्षर होता है ५ । पुनः प्रथम, तृतीय अ-आ-काप्रतिषु ' अयार-आयाराणं ', ताप्रती · अयार- (आयार) 'आयाराणं' इति पाठ । Oताप्रती ' अक्खाराणं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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