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छक्खंडागमे वग्गणा-खर
( ५, ४, ३२.
संवग्गिदे एगसंजोग-दुसंजोगादिसुदणाणवियप्या कधमुप्पज्जंति, किमळं वा उप्पण्णरासो रूवणा कीरदि ति उत्ते उच्चदे-पढमक्खरे एक्को चेव भंगो ( १ ), सेसक्खरेहि संजोगाभावादो। संपहि बिदियक्खरे णिरुद्ध बे भंगा* होंति, सत्थाणेण एक्को भंगो१, पढम बिदिधक्खराणं संजोगेण बिदियो भंगो१, एवं दोग्णं चेव भंगाणमवलंभादो। २ ।
संजोगो णाम कि दोण्णमक्खराणमेयत्तं कि सह उच्चारणं एयत्थीभावो वा? ण ताव एयतं, एयतभावेग णट्ठदुब्भावाणं संजोगविरोहादो। ण च सहोच्चारणं, च उस ट्ठिअक्खराणं एगवारेण उच्चारणाणुववत्तीदो। तदो एगत्थीभावो संजगो त्ति घेत्तव्यो । कधमेवकम्हि अत्थे वट्टमाणाणं बहूणमक्खराणमेगक्खरसण्णा ? ण एस दोसो, अत्यदुवारेण तेसि सन्वेसि पि एयत्तुवलंभादो । वट्टमाणकाले बहूणमक्खराण. मेयक्खरत्तं ण उवलब्भदि त्ति ण पच्चवट्ठादुं जुत्तं, वट्टमाणकाले वि ' त्वम्य' इच्चाईणं बहूणमक्ख राणमेयत्थे वट्टमाणाणमेयक्खरत्तुवलंभादो। ण च सरेहि अणं. तरियवंजणाणमेयत्थे वट्टमाणाण चेव एयक्खरतं, सरेहि अंतरियाणं बहूणं वंजणाणं पि एयत्तं ण विरुज्झदे, अच्चंतभेयाणमेयत्थे वृत्ति पडि भेदाभावादो । अणलोम-विलोमएकसयोगी और द्विसंयोगी आदि श्रुतज्ञान के विकल्प कैसे उत्पन्न होते हैं और उस उत्पन्न हुई राशिमेंसे एक कम किसलिये किया जाता है, ऐसा पूछनेमर कहते हैं--प्रथम अक्षरका एक ही भग होता है, क्योंकि, उसका शष अक्षरोंके साथ संयोग नहीं है। आगे दूसरे अक्षरकी विवक्षा करनेपर दो भग होते हैं, क्योंकि, स्वस्थानकी अपेक्षा एक भंग और पहले व दूसरे अक्षरोंके संयोगसे दूसरा भग इस प्रकार दो ही भंग उपलब्ध होते हैं ।
संयोग क्या है ? क्या दो अक्षरोंकी एकता संयोग है, क्या उनका एक साथ उच्चारण करना संयोग है, या क्या उनकी एकाथिता (एकार्थबोधकता) का नाम संयोग है? दो अक्षरोंकी एकता तो संयोग हो नहीं सकती, क्योंकि, एकत्वभाव माननेपर द्वित्वका नाश हो जानेके कारण उनका संयोग होने में विरोध आता है । सहोच्चारणका नाम भी सयोग नहीं है, क्योंकि, चौंसठ अक्षरोंका एक साथ उच्चारण करना बनता नहीं है । इसलिये एकार्थता नाम संयोग है, ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिये ।
शंका-एक अर्थमें विद्यमान बहुत अक्षरोंकी एक अक्षर संज्ञा कैसे हो सकती है ? समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, अर्थके द्वारा उन सभीके एकत्व' पाया जाता है।
वर्तमान कालमें बहत अक्षरोंका एक अक्षरपना नहीं उपलब्ध होता हैं, ऐसा निश्चय करना भी युक्त नहीं है; क्योंकि, वर्तमान काल में भी 'व्वम्य' इत्यादिक बहुत अक्षरोंके एक अर्थमें विद्यमान होते हुए एकाक्षरता उपलब्ध होती है । स्वरोंसे अन्तरित न होकर एक अर्थमें विद्यमान व्यंजनोंके ही एक अक्षरपना नहीं है, किन्तु स्वरोंके द्वारा अन्तरको प्राप्त हुए बहुत व्यंजनोंके भी एकाक्षरपना अविरुद्व है; क्योंकि, अत्यन्त भिन्न अक्षरोंकी एक अर्थमें वृत्ति होने की अपेक्षा उनमें कोई भेद नहीं है।
*का-ताप्रत्यौः । विभंगा ' इति पाठः ।
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