SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५, ५,३६. ) पर्या अणुओगद्दारे ओग्गहादीण पज्जायसद्दा ( २४१ वि छह बारसेहि य गुणिय पुणरुत्तभवणिय परिवाडीए टुइदे सुत्तपरूविदभंगपमाणं होदि । तं च एदं - ४, २४, २८, ३२, ४८, १४४, १६८, १९२, २८८, ३३६, ३८४ । जत्तिया मदिणाणवियप्पा तत्तिया चेव आभिणिबोहियणाणावरणीयस्स पर्याडवियप्पा त्ति वत्तव्यं । तस्सेव आभिणिबोहियणाणावरणीयकम्मस्स अण्णा परूवणा कायव्वा भवदि ।। ३६ ।। का अण्णा अत्थपरूवणा ? चदुष्णमोग्गहादीणमाभिणिबोहियणाणस्स च पज्जायसद्दपरूवणा पुव्वपरूवणादो पुधभूदा त्ति अण्णा वत्तव्वा । किमटुमेसा बुच्चदे ? सुहावगमणट्ठ । क्रमसे स्थापित करनेपर सूत्रमें कहे गये भेदों का प्रमाण होता है वह इस प्रकार है- ४, २४, २८, ३२, ४८, १४४, १६८, १९२, २८८. ३३६, ३८४. जितने मतिज्ञानके भेद हैं उतने ही आभिनिबोधि कज्ञानावरणीय के प्रकृतिविकल्प है, ऐसा कहना चाहिये | विशेषार्थ - यहां मतिज्ञानके अवान्तर भेदोंका विस्तारके साथ विवेचन किया गया है । मूल में अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा ये ४ भेद हैं । इन्हें पांच इन्द्रिय और मनसे गुणित करनेपर २४ भेद होते हैं । इनमें व्यंजनावग्रहके ४ भेद मिलानेपर २८ भेद होते हैं । ये २८ उत्तर भेद हैं, इसलिए इनमें अवग्रह आदि ४ मूल भंग मिलानेपर ३२ भेद होते हैं । ये तो इन्द्रियों और अवग्रह आदिकी अलग अलग विवक्षासे भेद हुए । अब जो बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनिःसृत, अनुक्त और ध्रुव ऐसे छह प्रकार के पदार्थ तथा इनके प्रतिपक्षभूत छह इतर पदार्थों को मिलाकर बारह प्रकारके पदार्थ बतलाये हैं उनसे अलग अलग उक्त विकल्पोंको गुणित किया जाता है तो सूत्रोक्त मतिज्ञानके सभी विकल्प उत्पन्न होते हैं । यथा- ४×६ = २४, २४×६ = १४४, २८४६ = १६८, ३२x६ = १९२; ४×१२ = ४८, २४४१२ = २८८, २८×१२ = ३३६, ३२x१२ = ३८४. मतिज्ञानके २४ भेद पहले कहे ही है और यहां भी ४ को ६ से गुणित करनेपर २४ विकल्प आते हैं, इसलिए इस २४ संख्याको पुनरुक्त मानकर अलग कर देनेपर ४, २४, २८, ३२ ४८, १४४, १६८, १९२, २८८, ३३६, और ३८४ मतिज्ञानके विकल्प होते हैं। यद्यपि पहले जो २४ विकल्प कहे हैं वे अन्य प्रकारसे कहे गये हैं और यहां अन्य प्रकारसे उत्पन्न किये गये हैं, पर संख्या की दृष्टि से एक चौवीसीको पुनरुक्त मानकर अलग कर दिया है । उसी आभिनिबोधिकज्ञानावरणीय कर्मकी अन्य प्ररूपणा की जाती है । ३६ । शंका- अन्य अर्थप्ररूपणा कौनसी है ? समाधान- चार अवग्रह आदिके और आभिनिबोधिक ज्ञानके पर्यायवाची शब्दों की प्ररूपणा चूंकि पूर्वोक्त प्ररूपणासे भिन्न है, इसलिये इसे अन्य कहनी चाहिये । शंका- इसका कथन किसलिये करते हैं ? समाधान- सुखपूर्वक ज्ञान होनेके लिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy