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________________ २४०) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं (५, ५, ३५. चक्षुषा ध्रुवमवगृह णाति ११ । चक्षषा अध्रुवमवगृह णाति १२ । एवंचक्षुरिन्द्रियावग्रहो द्वादशविधः । एवमीहावाय-धारणानामपि प्रत्येकं द्वादश भंगाः । प्रतिपाद्याः । तद्यथा- चक्षुषा बहुमीहते १, एकमीहते २, बहुविधमोहते ३, एकविधमीहते ४, क्षिप्रमीहते ५, अक्षिप्रमीहते ६, अनि सतमीहते ७, निःसृतमीहते ८, अनुक्तमीहते ९, उक्तमीहते १०, ध्रुवमीहते ११, अध्रवमीहते १२ । एवमीहायाः द्वादश भेदाः । बहुमवैति १, एकमवैति २, बहुविधमवैति ३, एकविधमवैति ४, क्षिप्रमवैति ५, अक्षिप्रमवैति ६, अनिःसतमवैति ७, निःसतमवैति ८, अनुक्तमवैति ९, उक्तमवैति १०, ध्रुवमवैति ११, अध्रुवमवैति १२। एवं द्वादश अवाय भेदाः । बहुं धारयति २ एकं धारयति २, बहुविधं धारयति ३, एकविधं धारयति ४, क्षिप्र धारयति ५, अक्षिप्रं धारयति ६, अनिःसतं धारयति ७, निःसृतं धारयति ८, अनुक्तं धारयति ९, उक्तं धारयति १०, ध्रुवं धारयति ११, अध्रवं धारयति १२ । एवं धारणायाः द्वादश भेदाः । संपहि एदेण बीजपदेण सव्वभंगा उच्चारेदव्वा । एवमुच्चारिय सिद्धभंगाणं पमाणपरूवणं कस्सामो । तं जहा- ४, २४, २८, ३२ एदे पुवुप्पाइदे भंगे दोसु है १० । चक्षुके द्वारा ध्रुवका अवग्रहज्ञान होता है ११ । चक्षुके द्वारा अध्रुवका अवग्रहज्ञान होता है १२ । इस प्रकार चक्षुइन्द्रियअवग्रह बारह प्रकारका हैं । इसी प्रकार ईहा, अवाय और धारणाके भी अलग अलग बारह बारह भेद जानने चाहिये । यथा- चक्षुके द्वारा बहुतका ईहाज्ञान होता है १ एकका ईहाज्ञान होता है २ । बहुविधका ईहाज्ञान होता है ३ । एकविधका ईहाज्ञान होता है ४ । क्षिप्रका ईहाज्ञान होता है ५ । अक्षिप्रका ईहाज्ञान होता है ६ । अनिःसृतका ईहाज्ञान होता है ७ । निःसृतका ईहाज्ञान होता है ८ । अनुक्तका ईहाज्ञान होता है ९ । उक्तका ईहाज्ञान होता है १० । ध्रुवका ईहाज्ञान होता है ११ । अध्रुवका ईहाज्ञान होता है १२ । इस प्रकार ईहाके बारह भेद हैं। बहुतका अवायज्ञान होता है १ । एकका अवायज्ञान होता है २ । बहुविधका अवायज्ञान होता है ३ । एकविधका अवायज्ञान होता है ४ । क्षिप्रका अवायज्ञान होता है ५ । अक्षिप्रका अवायज्ञान होता है ६ । अनिःसृतका अवायज्ञान होता है ७ । निःसृतका अवायज्ञान होता है ८ । अनुक्तका अवायज्ञान होता है ९ । उक्तका अवायज्ञान होता है १० । ध्रुवका अवारज्ञान होता है ११ । अध्रुवका अवायज्ञान होता है १२ । इस प्रकार अवायज्ञान बारह प्रकारका है । बहुतका धारणाज्ञान होता है १ । एकका धारणाज्ञान होता है २ । बहुविधका धारणाज्ञान होता है ३ । एकविधका धारणाज्ञान होता है ४ । क्षिप्रका धारणाज्ञान होता है ५ । अक्षिप्रका धारणाज्ञान होता है ६ । अनिःसृतका धारणाज्ञान होता है ७ । निःसृतका धारणाज्ञान होता है ८ । अनुक्तका धारणाज्ञान होता है ९ । उक्तका धारणाज्ञान होता है १० । ध्रुवका धारणाज्ञान होता है ११ । अध्रुवका धारणाज्ञान होता है १२ । इस प्रकार धारणाज्ञानके बारह भेद हैं। अब इस बीजपदके द्वारा सब भंगोंका उच्चारण करना चाहिये । इस प्रकार उच्चारण करके सिद्ध हुए भंगोंके प्रमाणका कथन करते हैं । यथा -पहले उत्पन्न किये गये ४, २४, २८ और ३२ . भेदोंको दो स्थानों में रखकर छह और बारहसे गुणा करके और पुनरुक्त भंगोंको कम करके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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